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शादी में नमक जितना झूठ तो चलता है…

"एक झूठ बोलने से अगर रिश्ते सवंरते हैं तो मुझे नहीं लगता इसमें कुछ हर्ज है। तुम अपनी मां से फोन पर कह देना कि मैंने तुम्हें यह सब करने को कहा है..."

“एक झूठ बोलने से अगर रिश्ते सवंरते हैं तो मुझे नहीं लगता इसमें कुछ हर्ज है। तुम अपनी मां से फोन पर कह देना कि मैंने तुम्हें यह सब करने को कहा है…”

“बड़े-बड़े शहरों में ऐसी छोटी बातें होती रहती हैं सेनोरिटा!” मायूस सुनिधि को उसके पति अंकुर ने दिलासा देने के लिए हंसते हुए यह डायलॉग  बोला।

“अब बस करो, आप और आपका बॉलीवुड प्रेम! अपनी मम्मी के सामने तो कुछ बोलते नहीं हो, पीछे से मुझे मनाने के लिए डायलॉग बाजी करते रहते हो”, सुनिधि ने कहा।

“हां यार  सुनिधि, माँ ऊपर से सख्त हैं, पर अंदर से उनका मन बहुत ही नरम है। मैं मां और तुम्हारे बीच होने वाली बहस में इसलिए नहीं बोलता क्यूंकि मां को बुरा लगेगा कि तुम्हारी वजह से मैं उनके खिलाफ बोल रहा हूँ। फालतू में ही समाज में तुमको ही बुराई मिलेगी। चलो, अभी आंसू पोंछ लो और मुझे एक गरमा गरम चाय पिला दो”, अंकुर बोला।

यह कहानी है सुनिधि और अंकुर की!

सुनिधि की शादी को अभी 2 महीने ही हुए हैं। सुनिधि के मायके में उसकी एक मां है। जब सुनिधि छोटी थी तभी उसके पिता का देहांत हो गया था।

वैसे तो सुनिधि की मां अपने हिसाब से लेना-देना अच्छा ही करना चाहती हैं, पर सुनिधि की सास विमला जी को उनका लेना-देना कुछ खास पसंद ना है। वो तो पहली नज़र में अंकुर ने सुनिधि को पसंद कर शादी करने का फैसला अपनी माँ को सुना दिया था पर विमला जी को ये अफ़सोस था कि बहूँ का मायका उनकी टक्कर का नहीं है।

सुनिधि की शादी के बाद पहला त्यौहार होली का आया।

विमला जी ने सुनिधि की सास के लिए साड़ी, सुनिधि के लिए एक साड़ी और अपने दमाद जी के लिए कपड़े खरीदें और त्योहार के चलते पिचकारी, ग़ुलाल, मीठा और थोड़ा नमकीन भिजवाया था।

“यह कैसी साड़ी भेजी है तेरी मां ने? हमारे घर की नौकरानी भी इससे अच्छी साड़ी पहनती है। कम से कम हमारे लेवल का तो लेन-देन करना चाहिए उन्हें। बड़े घर में लड़की की शादी कर खुश तो बहुत थी! काश वो ये भी सीख लेती कि बड़े घरवालों से लेन-देन कैसे करना चाहिए!” सुनिधि के घर से आई हुई साड़ियों को देख आज विमला जी सुबह-सुबह बोलने लगीं।

सुनिधि चुपचाप सब सुन रही थी। उसको पता था कि जवाब देने का कोई फायदा नहीं है क्योंकि सच में उसकी मां की स्थिति अच्छी नहीं थी और वह जो भी लेन-देन कर रही थीं वह उनकी मैक्सिमम लिमिट थी।

सुनिधि बिना कुछ कहे अपने कमरे में आ गई।

अंकुर ने अपनी मां विमला जी की बात सुनी थी, बस इसी सबके चलते अंकुर सुनिधि को मनाने की कोशिश कर रहा था। अंकुर को भी पता था कि सुनिधि की मां की आर्थिक हालत ज्यादा अच्छी नहीं है, फिर  भी अच्छा ही देने की कोशिश की है उन्होंने।

देखते-देखते सुनिधि शादी को 8 माह बीत गए। अब दीपावली का बड़ा त्यौहार आने वाला था।  सुनिधि को यह सब सोच ही चिंता सता रही थी कि इस बार भी सासू मां उसके घर से आए हुए सामान को देख पता नहीं क्या-क्या बातें बनाएंगी?

“किस चिंता में डूबी हुई हो सुनिधि?” अंकुर ने पूछा

“देखिए ना दिवाली आने वाली है, मुझे अभी से चिंता हो रही है मेरी मां पता नहीं क्या देंगी और हमेशा की तरह सासू मां मुझे सुनाएंगी…पता नहीं मैं क्या करूं!” सुनिधि ने अंकुर से कहा।

“मेरे पास एक तरकीब है! दिवाली के एक हफ्ते पहले तुम मेरे साथ बाजार चलना। मैं शॉपिंग कर लूंगा, तुम्हारी साड़ी, मां की साड़ी, अपने कपड़े, मिठाई, पटाखे और फल सब कुछ खरीदेंगे, वह भी एकदम हाई स्टैंडर्ड वाले। देखता हूं मां को कैसे पसंद नहीं आयेगा इस बार सामान! तुमको बस इतना कहना है कि यह सब सामान तुम्हारी मां ने भिजवाया है…”

सुनिधि बोली, “विचार तो अच्छा है! पर झूठ पकड़ा गया तो?”

अंकुर बोला, “एक झूठ बोलने से अगर रिश्ते सवंरते हैं तो मुझे नहीं लगता इसमें कुछ हर्ज है। तुम अपनी मां से फोन पर कह देना कि मैंने तुम्हें यह सब करने को कहा है, आशा करता हूं उन्हें भी बुरा नहीं लगेगा।”

थोड़ा हिचकते हुए सुनिधि ने अंकुर की बात मान ली क्योंकि सासू मां के बुरा भला बोलने पर सुनिधि भी अंदर से टूट जाती थी। अपनी मजबूरी के चलते वो उन्हें कोई जवाब तो नहीं दे पाती थी पर उसे बड़ा ही खराब लगता था।

योजना के अनुसार अंकुर और सुनिधि दिवाली के एक हफ्ते पहले पूरी शॉपिंग करके आ गए। सुनिधि ने अपनी माँ को भी अंकुर की योजना समझा दी थी। पहले तो सुनिधि की माँ भी झूठ के लिये तैयार ना थी, पर मजबूरी के चलते उन्होंने सुनिधि की हाँ में हाँ मिला दी।

शाम को सुनिधि की सास के कीर्तन जाने का समय होता था, बस उन दोनो ने आकर शॉपिंग का सारा सामान एक रूम में रख दिया।

“मां, देखो सुनिधि के घर से सामान आया दिवाली का!” अंकुर ने अपनी मां को बुलाकर कहा।

“अरे बड़ी जल्दी चली गईं समधन जी, थोड़ी देर और रुक जाती तो मुझसे भी मिल लेती”, विमला जी ने बोलते हुए कमरे की तरफ रुख किया।

“इतनी अच्छी साड़ी! इतने अच्छे कपड़े! क्या बात है! लगता है देर से ही सही समधन जी को समझ आ गया कि हमारे घर में कैसा लेन-देन होना चाहिए।” विमला जी ऐसा बोल अपने कमरे में चली गई।

“आज खुश तो बहुत होगे!” अंकुर ने सुनिधि की चुटकी लेते हुए कहा।

सुनिधि सच में बहुत खुश थी। पहली बार उसने अपनी सासू मां को खुश देखा था।

सासुमाँ अपने कमरे में चली गई और कहीं ना कहीं उनके दिमाग में यह बात चल रही थी कि जरूर दाल में कुछ काला है। सुनिधि की मां की आर्थिक हालत बहुत कमजोर थी और यह बात विमला जी अच्छे से जानती थी।

दिवाली के पांच दिन पहले विमला जी अपनी बेटी के लिये साड़ी खरीदने उसी दुकान पर गयी।

दुकानदार ने कहा, “भाभीजी, उस दिन अंकुर जी आपकी बहू के साथ आए थे, तब आप भी आ जाती तो दोबारा आना बच जाता आपका!”

विमला जी अब सब कुछ समझ गयी कि दिवाली के कपड़े किसने खरीदे हैं।

घर आकर गुस्से से विमला जी ने सुनिधि को बुलाया और कहा, “गरीब घर से तो तुम हो ही, झूठी भी हो, ये आज पता चला मुझे। दुकानदार ने सब बता दिया कि किसने कपड़े खरीदे थे दिवाली के लिये इस बार।”

माँ के चिल्लाने की आवाज़ सुन अंकुर आया और बोला, “माँ, ये सब मैंने ही बोला सुनिधि से करने को। जब हम सक्षम हैं अपनी खरीदारी के लिये, तो क्यूँ सुनिधि की माँ को परेशान करना और फिर आप सुनिधि को सुनाती हो। आपको कपड़े पसंद आए ना? फिर उन्होंने खरीदे या मैंने क्या फर्क पड़ा? सुनिधि आपका इतना ख्याल रखती है, क्या आपके लिए उतना काफी नहीं है? मेरे लिये उतना ही जरुरी है कि उसका स्वाभाव इतना अच्छा है। ना कि उसके घर से होने वाला लेन देन।”

विमला जी दो क्षण चुप हुई फिर बोली, “मेरा बेटा इतना समझदार हो गया मुझे तो आज ही पता चला। तूने मेरी आँखे खोल दीं। बहू मुझे माफ़ कर दे। अगर बेटा तू इतना झूठ ना बोल, मुझे पहले ही समझाता तो और अच्छा होता।”

“माँ तू ही कहती है ना, “शादी में, दाल में नमक जितना झूठ चलता है!” अंकुर ने हँसते हुए डायलॉग बोला।

अंकुर, सुनिधि और विमला जी तीनों हँसने लगे।

सही कहा गया है अंत भला तो सब भला! आपको कहानी अच्छी लगे तो इसे लाइक करें!

इमेज सोर्स : Still from Karwa Chauth Short Film/Content Ka Keeda via YouTube

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