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मम्मी जी, आपको भी हैप्पी करवा चौथ…

"पहले करवाचौथ से आज तक सब कुछ मैंने खुद से ही किया। कभी कोई कमी ना रही लेकिन, बस कुछ अरमान अधूरे रह गए जिंदगी में..."

“पहले करवा चौथ से आज तक सब कुछ मैंने खुद से ही किया। कभी कोई कमी ना रही लेकिन, बस कुछ अरमान अधूरे रह गए जिंदगी में…”

शादी के बाद निशा का पहला करवा चौथ आने वाला था। करवाचौथ का जितना उत्साह निशा को था उससे कहीं ज्यादा उत्साह निशा की सासूमाँ उषा जी को था।

अपनी बहु के लिये सबसे खूबसूरत सी साड़ी, गहने और पार्लर की बुकिंग सब कुछ परफेक्ट करने में जुटी थीं वो।

अपनी सासूमाँ का उत्साह देख निशा भी बहुत ख़ुश थी।

“मम्मीजी इतना कुछ करने की क्या जरुरत है? पहले से ही कितनी ज्वेलरी और मेकअप का सामान पड़ा है मेरे पास।”

“मेरे उत्साह को तुम नहीं समझ पाओगी बहू। जो कभी मेरे साथ नहीं हुआ उसकी कसर तुम्हारे साथ पूरी करना चाहती हूँ मैं।”

“क्या मतलब मम्मीजी?”

“निशा, मेरी माँ नहीं थी और ना ही मुझे सासूमाँ का प्यार ही मिला क्यूंकि शादी के कुछ समय पहले ही वो चल बसी थीं, तो मुझे ये खुशी कभी महसूस ही नहीं हुई कि कैसे नई बहु को नये कपड़े गहने माँ या सास देती है, उनके हाथों पे मेहंदी लगाती है, उनको लाड करती है। पहले करवा चौथ से आज तक सब कुछ मैंने खुद से ही किया। कभी कोई कमी ना रही लेकिन, बस कुछ अरमान अधूरे रह गए जिंदगी में…”, उदास हो उषा जी ने कहा।

“तो बस जो मैं कभी महसूस ना कर पायी, उसकी भरपाई मैं तुमसे करके अपने अरमान पूरे करना चाहती हूँ, तो मुझे मत रोको बेटा।”

“ठीक है मम्मीजी, जो आपको ख़ुशी दे वही करें आप।”

निशा को अपनी सासूमाँ की बातें सुन बहुत बुरा लगा जो इतने शौक से उसकी लिये सब कुछ कर रही हैं, उनके खुद के शौक कभी पूरे ही नहीं हुए। किसी ने कभी लाड नहीं लड़ाया। उन्होंने खुद ही हर बार अपने करवा चौथ की तैयारी की।

मन ही मन निशा ने कुछ निश्चय कर लिया हो जैसे।

दो दिन बाद कुरियर से एक बड़ा सा बॉक्स उषा जी के नाम से डिलीवर हुआ।

“इतना बड़ा बॉक्स? किसने भिजवाया होगा? वो भी मेरे लिये?”

बहुत असमंजस में फंसी उषा जी ने बॉक्स को खोला। अंदर से बेहद खूबसूरत लाल रंग की सुनहरे बॉर्डर वाली साड़ी, मैचिंग चूड़ियाँ, मेकअप का सारा सामान और चॉकलेट का बड़ा सा डब्बा था। उषा जी की ऑंखें आश्चर्य से फ़ैल गईं।

“लगता है किसी और के करवा चौथ का सामान गलती से यहाँ दे गया डिलीवरी बॉय! देखती हूँ कहीं कोई पता लिखा हो।”

इतना कह सामान उलट पलट के देखा तो एक कागज का टुकड़ा दिखा। पढ़ते ही आँखों से झड़-झड़ आंसू गिरने लगे।

ये क्या! सारा सामान तो उनकी बहु निशा ने भिजवाया था।

मेरी प्यारी मम्मीजी,

सासूमाँ के रूप में माँ को फिर से पाया है मैंने। अपने ममता के आँचल में मुझे छिपाया जिसने, उस माँ को एक छोटा सा तोहफा, उनकी बहू की तरफ से!

जो खुशी आज तक ना मिल पायी आपको उसे देने की एक छोटी सी कोशिश की है मैंने, मम्मीजी।

हैप्पी करवा चौथ मम्मीजी!!!

आपकी निशा।

“निशा! निशा! कहाँ हो बहु?”

“जी मम्मीजी?” डरते-डरते दरवाजे के पीछे छिपी निशा अपनी सासूमाँ की सामने गई।

“ये सब क्यों बेटा?”

“क्यों मम्मीजी जब आप मेरे खुशी के लिये इतना कुछ कर सकती हैं। तो क्या आपकी खुशी के लिये मैं कुछ नहीं कर सकती?”

“बिलकुल बेटा! इस खुशी के लिये तो हमेशा तरसी हूँ मैं।” और उषा जी ने निशा को कस के गले से लगा लिया।

करवाचौथ के इस शुभ अवसर पे उषा जी और निशा के सास बहु का रिश्ता आज माँ-बेटी में बदल गया था। उषा जी के आँखों में छिपे बरसों के सपने को निशा ने पूरा कर उन्हें इस करवा चौथ सबसे बड़ी खुशी दे दी थी।

इमेज सोर्स : Still from Karwa Chauth/Malabar Gold and Daimonds/YouTube

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