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अपनी पोती को गोद में लेकर उन्होंने कहा, "यह बच्ची अभी दुनिया में आयी है, इसने तुम्हें क्या दुःख दे दिया जो रो रही हो? क्या ले लिया इसने?"
अपनी पोती को गोद में लेकर उन्होंने कहा, “यह बच्ची जो एक घंटा पहले ही इस दुनिया में आयी है। इसने तुम्हें क्या दुःख दे दिया जो रो रही हो? क्या ले लिया इसने तुम्हारा?”
सुनीता की भाभी प्रेग्नेंट थी। और पहले से ही भाई को एक लड़की थी। आजकल महंगाई के ज़माने में लोग सिर्फ एक या दो बच्चे ही चाहते हैं। सभी को इस बार उम्मीद थी कि बेटा ही होगा।
सुमन की पत्नी राखी, भी यही चाहती थी। सुमन की पहली बेटी रानी बहुत ही सुंदर और प्यारी थी। वह तीन साल की थी जब राखी दूसरी बार प्रेग्नेंट हुई। घर में सभी चाहते थे इस बार बेटा हो जाये तो परिवार पूरा हो जायेगा।
वैसे कुछ लोगों ने सुमन और राखी को अल्ट्रासाउंड करवाने का भी सलाह दी। कहीं-कहीं चोरी-छिपे आज भी बता देते हैं शायद, कि लड़का है गर्भ में या लड़की। पर सुमन और राखी, लिंग-जाँच और गर्भपात के बिल्कुल खिलाफ़ थे।
सभी घर में राखी का पूरा ख्याल रखते क्यूंकि उसे बेडरेस्ट बताया गया था। दरअसल गर्भ में बच्चा कुछ कमजोर था। सुमन के परिवार में, माता-पिता, उसकी पत्नी, बेटी, एक छोटा भाई और एक बहन जिसकी शादी हो गयी थी। राखी की सास राखी का बहुत खयाल रखती, खाना-पीना से लेकर अपनी पोती को भी सम्भालती। छोटे भाई की अभी शादी नहीं हुई थी। खुशहाल और सम्पन्न परिवार।
सभी शिक्षित और व्यवहारिक हैं इस परिवार में। प्रेम और विश्वास से भरा परिवार। राखी और उसकी सास भी सभी पढ़े-लिखे हैं। पर कहा जाता है न, कुछ चीजें प्रकृतिक होती हैं। वैसे बेटे और बेटी में कोई अंतर नहीं है तो कभी रस्मों-रिवाज में, तो कभी मन की जरूरत, या यूँ कहें लोग ज़िंदगी के हर सुख को हासिल करना चाहते हैं। बस अब राखी को लड़का चाहिए था।
नौ महीने पूरे होने के बाद राखी को दर्द शुरू हुआ तो, सुमन और उसकी माँ राखी को लेकर अस्पताल गये। सुमन ने अपनी बहन को फोन कर दिया, “राखी को लेकर अस्पताल आ गया हूँ। देखो कब तक होता है। सुबह चार बजे आये हैं।”
सुमन की बहन सुनते ही पूजा पर बैठ गयी, “हे भगवान मुझे भतीजा ही देना।”
सुमन और राखी ने पहले ही कह दिया था, जो भी होगा, हम लोग को दो ही बच्चे चाहिएँ। तो सुनीता को लगता यदि बेटी हो जायेगी तो मुझे भतीजा कैसे होगा? जबकि वह अपनी भतीजी को बहुत प्यार करती थी। पर भतीजा जरूर हो, वह चाहती थी। और उसने मछली का ऑर्डर भी दे दिया था कि जैसे ही भतीजा होगा मछली बनाऊँगी। मछ्ली को शुभ जो माना जाता है। और वह इंतजार कर रही थी।
लेबर रूम में अकेली राखी! कभी-कभी सुमन या उसकी माँ मिलने जाते। कुछ घंटे बाद राखी ने बेटी को जन्म दिया।
नर्स ने कहा, “देख लो अपने बच्चे को ठीक से! देखा, क्या है बच्चा?”
राखी ने थोड़ा रुआंसी हो कर कहा, “बेटी।”
फिर बच्चे को साफ करने के बाद नर्स ने बाहर आकर कहा, “बच्चे के पापा अंदर आइये।”
सुमन पूरे उत्साह से अंदर गया। अंदर देखा पलने में नन्ही सी गुड़िया और राखी के आँखो में आँसू।
सुमन ने मुस्कान चेहरे पर लाकर कहा, “रोती क्यों हो? बहुत प्यारी है बेटी!”
फिर सुमन बाहर आ गया और सुमन की माँ अंदर गयी, अपनी पोती को देखने। अंदर जाते ही अपनी पोती को गोद में लेकर उन्होंने कहा, “यह बच्ची जो एक घंटा पहले ही इस दुनिया में आयी है। इसने तुम्हें क्या दुःख दे दिया जो रो रही हो? क्या ले लिया इसने तुम्हारा? क्या छिन गया जो उदास हो? कितनी प्यारी और नन्ही है। मत रो, चुप हो जाओ। माँ को ऐसे रोना नहीं चाहिए, बच्ची पर असर पड़ेगा।
बच्चों के जन्म से माँ को खुशियां मनानी चाहियें। रोने से बच्चों का बुरा होता है। इसलिए आँसू पोछों। क्या बेटा को पैदा करने में दर्द न होता है? रोना बन्द कर, इसे सीने से लगाओ…”
सास के इतना कहते ही राखी फुट-फुट कर रोने लगी, “माँ मुझे मायके में चचेरी बहन ने लड़ाई में श्राप दे-दिया था कि बेटा का मुँह न देखोगी। क्योंकि उसे बेटा है, और मुझे बेटी। लगता है उसी का श्राप लग गया! अब हम लोग तीसरा बच्चा तो पैदा करेंगे नहीं। फिर मुझे बेटा…?”
राखी की सास ने कहा, “दूसरे क्या कहते हैं उस पर मत जाओ। तुमको बेटा जरूरी चाहिए तो फिर और बच्चे करती जाओगी? जब हमने ठान ली कि हम टेस्ट नहीं करवाएंगे, तो इसे ऊपर वाले की मर्जी मानकर अपनी बच्ची को अपनाओ। मुझे तुम्हारा रोना ठीक नहीं लग रहा।
दूसरे के श्राप? इन बातों में आगे से मत उलझना और न ही बेटा-बेटी के। जो हुआ वही अच्छा! व बच्चे को ही अच्छा इंसान बनाओ। बेटा और बेटी बस मन का भरम या अहम की संतुष्टि है। वो भी दूसरों के लिए वरना बेटा भी नौ महीने, गर्भ में रहता बेटी भी। बेटा पैदा करने में भी दर्द होता बेटी होने में भी। दोंनो पैदा होने से हम माँ ही बनते हैं तो फिर इस दुःख का कोई कारण नहीं। तुम्हारी बेटी रानी क्या तुम उसे प्यार नहीं करती हो? या वह तुम्हें प्यारी नहीं है?”
राखी ने कहा, “माँ वो तो मेरी जान है।”
“फिर अभी पैदा हुई ये नन्ही सी जान तुम्हारी जान क्यों नहीं है? बेटा और बेटी कुछ नहीं बस अपना बच्चा अपना होता है”, माँ ने कहा।
राखी समझ न पा रही थी कि मेरे ससुराल में लोग मुझे बेटी जनने के बाद भी इतना स्पोर्ट करेंगे। कुछ पल के लिए वह सब कुछ भूल गयी।
ईधर सुमन की बहन इंतजार इर रही थी कि तभी सुमन का फोन आया, “लड़की हुई!”
सुनीता का दिल बैठ गया, “क्या? बेटी क्यों, उसने पूछा अच्छा सब ठीक है न?” और फोन रख दिया। वह भी रुआँसी हो गयी। मछली मना करवा दिया।
सुनीता ने अपनी माँ को फोन किया, “माँ, बेटी हुई?”
“हाँ बहुत प्यारी है”, माँ ने कहा।
“तो अब भतीजा?”
तभी सुनीता को माँ ने समझाया और कहा, “अब इसके आने की खुशियाँ मनाओ, क्या बेटा-बेटा लगा रखा है तुम दोनों ने? कुछ चीज़ें हमारे हाथ में नहीं है, इसलिए इसे खुशकिस्मत मानकर खुश होना चाहिए। एक घण्टा पहले जन्मी बच्ची के लिए इतना दुखी होना, ग़लत बात है।”
तभी मोबाइल पर भाई ने जैसे ही भतीजी की फोटो भेजी, वह दुआयें देने लगी।
अस्पताल में राखी का समय, उहापोह में गुजरा, कभी, खुश तो कभी उदास हो जाती।
फिर अस्पताल से डिसचार्ज होकर जब घर आई राखी अपनी बच्ची को लेकर तो घर में इतना अच्छा स्वागत देखकर, भावुक हो गयी। सास ने कहा, “खुश रहो तुम सब। अब तुम्हारा परिवार पूरा हुआ!”
इमेज सोर्स : Still from Short Film Beans Aloo/Blush via YouTube
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