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सुनो, आज तुमसे कुछ कहना चाहती हूँ…

कभी न टूटे अपना संग मेरे साथ यह कहना, जब मैं माँगू संग तुम्हारा, तुम भी दुआ करना कभी मेरी इन माँगों को बस आँखों से पढ़ लेना!

कभी न टूटे अपना संग मेरे साथ यह कहना, जब मैं माँगू संग तुम्हारा, तुम भी दुआ करना कभी मेरी इन माँगों को बस आँखों से पढ़ लेना!

तुमसे वो पहली मुलाकात याद है
जीवन में हर मोड़ पे साथ निभाना याद है!

तुम आये थे विदेशी बाबू से और
मैं थी गाँव की अल्हड कन्या सी
छत पर तुमसे वो कुछ बार मिलना
दस दिन में हमारी शादी होना
आज भी मुझे सब याद है!

तुम्हारे सहारे देश छोड़ना याद है
माँ बाबा को तुम में ही ढूँढना याद है
मेरे क़दमों के साथ तुम्हारा चलना याद है
पहले हर उस अहसास की हर बात याद है!

बिन माँ ,सासू माँ के हर त्यौहार मनाना याद है
हर मौके पे तुम्हारा साथ निभाना भी याद है,
तुम्हारा मेरी सखी सहेली बन जाना याद है
जब भी दुआ करती हूँ तुम्हारा साथ माँगती हूँ
पर मेरे जीवन साथी आज तुमसे कुछ माँगती हूँ!

जब मैं थोड़ा घबराऊँ तुम मेरा साथ देना
मैं तो साथ रहूँगी सदा बस तुम दिखाई देना
मेरी माथे की बिंदिया बन तुम दमकते रहना
हाथों की चूड़ी जैसे तुम बस खनकते रहना!

अभी तो ताकत है पर बुढ़ापे में भी ऐसे रहना
जब घुटने मेरे थक जाएँ तुम ज़रा सहारा देना
मैं थाम लूँ हाथ तुम्हारा और तुम मेरा हाथ पकड़ना
हाथ जब काँपे मेरे तुम ज़रा संभाल लेना
छड़ी किनारे रख के तुम मेरे साथ ही चलना!

बच्चे जब अपने जीवन में मस्त होंगे
तुम मुझे घुमा देना कभी सिनेमा दिखा देना
किसी दिन थोड़ी चीटिंग कर के चाट खिला देना
जब मैं भूखी बैठी हूँ तुम ज़रा हाथ बँटा देना
रूठ जो जाऊँ कभी मैं तो तुम भी मना लेना!

थक जाऊँ कभी तो ज़रा तुम मुस्करा सा देना
बेकार खाने पर भी तारीफ के दो बोल सुना देना
तुम्हारे सफ़ेद बालों की मैं तो तारीफ करुँगी
मेरे झुर्रियों वाले चेहरे पे तुम भी प्यार दिखाना!

कभी न टूटे अपना संग मेरे साथ यह कहना
जब मैं माँगू संग तुम्हारा, तुम भी दुआ करना
मेरे जीवन साथी अनकही बातों को बस समझ लेना
कभी मेरी इन माँगों को बस आँखों से पढ़ लेना!

इमेज सोर्स: Photo by Pranav Kumar Jain on Unsplash 

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SHALINI VERMA

I am Shalini Verma ,first of all My identity is that I am a strong woman ,by profession I am a teacher and by hobbies I am a fashion designer,blogger ,poetess and Writer . मैं सोचती बहुत हूँ , विचारों का एक बवंडर सा मेरे दिमाग में हर समय चलता है और जैसे बादल पूरे भर जाते हैं तो फिर बरस जाते हैं मेरे साथ भी बिलकुल वैसा ही होता है ।अपने विचारों को ,उस अंतर्द्वंद्व को अपनी लेखनी से काग़ज़ पर उकेरने लगती हूँ । समाज के हर दबे तबके के बारे में लिखना चाहती हूँ ,फिर वह चाहे सदियों से दबे कुचले कोई भी वर्ग हों मेरी लेखनी के माध्यम से विचारधारा में परिवर्तन लाना चाहती हूँ l दिखाई देते या अनदेखे भेदभाव हों ,महिलाओं के साथ होते अन्याय न कहीं मेरे मन में एक क्षुब्ध भाव भर देते हैं | read more...

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