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एक विधवा औरत सुहागिन का माँग भरती है क्या…

पर शादी में जितनी महिलाएं आयी थीं, दुल्हन से ज्यादा शिवानी पर सबकी नजरें थी। कुछ तो "अनर्थ" कहकर चल दीं उठकर शादी से।

पर शादी में जितनी महिलाएं आयी थीं, दुल्हन से ज्यादा शिवानी पर सबकी नजरें थी। कुछ तो “अनर्थ” कहकर चल दीं उठकर शादी से।

“ये क्या अनर्थ कर दिया तुमने?” ऐसे वाक्य तो बराबर सुनने को मिलता ही रहता है…कई बार, कई लोगों से…

शिवानी कम उम्र में विधवा हो गयी थी, एक छोटा बच्चा था गोद में।

किसी तरह उसकी माँ ने उसे सम्भाला था और वही उसे आगे कैरियर बनाने में मदद कर रही थीं।अपनी बेटी का साथ हर मोड़ पर देकर, बेटी को सशक्त बना रही थीं वह।

शिवानी भी इसे भाग्य की विपदा समझकर, अपने मन को मजबूत बनाकर आगे जीवन जी रही थी। माँ उसे, सजने, सँवरने, किसी भी तरह का ड्रेस पहनने को उत्साहित करती, पर शिवानी साधारण ही रहती। इन चीज़ों में उसे कोई रूचि ही न रही।

बहुत जल्द शिवानी के भाई की शादी थी। रिश्तेदारों का घर में आना-जाना लगा हुआ था।

माहौल की खुशी देख कर, शिवानी माँ मन थोड़ा हल्का हो गया। एक दिन उसने अलमारी से अपनी जीन्स निकाली और सोचा इसे पहन ले, भाग-दौड़, ऊपर नीचे काम करने में आसानी रहेगी। पहले भी तो पहनती थी। ‘उन्हें’ कितनी पसंद थी उसकी जीन्स!

शिवानी ने जीन्स पहन ली और काम करने लगी।

अब तो होने लगीं लोगों में बातें!

“ये क्या! एक विधवा को जीन्स शोभा देता है?”

अब शिवानी सोचने लगी, ऐसा भी क्या हो गया? जबकि, सिर्फ बालों को ही सँवारा था, कोई मेकअप भी नहीं किया क्योंकि शिवानी खुद ही श्रृंगार करना पसंद नहीं करती थी।

पर शादी में जितनी महिलाएं आयी थीं, दुल्हन से ज्यादा शिवानी पर सबकी नजरें थी। कुछ तो “अनर्थ” कहकर चल दीं उठकर शादी से।

शिवानी के चेहरे पर खेद, गुस्सा या सवालिया मुस्कान उभर गयी सिर्फ…

फिर जयमाल के स्टेज पर, शिवानी को देखते ही, लड़कीवालों और आए सभी लोगों में, काना-फुसी होने लगी!

“अरे इसको दूल्हा-दुल्हन के नजदीक नहीं आना चाहिए। अशुभ होता है!”

“क्या अनर्थ करते जा रही है?”

पर शिवानी और उसकी माँ को इन सब से कोई लेना-देना नहीं था।

फिर सिंदूर दान के समय, पाँच औरतें दुल्हन के माँग में आशीर्वाद के रुप में सिंदूर भरती हैं। पहले शिवानी की माँ ने दुल्हन को सिन्दूर भरा, फिर शिवानी से कहा, “बड़ी बहन हो, तुम भी भरो दुल्हन के माँग में सिंदूर।”

अब शिवानी कुछ झिझक भी रही थी, पर माँ ने कहा, “तुम्हारा अधिकार है, तुम आशीर्वाद दो अपनी छोटी भाभी को।”

“माँ अशुभ होता है…”, शिवानी ने अबके सुबकते हुए कहा।”

“शुभ-अशुभ कुछ नहीं। यह तो आशीर्वाद है, तुम अपने भाई-भाभी को आशीर्वाद दे ही सकती हो।”

शिवानी ने नयी दुल्हन के माँग में आशीर्वाद के रूप में सिंदूर भरा तो जैसे हाय तौबा मच गयी…

“ये क्या अनर्थ कर दिया?”

“एक विधवा औरत सुहागिन का माँग भरती है क्या?”

“हे भगवान इस अपशकुन से भगवान ही बचाये।”

शिवानी की माँ ने, किसी की बात की कोई परवाह न की। बस अपनी बेटी के जज्बातों की फिक्र थी उसे। अपनी बेटी को टूटते, डरते, सिकुड़ते नहीं देखना चाहती थी शिवानी की माँ…

घर में नयी बहू के स्वागत में जो भी रस्में ननद करती है, सब शिवानी ने की।

इस तरह प्यार, विश्वास और अपनेपन ने, समाज की मानी जानेवाली मान्यताएं, जिसके कारण महिलाओं को कुंठित होना पड़ता है, शिवानी की माँ ने उसे प्रेम और श्रद्धा में बदल दिया।

आज तक शिवानी की भाभी-भैया का कुछ भी बुरा न हुआ। इसलिए गलत समाजिक मान्यताओं को बदलना ही चाहिए, शिवानी के माँ की तरह।

मूल चित्र : Still From Short Film That Gusty Morning/Royal Stag Barrel Select Large Short Films, YouTube

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