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किशोर बेटी और पिता के अनकहे भरोसे की कहानी है शॉर्ट फिल्म शिम्मी

तमाम सवालों के बीच किशोर बेटी और अकेले पिता के बीच भरोसे का जो मजबूत पूल बांधने की कोशिश शॉर्ट फिल्म शिम्मी करती है, वह बहुत खुबसूरत है। 

तमाम सवालों के बीच किशोर बेटी और अकेले पिता के बीच भरोसे का जो मजबूत पूल बांधने की कोशिश शॉर्ट फिल्म शिम्मी करती है, वह बहुत खुबसूरत है। 

स्कैम वेब सीरीज़ से अपनी पहचान बना चुके प्रतीक गांधी की शॉर्ट फिल्म शिम्मी ऐमेज़ॉन मिनी टीवी पर रिलीज हुई।

बीस-पच्चीस मिनट की ये शॉर्ट फिल्म किशोर लड़कियों के जीवन के उस कठिन दौर के बारे में बात करती है जिसको समझने की जिम्मेदारी अक्सर मां के ऊपर ही होती है।

दिशा नोयोनिका रिंदानी लिखित और निर्देशित शॉर्ट फिल्म शिम्मी की कहानी, असल में हर परिवार में किशोर लड़के-लड़कियों के समस्या की कहानी है, जो यह कह रही है कि परिवार में माता-पिता दोनों को किशोर होते बेटे-बेटियों के साथ उस स्पेस को बनाने की जरूरत है, जहां वह अपने माता-पिता किसी से भी अपनी किसी भी समस्या पर खुलकर बात कर सकें।

क्या है शॉर्ट फिल्म शिम्मी की कहानी

शिम्मी की कहानी शुरू होती है स्कूल बच्चों को डांस स्टेप सीखाने से जिसमें म्यूजिक “शिम्मी-शिम्मी” ही चल रहा है। जहां सब बच्चे अपनी दुनिया में मगन हो कर ‘शिम्मी’ कर रहे हैं, राइमा(चाहत तेवानी) को दिखाते हैं कि वह डांस करने से हिचक रही है। डांस टीचर को उसकी परेशानी समझने का समय नहीं है और वह राइमा को कुछ बच्चों के साथ ‘नेक्स्ट टाइम ट्राई’ करने को कहती है।

स्कूल से पिक करने आए पिता (प्रतीक गांधी) कूल डैड बनने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन थोड़ी बायतों में ही पता चल जाता है कि बेटी-पिता का संबंध इतना भरोसे वाला नहीं बन पाया है। वह राइमा की बात मान जाते हैं लेकिन सिर्फ इसलिए कि उन्हें कुछ और सूझ नहीं रहा।

बाद में पता चलता है कि माँ और पिता सेपरेट होने को हैं। लेकिन पिता भी अपनी परेशानी बेटी को कह नहीं पा रहा है।

राइमा बढ़ती उम्र में साथ जो समस्याएं आम होती हैं, जैसे कि अंडरर्गारमेंट शॉपिंग, जिसका समाधान माँ झट से कर देती थी, वह एक पिता से नहीं कह पा रही। हालांकि पिता जब इस समस्या को समझ पाता है वह राइमा को यह कहकर समान्य करने की कोशिश करता है कि ‘वह जब उसकी उम्र का था तो उसकी मां ही इसका समाधान करती थी’,  इसलिए झिझक की ज़रुरत नहीं है। पर वास्तव में झिझक खुद पिता को भी हो रही है।

जब बेटी-पिता दोनों शॉप पर पहुंचते हैं तो झिझक का एक और दौर शुरू होता है बेटी से अधिक पिता के लिए। बस इतना ज़रूर ज़ाहिर होता है कि ये सब वह किसी के लिए पहली बार कर रहा है।

वहाँ क्या होता है? उसके लिए आपको अमेज़न मिनी टीवी पर ये शार्ट फिल्म देखनी होगी।

महंगे अंडर-गार्मेंट इस बात के तरफ तो इशारा कर ही देते है कि जो चीज इंसानी जरूरत का अहम हिस्सा है वह सस्ता क्यों नहीं होना चाहिए।

इस तरह एक किशोर बच्ची और उसके पिता का जीवन कुछ अनजान टापूओं से घूमते-फिरते भरोसे के उस टीले पर आ पहुंचता है। जहां पिता भी अपनी बेटी से कह पाता है, “बाबू, अगर मां नहीं भी आई तो कोई दिक्कत नहीं है न?”

एक साथ कई सवाल पूछती है शिम्मी

कोई भी समाज जिसमें पिता को कम अभिव्यंजक माना जाता है, साथ ही साथ जहां सामाजिक संस्थाओं के ऊपर भी समाजिक जिम्मेदारी के साथ-साथ घरेलू नैतिकता की जिम्मेदारी भी है, किशोर लड़के-लड़कियों के सामाजिक विकास और समाजीकरण के संबंध में, वहां शॉर्ट फिल्म शिम्मी एक साथ कई सवाल सतह पर लाकर पटक देती है।

जाहिर है शिम्मी में पूछे जा रहे सवाल मौजूदा दौर में सर के बल खड़े हैं, जिसको पैर के बल खड़ा करना किशोर लड़के-लड़कियों के कई समस्याओं का समाधान तो कर ही देगा, उनमें जेंडर संवेदनशीलता का पुर्नपाठ परिभाषित करेगा।

गोया, किशोर होते बच्चे-बच्चियों के कठिन दिनों को समझने की जिम्मेदारी मां के कंधे पर ही क्यों है?

यह माता-पिता की सामूहिक जिम्मेदारी क्यों नहीं है?

परिवार में माता-पिता संयुक्त रूप से इसका निर्वाह क्यों नहीं कर सकते?

स्कूल जहां किशोर होते बच्चों का सबसे अधिक समय गुजरता है वह रचनात्मक तरीके से किशोर लड़के-लड़कियों की समस्या को क्यों नहीं समझ पाता? या युवा लड़के-लड़कियों के लिए काऊन्सलिंग की व्यवस्था क्या जरूरी नहीं है, जब वह अपने शारीरिक-मानसिक विकास के साथ कई तरह के अंर्तविरोधों से गुजर रहे हों?

साथ ही साथ, सामाजिक जीवन में जिस चीजों कीआवश्यकता सबसे अधिक महंगे क्यों हैं? गौरतलब है कि आधी आबादी कि सबसे बड़ी जरूरत सैनटरी पैड्स तक पर सरकारे टैक्स ही नहीं लगा रखा है, जीएसटी के दायरे में लाकर एक बड़ी आबादी के पहुंच से दूर कर दिया है।  सरकारें महिलाओं के जीवन के उन जरूरतों को किसी भी टैक्स के दायरे से बाहर क्यों नहीं लाती जिसका सीधा संबंध आधी-आबादी के स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्थास्थ्य से जुड़ा हुआ है।

इन तमाम सवालों के बीच में बेटी और पिता के बीच भरोसे का जो मजबूत पूल बांधने की कोशिश की है, वह बहुत खुबसूरत है। इस खुबसूरती की तलाश हर बेटी को अपने पिता से होती है, जो वैसे तो अपनी बेटी पर जान छिड़कता है पर सामाजिक मर्यादा और नैतिक नियम-कायदों के बंधनों में बेटी के साथ खड़ा नहीं हो पाता है।

मूल चित्र : Stills from Short Film Shimmy, YouTube  

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