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मैं खुश तो मेरा परिवार भी खुश…

एकांत मिलते ही मां ने मेरी नाराज़गी का कारण जानना चाहा तो मैं रोने लग गई। मां ने बड़े प्यार से पूछा, "क्या कोई रूपए पैसे की कमी है?"

एकांत मिलते ही मां ने मेरी नाराज़गी का कारण जानना चाहा तो मैं रोने लग गई। मां ने बड़े प्यार से पूछा, “क्या कोई रूपए पैसे की कमी है?”

मानव मन भी अजब पहेली है। जीवन के किस मोड़ पर पहुंच कर, आपकी सोच में क्या परिवर्तन आ जाए, कुछ कह नहीं सकते हैं।

कहते हैं हमारे मन में दिन में कई प्रकार के भाव आते हैं। एक पल हमारा मन प्रफुल्लित हो कर बल्लियों उछलने लगता है, परंतु दूसरे ही क्षण कुछ ऐसा घटित हो जाता है कि वही मन निराशा के गर्त में डूब जाता है। दिन भर मन के भावों में उतार चढ़ाव आता रहता है। परंतु कभी कभी एक ही भाव इतना हावी हो जाता है कि हमारे सारे व्यक्तित्व को बदलकर रख देता है।

ये भी कहते हैं, यदि आप दु:ख पर ज्यादा ध्यान देंगे तो हमेशा दुखी रहेंगे और सुख पर ध्यान देंगे तो हमेशा सुखी रहेंगे। आप जिस पर ज्यादा ध्यान देंगे, वही भावना सक्रिय हो जाती है। इस प्रकार ध्यान ही  जीवन की सबसे बड़ी कुंजी है। अर्थात सकारात्मक सोच आप के जीवन को निखार देती है, वहीं नकारात्मक सोच जीने की इच्छा ही समाप्त कर देती है।

जीवन वही होता है और चुपचाप मंथर गति से चलता रहता है पर हमारी सोच हमारे स्वभाव, व्यवहार को बदलकर रख देती है।

वर्षों पूर्व कुछ मेरे जीवन में भी कुछ ऐसा ही घटित हुआ। सब कुछ अच्छा भला चल रहा था। बच्चे अपनी उच्च शिक्षा के दौर में थे, पति अपने व्यवसाय के उच्चतम मुकाम पर पहुंच गए थे और मैं अपने आयु के उस पड़ाव पर थी, जहां स्त्री में हार्मोनल परिवर्तन के कारण शारीरिक ही नहीं मानसिक स्वास्थ्य में  भी गिरावट आ जाती है।

मेरे  स्वभाव में भी उग्रता, चिड़चिड़ापन आ रहा था। बात-बात में सबसे उलझ पड़ती थी। घरेलू हेल्पर्स से भी क्रोधित हो जाती थी। हमेशा तनाव ग्रस्त रहती थी। मेरे इस परिवर्तित स्वभाव के कारण परिवार के सदस्य भी सहमे सहमे रहते थे।

उन्ही दिनों मेरे मम्मी-पापा हमें मिलने आए। मौका मिलते ही मेरे पति ने बड़े ही भारी मन से मेरी ओर इशारा करते हुए कहा, “इतने वर्षों  तक हम दोनों ने खुशी-खुशी जीवन बिताया है, पर आज कल पता नहीं क्यों ‘ये’ हर वक्त कुछ उखड़ी-उखड़ी सी रहती है।”

दामाद का यह शिकायती लहजा सुनकर, ज़ाहिर सी बात है, मम्मी-पापा अवाक् रह गए।

एकांत मिलते ही मां ने मेरी नाराज़गी का कारण जानना चाहा। मां से बात करते हुए मैं रोने लग गई। मां ने बड़े प्यार से पूछा, “क्या कोई रूपए पैसे की कमी है?”

मैंने इंकार में सिर हिला दिया।

फिर बहुत ही गहरी नज़र से मुझे देखा और कहा, “कोई और परेशानी है?”

“नहीं मां! ऐसी कोई बात नहीं है”,  मां का आशय समझ कर मैंने उत्तर दिया।

सुनकर मां ने आश्वस्त हो कर चैन की सांस ली और बोली, “बता, फिर क्या बात है?”

“मैं बहुत अकेली पड़ गई हूं, मां! बच्चे अपनी पढ़ाई में लगे रहते हैं और ‘ये’अपने काम में। ऐसा लगता है जैसे किसी को मेरी जरूरत ही नहीं है। इस लिए मेरा किसी काम में मन नहीं लगता है। हर समय मन उदास रहता है”, मैंने रोते हुए कहा। 

“बस, इतनी सी बात है? तूने तो हमें डरा ही दिया था मुन्नी! तुझे ऐसा क्यों लगने लगा कि किसी को तेरी ज़रुरत नहीं है। देखती नहीं कि तुम्हें लेकर दामाद जी कितने परेशान हैं? फिर बच्चे भी कैसे सहमे सहमे से हैं? तुझे तो खुश होना चाहिए कि बच्चे मन लगाकर पढ़ाई कर रहे हैं। नहीं तो आज कल मां बाप को यही शिकायत रहती है कि बच्चे पढ़ाई पर ध्यान ही नहीं देते। तुम देख नहीं रही हो कि तुम्हारे उदास रहने से घर का वातावरण कितना गमगीन हो गया है। समझ लो, तुम खुश तो सब खुश। सब खुश तो पूरा घर खुश।

वर्षों बाद आज भी जब कभी मेरा मन  परेशान होता है, तो मां की बात मुझे अनोखा सुकून देती है।

मूल चित्र : Still from Bollywood Film English Vinglish, YouTube

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