कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

क्या सच में ‘काबुलीवाले की बंगाली बीवी’ सुष्मिता बंधोपाध्याय की मौत का कारण बनी?

सुष्मिता बंधोपाध्याय की हत्या के बाद 'काबुलीवाले की बंगाली बीवी' मैंने पढ़ी। मेरे जेहन में यह बात खबरों को पढ़कर बार-बार कौंध रही थी कि...

सुष्मिता बंधोपाध्याय की हत्या के बाद ‘काबुलीवाले की बंगाली बीवी’ मैंने पढ़ी। मेरे जेहन में यह बात खबरों को पढ़कर बार-बार कौंध रही थी कि…

मौजूदा समय में तालिबान के सड़कों पर महिलाओं के संघर्ष के खबरों को देखते हुए, एक सलाम तो सुष्मिता बंधोपाध्याय के लिए बनता है जिन्होंने पूरी दुनिया के सामने तालिबान को नंगा कर दिया।

बीते दिनों दुनिया के राजनीति में और भारत के पड़ोसी देश अफगानिस्तान के राजनीति में एक बड़ा बदलाव हुआ, जिसने पूरी दुनिया को अपनी राजनीति को नये सिरे से पुर्नपरिभाषित करने का मंच उपलब्ध करा दिया। भारत के लिए अफगानिस्तान में बदलती राजनीति के एक अलहदा मायने हैं, इसकी वज़ह अफगानिस्तान के साथ भारत के सांस्कृतिक रिश्ते को कहा जा सकता है।

इंटरनेट पर अफगानिस्तान के बारे में पढ़ते हुए अपने बुक शेल्फ की तरफ नज़र गई तो दो किताबों पर मेरी निगाहें ठहर गई। पहली रविन्द्र नाथ ठाकुर की लिखी बहुचर्चित कहानी ‘काबुली वाला’ और दूसरा सुष्मिता  बंद्योपाध्याय की किताब ‘काबुलीवाले की बंगाली बीवी’।

यह महज सयोंग है कि दोनों ही किताब के दास्तानों पर फिल्मी कहानी बनी और दर्शकों ने उसको काफी पसंद किया। हालांकि यह किताब पहले बंग्ला में आई पर इसका अनुवाद नीलम शर्मा अंशु ने हिंदी में किया।

सुष्मिता बनर्जी (बंद्योपाध्याय) की किताब ‘काबुलीवाले की बंगाली बीवी’ की सच्ची दास्तान और अफगानिस्तान में तालिबान शासन के खुदमुख्तारी के बाद वहां की तरक्कीपसंद महिलाओं का वहां का सड़कों पर पुरज़ोर विरोध आंखो के आगे कई तस्वीर बड़ी तेजी से फास्ट फारवार्ड कर देता है, जो ‘काबुलीवाले की बंगाली पत्नी’ को पढ़ते समय आखों से बनते-बिगड़ते रहते हैं।

कौन हैं सुष्मिता बंधोपाध्याय

कलकत्ते के बंगाली बाह्मण परिवार की सुष्मिता बंधोपाध्याय पेशे से डाक्टर और अविवाहित रहने का मन बना कर, कलकत्ते के सरकारी अस्पताल में अपनी प्रैक्टीस कर रही थीं।

वो एक अफगानी पुरुष जानबाज खान का ईलाज करते-करते, प्यार कर बैठी और परिवार के इच्छा के विरूद्ध शादी करके अफगान पहुंच गई। वहां पहुंच कर पता चला जानबाज पहले से शादीशुदा है और उसके बच्चे भी हैं। परिवार के मर्जी के खिलाफ शादी करने के कारण अपनी नियती मानकर जानबाज को अपना लिया।

अफगानिस्तान पर तालिबान का शासन था और वहां महिलाओं की स्थिति इतनी बद से बदतर थी कि सुष्मिता का जीवन भयावह हो जाता है। बहुत ही मुश्किल हालात में उसने वहां से भागने का फैसला किया और कामयाब भी हो गई।

भारत वापस आकर सुस्मिता ने अफगानिस्तान में तालिबान के यंत्रणाओं का कच्चा चिठ्ठा अपनी किताबों में खोलना शुरू किया, जिसमें सबसे अधिक चर्चित ‘काबुलीवाले की बंगाली बीवी’ हुई।

सुष्मिता ने जिस बेबाकी से काबुल के बिताये दिनों को अपनी किताब में दर्ज किया, वही उनकी हत्या का कारण बना। जाहिर है तालिबानी उस किताब से खुश नहीं थे। बाद में ‘Escape from Taliban‘ 2003 में फिल्म भी आई, जिसमें मनीषा कोईराला ने बेहतरीन अदाकारी की।

क्या है ‘काबुलीवाले की बंगाली बीवी’ में

सुष्मिता की हत्या के बाद ‘काबुलीवाले की बंगाली बीवीमैंने पढ़ी। जाहिर है मेरे जेहन में यह बात अखबारों के खबरों को पढ़कर बार-बार कौंध रही थी कि एक किताब में दर्ज ब्यौरा किसी के मौत का कारण कैसे बन सकता है?

सुष्मिता बनर्जी ने अपने आत्मकथात्मक उपन्यासों में जिनका भय दिखाया है वही सुष्मिता की मौत का कारण बना। बेशक इस किताब को एक बार फिर से पढ़ना चाहिए क्योंकि आज वही तालिबान अपने सरपरस्ती में महिलाओं के लिए बेहतरीन कदम उठाने का मर्सिया गा रहे हैं।

बकौल काबुलीवाले की बंगाली बीवी सुष्मिता बंधोपाध्याय के शब्दों में यह दर्ज है

“किसी विशेष धर्म, धार्मिक व्यक्ति या धार्मिक दर्शन को बेवजह आघात पहुँचाने के लिए मैंने कलम नहीं थामी। समाज और जीवन में धर्म का महत्त्वपूर्ण स्थान है, मैं दिल से इसे स्वीकार करती हूँ। परन्तु धर्म के नाम पर प्रबल वीभत्सता संत्रास उत्पन्न कर, धर्म की दुहाई देकर जो लोग इनसानों के बीच अलगाव की दीवार खड़ी करते हैं, स्त्रियों की स्वाधीनता छीनकर उन्हें अन्तःपुर की अँधेरी दुनिया में भेज देते हैं।

अफगानिस्तान में जो कुछ घटित होते हुए मैंने देखा है, वह धर्म का विकृत व्यभिचार है, जिसने इस्लाम की पवित्रता और गरिमा को धूल में मिला दिया है। उन्होंने कुरान शरीफ की मनगढ़ंत अपव्याख्या की है। वे मानवता का अपमान कर रहे हैं।”

तालीबान के संकीर्णता अपव्याख्या और अवमूल्यन की तरफ ही सुष्मिता बंधोपाध्याय बड़ी बेबाकी से अपनी बात रखती हैं, जो पढ़ने के दौरान पूरे शरीर में सिहरन पैदा कर देता है।

“Escape from Taliban (2003) ” में फिल्म के काफी बाद एपिक इंटरमेंट चैनल ने भी The Great Escape सीरिज में सुष्मिता बंधोपाध्याय के कहानी को शामिल किया और दुनिया के सबसे बड़े स्केप की कहानी बताई, जिसके लिए अटूट साहस, हिम्मत और अपने आप पर विश्वास बहुत जरूरी है।

मूल चित्र : Stills from Escape From Talibaan/The Great Escape/DNA

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

240 Posts | 719,232 Views
All Categories