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"कहाँ चल दी बहू? इतनी जल्दी रसोई बन गई क्या?" रेखा को छत की ओर जाते देख सासूमाँ ने पूछा तो रेखा ठिठक गई।
“कहाँ चल दी बहू? इतनी जल्दी रसोई बन गई क्या?” रेखा को छत की ओर जाते देख सासूमाँ ने पूछा तो रेखा ठिठक गई।
रसोई में काम करती रेखा को जब काफ़ी देर से अपने छः साल के बेटे दीपू की आवाज़ नहीं आयी तो रेखा तो थोड़ा चिंता होने लगी। कहीं छत पे तो नहीं चला गया दीपू? अभी छोटा ही तो है? रात बारिश भी हुई थी कहीं पैर ना फिसल जाये… इस चिंता में जल्दी से गैस बंद कर रेखा अपने बेटे को देखने छत की ओर लपकी।
“कहाँ चल दी बहु? इतनी जल्दी रसोई बन गई क्या?” रेखा को छत की ओर जाते देख सासूमाँ ने पूछा तो रेखा ठिठक गई।
“वो माँजी, दीपू की आवाज़ नहीं आयी तो वहीं देखने जा रही थी कहीं छत पे तो नहीं चला गया…”
“मेरे रहते इतनी चिंता क्यों करती है बहू? बारिश के दिनों में उसे छत पे जाने दूंगी क्या? देख मेरे कमरे में बैठा है।”
अपनी सासूमाँ, राधा जी बात सुन रेखा थोड़ी निश्चिंत हुई। कमरे में जा कर देखा तो दीपू इत्मीनान से अंधरे कमरे में बैठा मोबाइल पे गेम्स खेल रहा था।
“दीपू, कितनी बार कहा है मोबाइल मत लिया कर लेकिन तुम समझते ही नहीं हो। इतने खिलौने पड़े है उनसे खेलो! मोबाइल से आँखे ख़राब होंगी बेटा।”
रेखा को दीपू के हाथों में मोबाइल देख गुस्सा तो बहुत आया लेकिन वो जानती थी इसमें गलती उसके बेटे की कम उसकी दादी की ज्यादा थी, आखिर आदत तो उन्होंने ने दे डाली थी मोबाइल की।
“माँजी, आप दीपू को क्यों अपना मोबाइल दे देती हैं। आंख ख़राब हो जायेगी इसकी और मानसिक स्वस्थ पे असर होगा वो अलग। थोड़ा ध्यान दें इस बात पर।”
“ऐसे कैसे आंख ख़राब हो जायेगी? और थोड़ी देर फ़ोन देख लेगा तो क्या पागल हो जायेगा मेरा दीपू? ख़बरदार बहू जो कुछ अपशगुन बोला तो! मेरे आँखों का तारा है मेरा दीपू, जो कहेगा वो करुँगी। हम दादी पोते के बीच में तू मत आया कर बहू। थोड़ी देर फ़ोन क्या देख लेता है तुम्हें परेशानी होने लगती है? अरे माँ हो कि दुश्मन!”
“दुश्मन होती तो कभी मना नहीं करती माँजी, माँ हूँ तभी चिंता होती है दीपू की।” मन ही मन कह रेखा बस मन मसोस कर रह गई।
दीपू, के जन्म पे कोई सबसे अधिक ख़ुश था तो उसकी दादी राधा जी। पति के मृत्यु के बाद राधा जी खुद को बहुत अकेला महसूस करती, इसलिए जब दीपू का जन्म हुआ तो उन्हें मानो एक खिलौना मिल गया।
रेखा अपनी सास की मन की बात समझती थी सो दीपू की जिम्मेदारी अपनी सासूमाँ के साथ बाँट ली। अपनी दादी का खुब दुलार पता दीपू उसकी हर जायज नाजायज मांग राधा जी एक पल में पूरी कर देती। नतीजा सामने था!
पांच दस मिनट मोबाइल देखना कब घंटों देखने में बदल गया पता ही नहीं चला। अब तो दीपू बिना फ़ोन देखे ना खाता ना पीता और जब रेखा टोकती राधा जी रेखा को ही झिड़क देती।
अपने बेटे के आँखों और मानसिक स्वस्थ को ले रेखा बहुत परेशान रहती रेखा।
कहते हैं ना अति हर चीज की बुरी होती है। छोटी उम्र में अंधरे और कम रौशनी में घंटो मोबाइल देखने का नतीजा सामने था। दीपू चिड़चिड़ा और जिद्दी तो हो ही गया था अब उसके आँखों से लगातार पानी भी गिरने की समस्या भी हो गई। साथ ही उसका सर भी दर्द करता रहता।
“माँ सिर दर्द हो रहा है…!”
दीपू को जब लगातार सिर दर्द रहने लगा तो परेशान रेखा डॉक्टर के पास ले गई।
“आंख ख़राब हो गई हैं आपके बेटे की। लगातार टीवी और मोबाइल देखने का नतीजा है ये। इतनी कम उम्र में बच्चों को मोबाइल देना कितना नुकसान देता है क्या आपको जानकारी नहीं? आप जैसे अभिभावक पढ़े लिखें हो कर भी ऐसी गलती करते हैं जिसका नतीजा बच्चों को भुगतना पड़ता है। अब पूरी जिंदगी पावर का चश्मा लगाना होगा बच्चे को साथ ही कुछ समय तक दवाइयां भी चलेंगी।”
दीपू की हालत देख डॉक्टर ने रेखा को ही खुब खड़ी खोटी सुना दी। जिसका डर रेखा को था आज वो सामने था।
“देख लिया माँजी, आपके आँखों के तारे के आँखों पे पावर का चश्मा चढ़ गया। बच्चे को लाड-प्यार उतना ही सही होता है जितना उसके हित में हो। पोते के मोह में फंस आपको मेरी बातें भी किसी दुश्मन की लगती थीं। आज अंजाम आपके सामने है।”
चाहा तो राधा जी ने भी कभी नहीं था की उनके दीपू की ऐसी हालत हो लेकिन अब पछतावे के सिवा वो कुछ कर भी नहीं सकती थी।
प्रिय पाठकगण, बच्चों को दुलार उतना ही दें जितना उनके भविष्य को ना बिगाड़े। अकसर हम दुलार में बच्चों की हर ज़िद पूरी कर देते हैं बिना ये सोचे कि इसका गलत असर तो नहीं होगा बच्चों पे।
मूल चित्र : Still from Best of Amma/MensXP, YouTube
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