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श्रुति को बस अपनी गुड़िया से खेलना था और पहले से ही थकी और चिढ़ी मानसी ने एक पल को अपना आपा खो दिया एक तेज़ थप्पड़ श्रुति के चेहरे पे जड़ दिया।
“ये क्या भाभी श्रुति अभी तक बोलती नहीं है? मेरा राजू तो एक साल की उम्र में ही बोलना शुरू कर दिया था और श्रुति के उम्र तक तो इतनी बातें करता था की पूछो मत!”
अपने बेटे के तारीफ में क़सीदे पढ़ती अपनी ननंद की बातें सुन मानसी सिर्फ मुस्कुरा कर रह गई। जानती थी ननंद की बातें सिर्फ बातें नहीं थीं, वो ताने भी थे जो वो अकसर सुनती थी, कभी श्रुति की स्पीच डिले को ले कर तो कभी उसकी पढ़ाई को ले कर।
मानसी की शादी एक संयुक्त परिवार में हुई थी। घर में सास ससुर, जेठ जेठानी और ननंद थी। शादी के दो साल बाद मानसी और अमन के घर पहली संतान के रूप में श्रुति का जन्म हुआ।
श्रुति के जन्म से दोनों पति पत्नी बहुत ख़ुश थे श्रुति थी भी उतनी ही प्यारी गोल-मटोल सी। लेकिन जल्दी ही समझ आने लगा कि श्रुति सामान्य बच्चों से थोड़ी अलग थी।
अपनी उम्र के बच्चों की तुलना में श्रुति का विकास पीछे था। एक माता-पिता के तौर पे मानसी और अमन परेशान हो उठे डॉक्टर से संपर्क करने पे पता चला श्रुति को माइल्ड औटिज्म था। डॉक्टर ने साफ कह दिया था श्रुति को हर वो काम करने में दुगनी मेहनत लगेगी जो काम आम बच्चे आसानी से सीख लेते हैं। मानसी और अमन बहुत मायूस हुए ये सुन कर।
“खुद को संभालो मानसी! हम इस तरह टूट नहीं सकते। अपनी बच्ची के लिये संभालना होगा हमें।” अमन के समझाने पर मानसी ने भी श्रुति के लिये खुद को मानसिक रूप से तैयार कर लिया।
श्रुति के ढेरों काम होते। रोज़ उसे थेरेपी के लिये ले जाना, साथ ही घर पे भी एक्टिविटी करवाना। ये सब तो फिर भी कुछ आसान था सबसे कठिन तो घर वालों को समझाना। घर वालों के लिए कभी श्रुति की समस्या सिर्फ डॉक्टर के पैसे लूटने का ज़रिया था तो कभी श्रुति उनकी नज़रो में शरारती बच्ची थी जो कुछ सीखना ही नहीं चाहती थी।
घर में जेठ देवर के भी बच्चे थे जो सामान्य थे, उनसे हर बात में श्रुति की तुलना की जाती। हर बात मानसी को ये अहसास करवाया जाता कि कितनी ख़राब परवरिश कर रही थी वो अपनी बेटी की।
अब तो हर रोज़ एक जंग सी होती थी श्रुति और घरवालों के बीच और उनके बीच ढाल बनती मानसी।
“बेटी बिगाड़ रही हो बहू। दूसरे घर जाना है इसे, कोई काम तो छोड़ो बोलती भी नहीं ठीक से।” सास के ताने एक माँ के कलेजे को चीड़ देते तो जेठानी-देवरानी और नन्दें अपने बच्चों की गुणगान कर हर वक़्त श्रुति और मानसी को नीचा दिखाते।
“अमन, रोज़ रोज़ के तानो से मैं थक गई हूँ। आखिर क्यों मेरी ही बच्ची ऐसी है?” उदास हो मानसी अमन से सवाल करती।
“मानसी, सबको ईश्वर नहीं चुनते स्पेशल बच्चों के लिये, उन्हें ही चुनते है जो खुद स्पेशल होते हैं ईश्वर की नज़रो में। देखना हमारी मेहनत रंग लायेगी एक दिन हमारी श्रुति भी आम बच्चों जैसी होगी।”
दोनों पति पत्नी एक दूसरे को दिलासा देते और हर रोज़ अपनी बच्ची के के लिए दुआ मांगते।
इन सब बातों से बेखबर श्रुति तो बस अपनी दुनियां में मस्त रहती। रोज़-रोज़ के तानो से अब मानसी भी परेशान सी रहने लगी थी सोचती क्यों मुझे ही ईश्वर ने ऐसी जिंदगी दी?
ऐसे ही एक दोपहर मानसी एक्टिविटी करवाने के लिये श्रुति को बार बार बुला रही थी और श्रुति थी कि उसे बस अपनी गुड़िया से खेलना था। पहले से ही थकी और चिढ़ी मानसी ने एक पल को अपना आपा खो दिया एक तेज़ थप्पड़ श्रुति के चेहरे पे जड़ दिया।
बच्ची का गोरा चेहरा लाल हो गया दर्द से तड़पती भींगी आँखों से श्रुति ने अपनी माँ को देखा जैसे पूछ रही हो, “मैं ऐसी हूँ इसमें मेरा क्या दोष माँ?”
श्रुति की वो सवालिया नज़रे देख मानसी काँप उठी अपनी गलती का एहसास हो चुका था मानसी को। बिना एक पल देर किये अपनी बच्ची को कलेजे से चिपका लिया।
“माफ़ कर दे मेरी बच्ची! सबके तानो और बातों से तेरी माँ का सब्र आज टूट गया था। मैं भूल गई थी की ईश्वर ने मुझे चुना है तेरे जैसी प्यारी बच्ची के लिये। दूसरों की अपेक्षा के बोझ तले में कमजोर पड़ गई थी।”
अपनी बच्ची से बार बार माफ़ी मांगी मानसी के आँखों से आत्मागलानी के आंसू बह रहे थे तो दरवाज़े पे खड़े अमन भी अपने आंसू छिपा नहीं पाये।
“तैयारी शुरू कर दो मानसी हम जल्दी ही अपनी बच्ची के साथ कहीं और शिफ्ट हो जायेंगे।”
“लेकिन क्यों अमन?” पनीली आँखों से मानसी ने पूछा।
“क्यूंकि हमारी बच्ची अब दूसरों की अपेक्षाओं के बोझ नहीं उठायेगी।”
और जल्दी ही मानसी और अमन ने वो घर छोड़ दिया अपनी बच्ची के लिये अपने लिये अपने परिवार के एक सुखद भविष्य के लिये।
मूल चित्र : Still from Short Film Beti/The Short Cuts, YouTube
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