कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

कब तक इंतज़ार करोगी, बताओ जीना कब शुरू करोगी?

सभी महिलाओं से मेरा एक सवाल है, ताउम्र हम सब के मन का करते हैं पर अपने मन का कुछ करने की हिम्मत क्या हमारे अंदर है?

सभी महिलाओं से मेरा एक सवाल है, ताउम्र हम सब के मन का करते हैं पर अपने मन का कुछ करने की हिम्मत क्या हमारे अंदर है?

कब तक ऐसे ही रहोगी, अपने मन का अब नहीं तो कब करोगी?

खुदा ने तो मौक़े दिए हैं सबको बराबर के तुम कब समझोगी?

ज़िंदगी ख़ामोशी से आहिस्ता आहिस्ता कम हुई जा रही है

तुम बेफ़िक्री में बैठी क्या सोच रही हो ये ख़त्म हुई जा रही है

किसके इंतज़ार में तुम अपने आज को मिटा रही हो?

कल के इंतज़ार में मिले अनगिनत मौक़े गँवा रही हो

सबको खुश करने की ख़ातिर खुद को भुला रही हो?

कब तक सिर्फ़ दूसरों को देखोगी उनके लिए जियोगी? 

बड़ी मुश्किल से तो इंसा यहाँ आता है

क्या इस नायाब जीवन को यूँ ही बेकार करोगी?

कब तक अंदर ही अंदर घुटोगी?

माना वक्त कम है पर तुझमें बड़ा दम है

ज़िंदगी में ख़ुशियाँ भी तो हैं सिर्फ़ गम हैं

अब जागो और पूरे करो उन सपनों को

जो बंद अलमारी में कहीं दबे हैं, भीगी पलकों में कही छिपे हैं

उन्हें बाहर निकालो और ये ज़िंदगी सजा लो

अब दिल में आग और उम्मीद जगा लो

अब कब नहीं करोगी तो अपने मन का कब करोगी?

बताओ मुझे तुम जीना कब शुरू करोगी? 

बताओ मुझे तुम जीना कब शुरू करोगी?

मूल चित्र : Still from Open Your Mind | Malayalam Short Film, YouTube 

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

SHALINI VERMA

I am Shalini Verma ,first of all My identity is that I am a strong woman ,by profession I am a teacher and by hobbies I am a fashion designer,blogger ,poetess and Writer . मैं सोचती बहुत हूँ , विचारों का एक बवंडर सा मेरे दिमाग में हर समय चलता है और जैसे बादल पूरे भर जाते हैं तो फिर बरस जाते हैं मेरे साथ भी बिलकुल वैसा ही होता है ।अपने विचारों को ,उस अंतर्द्वंद्व को अपनी लेखनी से काग़ज़ पर उकेरने लगती हूँ । समाज के हर दबे तबके के बारे में लिखना चाहती हूँ ,फिर वह चाहे सदियों से दबे कुचले कोई भी वर्ग हों मेरी लेखनी के माध्यम से विचारधारा में परिवर्तन लाना चाहती हूँ l दिखाई देते या अनदेखे भेदभाव हों ,महिलाओं के साथ होते अन्याय न कहीं मेरे मन में एक क्षुब्ध भाव भर देते हैं | read more...

49 Posts | 165,092 Views
All Categories