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सिफान हसन की कहानी इस देश के हर नागरिक को जाननी ज़रूरी है!

सिफान हसन की कहानी अपने देश में जरूर सुनाई जानी चाहिए क्यूँकि वो जिस देश का प्रतिनिधित्व टोक्यो ओलंपिक में कर रही थी, वह वहाँ रिफ्यूजी है...

सिफान हसन की कहानी अपने देश में जरूर सुनाई जानी चाहिए क्यूँकि वो जिस देश का प्रतिनिधित्व टोक्यो ओलंपिक में कर रही थी, वह वहाँ रिफ्यूजी है…

2024 में पेरिस में खेलों के अगले महाकुंभ में मिलने के वादे के साथ कोरोना महामारी के दौर का एक साल बाद शुरू हुआ ओलंपिक खत्म हुआ।

आने वाले ओलंपिक में हम कोरोना महामारी से कितना मुक्त हो पाएँगे इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है पर उम्मीद करनी चाहिए पेरिस में ओलपिंक के समय स्टेडियम दर्शकों से खचा-खच भरे हुए होंगे और हर एथलीट का उत्साह तालियों के गड़गड़ाहट से दोगुना-चौगुना होगा।

हर ओलंपिक गोल्ड, सिल्वर और ब्रॉन्ज़ मेडल के साथ-साथ तमाम एथलीटों के मेहनत और संघर्ष के कहानियों को छोड़ जाता है। जिससे न केवल नए एथलीट बल्कि आने वाली नई पीढ़ी भी प्रेरणा लेती है।

कहानी अगर महिला एथलीट की हो तो उसके प्रति सम्मान और अधिक बढ़ जाता है। इसकी एक मात्र वज़ह यह है कि पूरी दुनिया में महिलाओं के संघर्ष और पसीने का रंग ही अलग होता है। वह केवल अपने लिए एक सम्मानजनक जगह ही नहीं बनाता है कई अबोध लड़कियों के लिए एक मिसाल भी बन जाता है।

टोक्यो ओलंपिक में सिफान हसन वही एथलीट है जो पारस के पत्थर की तरह एक बेमिसाल कहानी बनकर हम सब के सामने आई है। अपने हिम्मत और हौसले से सिफान हसन ने वह मुकाम हासिल किया है जो एक समाज, देश और परिवार के लिए बेहद खास है।

कौन है सिफान हसन (Sifan Hassan Kaun Hai)?

 Source : Twitter

सिफान हसन नीदरलैंड के लिए खेलने वाली एक रिफ्यूजी लड़की है जिसने टोक्यो ओलिंपिक में अकेले ही दो गोल्ड और एक ब्रॉन्ज़ मेडल जीता है। सिफ़ान इसलिए भी ख़ास हैं क्योंकि वो लड़की होने के साथ साथ एक रिफ्यूजी भी हैं।

नीदरलैंड तथा यूरोप  की वह धर्मनिरपेक्ष संस्कृति भी अत्यंत महत्वपूर्ण है जो मानवीय आधार पर बिना किसी धार्मिक भेदभाव के अपने देश के रास्ते दूसरे धर्मों के लोगों के लिए खोल देते हैं। धार्मिक आधार पर किसी का हतोत्साहित नहीं करते, यह उन लोगों के लिए सबक है जो हर मामले में धार्मिक पहचान को आगे ले आते हैं।

टोक्यो ओलंपिक में भी एक कहानी इस तरह की रही है जिसकी मिसालें सोशल मीडिया पर नामचीन नाम दे रहे हैं और अपने देश के युवाओं को प्रोत्साहित करते हैं।

गौरतलब हो कि पाकिस्तान के प्रधानंत्री इमरान खान ने पिछले रोज अपने ट्वीटर अकाउंट पर लिखा है कि, “मैं चाहता हूँ कि पाकिस्तान के युवा इस दौड़ को देखें और उस सबसे महत्वपूर्ण सबक को सीखें जो मैंने खेलों से सीखा है- आप सिर्फ़ तब ही हारते हैं जब आप उम्मीद खो देते हैं।”

साथ में सिफ़ान हसन के ओलंपिक में 1500 मीटर दौड़ के क्वालीफाई राउंड का विडिओ शेयर किया है जिसमें हीट के अंतिम पड़ाव में वो गिर गई थी पर गिरने के बाद भी वह संभली और जीतकर फाइनल में पहुंची। हसन ने टोक्यों ओलंपिक में दो स्वर्ण पदक और एक कांस्य पदक जीता है।

क्यूँ याद रखी जानी चाहिए सिफान हसन की कहानी?

पूरी दुनिया का तो नहीं पता, परंतु एशियाई देशों में सिफ़ान हसन की कहानी याद रखी जानी चाहिए। इसकी एक मात्र वज़ह एक नहीं कई है।

एशियाई मुल्क में रहने वाला, सोचने समझने वाला हर एक इंसान जानता है कि हम एक वर्गीय दुनिया में जीते हैं जहां कई तरह के वर्चस्ववादी विचार हमको दूसरे से बेहतर या श्रेष्ठ होने का भाव देते हैं। इस यथास्थिति में सिफ़ान हसन एक मिसाल है क्योंकि वो जिस देश का प्रतिनिधित्व टोक्यो ओलंपिक में कर रही थी वह वहाँ स्वयं रिफ्यूजी है, पर जिस देश में वह रिफ्यूजी है वह धार्मिक और कई आधारों पर भेदभाव नहीं करता है। अगर आप हुनरमंद हैं, तो अपनी पहचान बनाने का पूरा मौका देता है।

ओलंपिक खेलों के दौरान भारतीय महिला टीम की वंदना कटारिया, जिसने टोक्यो ओलंपिक में बेहरतीन प्रदर्शन के रिकार्ड अपने नाम दर्ज किया। उसके पैतॄक गांव में उनके जाति विशेष के होने के कारण क्या हुआ, हम सब जानते हैं। इसलिए, सिफान हसन की कहानी अपने मुल्क में जरूर ही सुनाई जानी चाहिए। सिफान की कहानी बताती है कि अगर आपमें प्रतिभा है तो कामयाबी झक मार के आपके पीछे आएगी।

बाधाए भले जीवन में कितनी भी हों, उनसे जूझते हुए टकराते हुए आप अधिक मजबूती से खड़े होंगे। आपका आत्मविश्वास आपको सफलता देकर ही जाएगा क्योंकि वो और कहीं जा ही नहीं जा सकता, उसका गिरना ही होगा आपकी झोली में।

मूल चित्र: Reuters via Navbharat Times

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