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भारतीय समाज का भोगा हुआ सच है शॉर्ट फिल्म ट्रांजिस्टर

शॉर्ट फिल्म ट्रांजिस्टर में पवन के पास ट्रांजिस्टर के पैसे न जुटा पाने के कारण अब एक ही रास्ता है। ये रास्ता क्या है? उसके बाद क्या होता है? 

शॉर्ट फिल्म ट्रांजिस्टर में पवन के पास ट्रांजिस्टर के पैसे न जुटा पाने के कारण अब एक ही रास्ता है। ये रास्ता क्या है? उसके बाद क्या होता है? 

सत्तर के दशक में जब भारत में आपातकाल का दौर था, जनसंख्या नियंत्रण के लिए सरकार के तुगलकी फरमान जारी हुआ कि पुरुषों को नसबंदी करवा कर जनसंख्या वृद्धि में सहयोग करना चाहिए। जल्द ही फरमान जोर-जर्बदस्ती से लागू किया गया जिसमें कमोबेश छह करोड़ भारतीय पुरुष जिनकी उम्र 14-70 साल के बीच थी, जबरन नसबंदी के शिकार हुए।

कहीं-कहीं नसबंदी करने के लिए रेडियो, घी के डब्बे और महीने दो महीने का राशन प्रलोभन के लिए दिया जा रहा था। इसी पृष्ठभूमि को ‘ट्रांसजिस्टर’ शार्ट फिल्म में प्रेम सिंह ने एक प्रेम कहानी के साथ कहने की कोशिश कुछ है, जो अमेजन मिनी टी.वी. पर रिलीज हुई है।

सनद रहे भारतीय समाज में सूचना के माध्यमों से, फिर चाहे वह चिठठी-पत्री लिखना हो, रेडियो हो, टी.वी. हो या टेलीफोन इसका किसी घर में होना पास-पड़ोस में इज्जत-प्रतिष्ठा से जुड़ी मानी जाती रही है, इसके साथ अन्य चीज़ें भी समय-समय पर जुड़ती चली गईं। चूंकि भौतिक सुख की यह सारी चीजें प्रतिष्ठा से जुड़ जाती थीं इसलिए दान-दहेज के साथ भी इसका जुड़ाव स्वत: हो गया। निर्देशक प्रेम सिह ने सामाजिक प्रतिष्ठा, दान-दहेज को आपातकाल के नसबंदी के दौर में एक प्रेम कहानी कही है।

क्या है शॉर्ट फिल्म ट्रांजिस्टर की कहानी

नसबंदी के दौर में गांव के गरीब किसान परिवार की एक लड़की उमा(अहसान चन्ना) अपने ट्रांजिस्टर और बकरी चराने आती है और गीतमाला सुनती है। नदी पार का लड़का पवन(मोहम्मद समद) उसी समय एक पेड़ के ओट से उसे देखता है और उमा को इसका एहसास है। रोज की  दिनचर्या है यह।

उमा के पिता को यह ट्राजिस्टर नसबंदी में मिला है, यह गांव वालों और पवन को भी पता है। उमा के माता-पिता ट्रांजिस्टर को उमा के दहेज के लिए संजोकर हिफाजत से रखते हैं। एक दिन पवन उमा को करीब से देखने के लिए पेड़ के डाली पर चढ़ जाता है। जब उमा उस पेड़ के नीचे आ कर बैठती है और ट्रांजिस्टर बजाती है तो पेड़ की डाली टूट जाती है और पवन डाली सहित ट्रांजिस्टर पर गिर जाता है। ट्रांजिस्टर टूट जाता है। उमा दुखी हो जाती है क्यूँकि  उसे पता है की ट्रांजिस्टर उसके पिता ने दहेज़ के लिए रखा है।

पवन नौकरी ढूंढें की कोशिश करता है लेकिन ट्रांसिस्टर के पैसे न जुटा पाने के कारण, उसके पास अब एक ही रास्ता है। ये रास्ता क्या है? और क्या उमा को इसका पता चल जाएगा? पता चलने पर उनके साथ क्या होगा? यह जानने के लिए आपको ट्रांजिस्टर देखनी चाहती है।

भावनाओं और मजबूरों से घिरी एक शानदार कहानी कही गयी है, जो धीरे-धीरे लोगों को पसंद आ रही है।

https://www.youtube.com/watch?v=VhvYV9eGZIY

अभिनय और कहानी की पृष्ठभूमि कमाल की है

इंटरनेट की दुनिया में पसंदीदा चेहरा अहसास चन्ना और मोहम्मद समद ट्रांजिस्टर  कहानी के मुख्य़ पात्र हैं। मात्र बीस से तीस मिनट में कही गई कहानी सत्तर के दशक में एक साथ कई बिंबों को खींच लेती है, ग्रामीण जीवन, ग्रामीण युवाओं का प्रेम, सामाजिक मर्यादा और सरकारी तानाशाही।

आपतकाल के दौर में देश समाज जिस सामाजिक जटिलताओं से जूझ रहा था उससे आज की पीढ़ी पूरी तरह से महरूम है। ट्रांजिस्टर उस दौर में मनोरंजन का एकमात्र साधन था जो सामाजिक प्रतिष्ठा से भी जुड़ा हुआ था। अहसास और समद दोनों के अभिनय में प्यार, डर, खुशी और निराशा सब भाव आते हैं और जाते हैं।

कहानी का अंत का दृश्य भाव शून्य़ कर देता है। वह शायद इसलिए क्योंकि भले ही यह एक कहानी है पर भारतीय समाज में एक बड़े हिस्से के बीच भोगा गया यथार्थ भी है। शार्ट फिल्म ट्रांजिस्टर उस भोगा हुए यथार्थ के करीब ले जाता है दर्शकों को कलाकारों के अभिनय और शानदार स्टोरी टेलिंग के दम पर।

मूल चित्र : Still from Short Film Transitor, YouTube 

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