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लगा धक्का फिर एक बार, इस बार हुआ पहले से अधिक प्रहार।पर हम कर्तव्य निभाएँगे, ज़िम्मेदारी ली है तो तुम्हें सिखाएंगे।
शुरु होने को था सत्र नया,
पाठ्यक्रम भी था तैयार किया।
कोरोना की आंधी आई,
मिट्टी में मिल गई मेहनत सारी,
सब शून्य हुए।
सब विचलित हो देख रहे थे इधर-उधर,
फिर सबने आवाहन किया,
माँ सरस्वती का नाम लिया।
सबको अब यह ज्ञान हुआ,
शिक्षक हैं इसका मान हुआ।
शिक्षक हैं हार कैसे जायेंगे?
ज़िम्मेदारी ली है तो निभाएंगे।
जूम हो या गूगल, पहुंचेंगे हम तुम तक।
नित नई खोज हैं करते,
कैसे सीखोगे तुम इस सोच में रहते।
फरवरी दो हज़ार इक्कीस का महीना आया,
नया बसंत फिर से मुस्काया।
मन में एक उल्लास उठा,
नए सत्र में मिलेंगे स्कूल में ये विश्वास जगा।
पर नियति का खेल किसने है जाना,
कोरोना की दूसरी लहर का शुरु हुआ फिर से आना।
लगा धक्का फिर एक बार,
इस बार हुआ पहले से अधिक प्रहार।
पर हम कर्तव्य निभाएँगे,
ज़िम्मेदारी ली है तो तुम्हें सिखाएंगे।
कालिमा छंटेगी लालिमा छाएगी,
महकोगे तुम फिर से उपवन में,
बाहें खोले हम सब खड़े मिलेंगे,
फिर से तुम्हारे अभिनंदन में।
मूल चित्र: Classplus via Youtube
I am Maya Nitin Shukla. Mother of a son. Working as a teacher. "मैं इतनी साधारण हूं ,तभी तो असाधारण हूं" read more...
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