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मुझे सुकून के दो पल मायके में ही मिलते हैं…

चार दिन के लिए ही मायके गई थी वो, लेकिन उसके जाने के नाम से ही घर में परेशानी हो गयी थी। बात ये भी थी कि ससुराल में उसे आराम न मिलता था।

चार दिन के लिए ही मायके गई थी वो, लेकिन उसके जाने के नाम से ही घर में परेशानी हो गयी थी। बात ये भी थी कि ससुराल में उसे आराम न मिलता था।

मीनल की शादी को लगभग एक साल हो गया था। शादी के तुरंत बाद वह पति के साथ चली गई थी। पति की नौकरी दूसरे शहर में थी। नीरज ने कुछ महीनों में नौकरी छोड़ दी  और वे दोनों उसके माता-पिता के साथ रहने लगे।

वहाँ पर उसने एक फैक्ट्री डाल ली थी। उसमें पैसा बहुत लगा पर बहुत अच्छा चल पड़ा।

नीरज बहुत अधिक व्यस्त रहने लगा। मीनल के लिए तो उसके पास वक्त ही नहीं था।

मीनल सास ससुर की सेवा में लगी रहती थी। दिन जैसे-तैसे कट जाता था। नीरज बस पैसा कमाने में लगा रहता था। और इसी बीच मीनल प्रेगनेंट हो गई।

चेकअप कराया तो डाॅक्टर ने टोटल बेड रेस्ट कह दिया। अब तो मीनल का समय कटना मुश्किल हो जाता था। मीनल हिम्मत करके सास के साथ थोड़ा काम करा देती थी।

नीरज को इतना भी समय नहीं मिलता कि मीनल के हालचाल पूछ ले या फिर उसे डाॅक्टर के पास ले जाए।

नौ महीने के बाद एक सुन्दर सी लड़की को जन्म दिया मीनल ने! घर में सास ससुर बहुत खुश हुए बहुत सालों के बाद उनके घर में किसी कन्या ने जन्म लिया था।

कुछ दिनों बाद मीनल की सास की अचानक बहुत तबियत खराब रहने लगी। अब मीनल के ऊपर घर की सारी जिम्मेदारी आ गई। बच्ची को संभालना और घर को संभालना।

सुबह से रात कब हो जाती थी पता ही नहीं चलता था। मीनल न ही बच्ची को देख पा रही थी ना ही अपनी तबियत संभाल पा रही थी। ससुराल वालों से कहा तो सास बोलीं, “तुम चली जाओगी तो घर कौन संभालेगा? मेरी तबियत ठीक नहीं है, नहीं तो मैं देख लेती। आजकल कामवालियों के भरोसे घर नहीं चलते। उन्हें देखना पड़ता है हर वक़्त। अभी तुम्हारा जाना ठीक न होगा।”

मीनल मन मार कर रह गयी। घर वालों से बात करती तो ऐसे बात करती जैसे सब ठीक है।  लेकिन उसके घरवाले बात समझ रहे थे।

एक दिन अचानक भाई मीनल को लेने के लिए आ गया। अपनी दीदी के घरवालों और जीजा को समझाने पर वे लोग मीनल को घर भेजने को राजी हो गए।

निर्णय लिया गया कि कामवाली बाइयाँ सब काम देख लेंगी। बस सासु-माँ को बैठे-बैठे हुकुम ही चलाना है।  नीरज को भी ये बात भा गयी। और बहुत मुश्किलों के बाद मीनल को मायके जाने को मिला।

चार दिन के लिए ही मायके गई थी वो, लेकिन उसके जाने के नाम से ही घर में परेशानी हो गयी थी। लेकिन बात ये भी थी कि ससुराल में उसे आराम न मिलता था। उसके आराम की किसी की चिंता भी नहीं थी। उसने मन में ठान ली थी कि वापस आने पर भी इन सहायकों की फ़ौज को कहीं ना जाने देगी!

मायके जाकर मीनल को जिस आराम की ज़रुरत थी वो मिला। कभी माँ खाना बना रही थी। कभी भाभी बच्चे को संभाल रही थी।

मीनल ने कहा, “माँ जो सुकून मायके में है वो और कहीं नहीं है। मेरा ससुराल चाहे जितना भी अच्छा क्यों ना हो, सुकून के दो पल मुझे मायके में ही मिलते हैं! क्यों भाभी? ठीक कहा ना मैंने?”

भाभी अपनी सास की तरफ देख कर मंदमंद मुस्कुराने लगी, लेकिन तीनों इस बात को अच्छे से समझते थे।

क्यों दोस्तों, ठीक कहा ना मीनल ने? ससुराल ससुराल होता है और मायका मायका होता है।

मूल चित्र : Still from short film Methi Ke Laddu/YouTube

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