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जहां बात पैसे की आती है, बहू पराये घर की हो जाती है…

शादी के साल गिने जाते हैं, पैसे या जायदाद में हक़ देने से पहले। जहां बात पैसे की आती है, तो बहू पराये घर की हो जाती हैं। आख़िर क्यों?

शादी के साल गिने जाते हैं, पैसे या जायदाद में हक़ देने से पहले। जहां बात पैसे की आती है, तो बहू पराये घर की हो जाती है। आख़िर क्यों?

आज माया की खुशी का ठिकाना ना था। और हो भी क्यों ना आखिर उसने और उसके पति राकेश ने जो सपना देखा था वो पूरा होने जा रहा था। उनके नए घर में आज गृह प्रवेश की पूजा जो थी। घर में सास-ससुर, एक छोटी ननद और माया के दो प्यारे से छोटे बच्चे थे। घर का हर सदस्य खुश था। 

5 साल पहले जब माया शादी कर इस परिवार में आई थी, तो राकेश ने उसे अपने सपने के बारे में बताया था। सपना था जमीन खरीद कर उस पर अपनी पसंद का घर बनवाने का। उस दिन से राकेश के सपने को माया ने अपना सपना बना लिया और उसे साकार करने का हर संभव प्रयास कर माया ने राकेश के सपने को आज इस खुशी के मौके में बदल दिया।

गृह प्रवेश की सारी तैयारियां कर माया पूजा के लिए खुद तैयार होने चली गई। बीते 5 सालों में उसने किसी भी मौके पर अपने लिए कुछ नहीं खरीदा था, पर आज के खास मौके के लिए उसने पीली रंग की चंदेरी साड़ी खरीदी थी। तैयार हो कर वो घर को निहारने लग गई।

जब पहली बार राकेश के साथ वह यह जमीन देखने आई थी, तो राकेश की आंखों की चमक देख एक नज़र में उसे एहसास हो गया था कि उनके सपनों का घर यहीं बनेगा। फिर क्या था! दोनों जुट गए जल्द से जल्द घर के लिए पैसे बचाने में।

राकेश को ऑफिस के काम के सिलसिले में ज्यादातर शहर से बाहर रहना पड़ता था। ऐसे में परिवार और घरवालों की पूरी जिम्मेदारी माया ने ले रखी थी। छोटे से छोटे काम के लिए घर के सदस्य माया की ओर देखते। सास-ससुर की देखभाल, ननद की पढ़ाई, बच्चों की परवरिश के साथ-साथ राकेश के सपनों का ज़िम्मा भी माया ने अपने कंधों पर उठा रखा था।

कई बार घर बनवाने के चक्कर में वह घंटों नए घर पर जा कर काम करवाती रहती थी। फिर भी अगर कुछ राकेश के मन के लायक नहीं होता था, तो चुपचाप उसकी डांट खा उसे मनाने में लग जाती थी।

एक बार नए घर की साइट पर कुछ समस्या आ गई थी। हमेशा की तरह राकेश ऑफिस के काम में व्यस्त था। माया घर के सारे काम निपटा कर झट से साइट पर पहुंची। वहां की समस्या को हल करते हुए जाने कहां से कांच का एक बड़ा टुकड़ा उसके पैर में घुस गया। घाव गहरा था। तब भी माया वहां की समस्या हल करके ही डॉक्टर के पास गई। कांच का टुकड़ा निकाल डॉक्टर ने पट्टी बांध, उसे कुछ दिन आराम करने की सलाह दी।

रात में जब राकेश घर आया तो नए घर की बातें हुई। माया ने अपनी चोट के बारे में भी बताया जिस पर अफसोस जताते हुए राकेश ने कहा, “तभी तो कहते हैं घर बनवाने में घर वालों का खून पसीना लगता है!” कह कर हंसने लग गया।

अगले दिन में नए घर में फिर कुछ काम आ गया। ससुर जी ने माया से राकेश के ऑफिस के काम में खलल ना डालने को कह उसे ही जाकर समस्या हल करने की बात कही। सासू मां ने भी सहमति जताई। पैर के घाव से परेशान माया बिना कुछ कहे समस्या हल करने को निकल गई। 

“कहां खो गई? मेहमान आने लगे हैं!” कह राकेश ने माया को अतीत से वर्तमान में वापस ले आया। गृहिणी माया लग गई सबके स्वागत सत्कार में। हर किसी ने घर की तारीफ़ की, जिसे सुन माया फुले न समा रही थी।

इतने में सासु मां की एक सहेली ने कहा, “बधाई हो! तुम्हारे बेटा-बहू ने बहुत सुन्दर घर बनाया है।”

यह सुन सासू मां ने कहा, “यह सब मेरे बेटे की मेहनत का फल है। उसी के खून पसीने से यह घर सुंदर बना है।” सुन राकेश मुस्कुराने लगा।

तभी दूसरी सहेली ने कहा, “घर बहू-बेटे के नाम पर होगा, है ना?”

सुनते ही झट से सासु मां बोली, “नहीं-नहीं! अभी तो शादी को बस 5 साल हुए हैं। अभी इतनी जल्दी इतना विश्वास कैसे कर सकते हैं हम बहू पर?” यह सुन सब सहमति जताते हुए हंसने लगे।

माया को अपने कानो सुनी बात पर विश्वास नहीं हो रहा था। 

ये सब सोचते-सोचते माया की आँखों से आँसू बह निकले। घर के कामों का बोझ उठाने लायक विश्वास था, परिवार में नई पीढ़ी को लाने लायक विश्वास था, बेटे का सपना बहू के कंधे पर लाद देने लायक विश्वास था पर बहू को उसका वाजिब हक देने लायक विश्वास नहीं है?

जहां बात पैसे की आती है, तो बहू पराये घर की हो जाती है? शादी के साल गिने जाते हैं पैसे या जायदाद में हक़ देने से पहले!

आख़िर क्यों बहू या पत्नी सिर्फ ज़िम्मेदारी निभाने वाली एक मशीन बन कर रह जाती है अधिकतर घरों में? 

मूल चित्र : Still from Short Film Online Girlfriend, Pocket Films/YouTube

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Ashlesha Thakur

Ashlesha Thakur started her foray into the world of media at the age of 7 as a child artist on All India Radio. After finishing her education she joined a Television News channel as a read more...

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