कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

माँ, जीतने के चक्कर में आपने अपना घर तोड़ दिया…

"शर्म आनी चाहिए मां। झगड़े आप करा रही थीं। जीतने के चक्कर में आपने अपना घर तोड़ दिया और फिर भी इल्जाम अपनी बहुओं को दे रही हो?"

“शर्म आनी चाहिए मां। झगड़े आप करा रही थीं। जीतने के चक्कर में आपने अपना घर तोड़ दिया और फिर भी इल्जाम अपनी बहुओं को दे रही हो?”

होटल में शहनाई की गूंज थी। सीमा जी के दोनों बेटों का आज रिसेप्शन था। मेहमानों का आना जाना लगा हुआ था। पड़ोसन, दोस्त और रिश्तेदार नई बहूओं की मुंह दिखाई का इंतजार कर रहे थी, इतने में सीमा जी अपने दोनों बेटों और दोनों बहूओं के साथ हॉल में पधारी।

सचमुच दोनों जोड़ियां बहुत ही सुंदर थी। सीमा जी ने अपने दोनों बेटों की शादी एक साथ की थी। समर और समीर दोनों सगे भाई, वही नित्या और नियति दोनों चचेरी बहनें। लोगों ने उनकी जोड़ी की खूब तारीफ की और मुंह दिखाई में काफी उपहार दिए।

सीमा जी बहुत खुश थी। उसी समय उनकी बड़ी बहन ने उन्हें अपने पास बुलाया, “आज तो बहुत खुश लग रही हो तुम!”

“क्यों ना हो दीदी? आज मेरे दोनों बेटों की शादी का रिसेप्शन हो रहा है। खुशी की तो बात है!”

“हां, लेकिन एक साथ दो दो बहुएं मैनेज कर लोगी?” बड़ी बहन ने सवालिया निगाह से सीमा जी से पूछा।

“क्यों क्या हुआ दीदी? बहुए तो आनी ही थी ना, आखिर उनका अपना घर है। मैं क्या मैनेज करूंगी?”

“हां, लेकिन दोनों एक ही घर की बेटियां है। कहीं ऐसा ना हो कि तेरा पत्ता साफ हो जाए। शुरू से ही मुट्ठी में रखना। तेरे तो पति भी नहीं है, जो है वो दोनों बेटे हैं। एक समझदार सास वही होती है जो अपनी बहुओं से काम निकाल सके।”

“नहीं नहीं, ऐसा कुछ नहीं है दीदी। मेरे दोनों बेटे मुझसे बहुत प्यार करते हैं। ऐसा कभी नहीं होगा।” सीमा जी ने कह तो दिया पर बात दिल पर लग चुकी थी। रिसेप्शन खत्म हुआ और वो लोग घर लौट आए।

वक्त यूँ ही बीतने लगा। दोनों बहने मिलजुल कर घर का काम कर लेती। जहां नित्या समझदार, वहीं नियति थोड़ी अल्हड़ और चंचल थी। नियति नित्या से छोटी थी, इसलिए थोड़ी तुनक मिजाज भी थी। पर नित्या अपने हिसाब से हर बात संभाल लेती।

पहले जहाँ समर और समीर घर आते ही मां के पास बैठते और उन्हीं से चाय नाश्ते की फरमाइश करते, वहीं अब आते ही सबसे पहले नित्या या नियति का नाम लेते हैं। हालांकि दोनों भाई अब मां को परेशान नहीं करना चाहते थे, इसलिए माँ से फ़रमाइश नहीं करते। पर मां को यह लगता कि दोनों बहनों ने उन्हें अपने चंगुल में फंसा लिया है।

अब तो सीमा जी को भी लगने लगा था कि कहीं सचमुच में ही दोनों बहनें मिलकर उन्हें घर से ना निकाल दें। अगर ऐसा हो गया तो वह करेगी क्या? उनका तो इस दुनिया में दोनों बेटों के अलावा कोई नहीं है। वहम का कीड़ा धीरे-धीरे बड़ा होने लगा था और जब उसने पूरा जोर मारा तो थक हार कर आखिरकार उन्होंने अपनी बड़ी बहन से ही सलाह लेना उचित समझा।

बड़ी बहन ने भी एक आदर्श सास बनने के सारे गुण अपनी बहन को बताएं। आज के जमाने में अगर बहु को डाँटोगी भी तो चारों खाने चित हो जाओगी। अगर जीतना है तो यही अच्छा होगा कि प्यार से ‘बांटो और राज करो’ वाला नियम अपना लो। सीमा जी को भी अपनी बहन की सलाह पसंद आई और उन्होंने ‘बांटो और राज करो’ के नियम को अपनाते हुए दूसरे दिन से ही काम शुरू कर दिया।

उन्हें पता था कि नित्या समझदार है वह इतनी जल्दी बातों में नहीं आएगी इसलिए उन्होंने नियति को निशाना बनाया। अब नित्या जब भी नियति को किसी काम के लिए कहती तो सीमा जी उस बात का कुछ और ही मतलब निकाल कर नियति के सामने पेश करती।

सुबह किचन में नित्या ने नियति से कहा कि तुम सब्जी साफ करो तब तक मैं ऊपर कपड़े डालकर आती हैं फिर आकर मैं भाजी बना दूंगी। नित्या के जाते ही सीमा जी ने नियति से कहा, “देखा तुमने? उसे बिल्कुल भरोसा नहीं है कि तुम ढंग की भाजी बना सकती हो इसीलिए तो कह कर गई है कि मैं आकर बना दूंगी।”

जब नित्या नीचे आई तो देखा नियति भाजी बना रही थी।

“अरे मैं दो-तीन काम और फ्री करने लग गई थी लेकिन तुमने भाजी तैयार भी कर ली?”

“मुझे भी आता है भाजी बनाना!”

नियति का जवाब सुनकर नित्या ने चुप रहना ही ठीक समझा। पर सीमा जी बहुत खुश हुई नियति की तुनक मिजाजी सुनकर।

एक दिन सभी ने मूवी जाने का प्लान बनाया, पर सीमा जी ने सिर दर्द का बहाना कर घर पर रुकने के लिए कहा तो समर ने कहा, “समीर और नियति तुम लोग घूम आओ हम फिर किसी दिन चले जाएंगे। और एंजॉय करना घर पर हम संभाल लेंगे।”

बात बहुत नॉर्मल सी थी पर सीमा जी ने इसे भी हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। नियति को अपने कमरे में बुलाकर कहा, “देख लिया तुमने। किसी को भी भरोसा नहीं है कि तुम घर की जिम्मेदारी उठा सकती हो इसलिए तुम्हें ही भेजा जा रहा है!”

नियति ने बाहर आते ही जाने से मना कर दिया। जब नित्या ने पूछा तो नियति उस पर ही बिगड़ने लगी, “सब जानती हूं मैं। तुम मेरा घर बसने नहीं दोगी। अपने आप को जिम्मेदार बहू और मुझे लापरवाह बहू साबित करने में लगी हुई हो।”

“नियति, ये तुम क्या कह रही हो? भला मैं ऐसा क्यों करूंगी?”

“क्योंकि आपसे मेरी खुशियां देखी नहीं जाती। खुद को आदर्श बहू साबित करना चाहती हो और सबके सामने साबित करना चाहती हो कि मुझे कुछ भी नहीं आता। मैं कुछ नहीं कर सकती।”

“तुम मेरी बहन हो। मैं तुम्हारा बुरा क्यों चाहूंगी?”

“बहन हूं। पर सगी नहीं, चचेरी!”

नियति अपनी बात वही रोक कर अपने कमरे में चली गई। नित्या आंखों में आंसू लिए बैठ गई।  उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि जो बहन उसके बगैर रह नहीं सकती थी आज वह इतनी बड़ी बात कह गई। समर ने उनकी बातें सुन ली थी पर दोनों बहनों के बीच में बोलना उसने उचित नहीं समझा।

मां को दवा देने कमरे में गया तो सीमा जी और उनकी बड़ी बहन के बीच हो रही बातें सुनकर उसका सिर चकरा गया, “दीदी आपने जैसा जैसा कहा था मैंने वैसा ही किया। अब देखती हूं कि दोनों बहुएं कैसे मिलकर रहती है और मेरा पत्ता साफ करती है। मेरे बेटों पर सिर्फ मेरा हक है। मजाल हैं कोई उन्हें मुझसे दूर कर दे।”

इसके आगे उससे सुनते ही नहीं बना। बिना दवाई दिए ही समर अपने कमरे में आ गया। वक्त यूं ही बीत रहा था। कुछ दिनों बाद शाम को  जब समर घर आया तो उसके हाथ में पेपर्स थे, जिन्हें देखकर सीमा जी ने पूछा, “यह किस चीज के पेपर हैं?”

“मां, सर काफी दिन से कह रहे हैं। इसलिए मैंने अपना ट्रांसफर करवा लिया हैं। जल्दी ही मैं और नित्या मुंबई शिफ्ट हो रहे हैं।”

“लेकिन…”

समर बात पूरी सुने बगैर ही कमरे में चला गया। थोड़ी देर बाद सीमा जी ने समर को अपने कमरे में बुलाया और पूछा, “तुम्हारे सर तो काफी दिन से कह रहे थे तब तो तुम टाल रहे थे। तुम्हें घर से दूर रहना मंजूर नहीं था। फिर अचानक से क्यों?”

“क्योंकि यह घर अब घर नहीं, हार-जीत का मैदान बन चुका है और मैं नहीं चाहता कि कम से कम जो सम्मान अभी तक बचा हुआ है वह भी टूट जाए।”

“समर तू कहना क्या चाहता है?”

“आप अच्छी तरह समझ रही हो मां। अभी तक तो नित्या और नियति में ही झगड़े हो रहे हैं। मैं नहीं चाहता कि ये झगड़े आगे चलकर मेरे और समीर के बीच भी हो। इसलिए बेहतर यही है कि मैं यहां से अपना कहीं और ट्रांसफर करा लूँ।”

“तुम दोनों की बीवीयाँ झगड़ती है तो इसका मतलब यह नहीं कि मैं अपने बेटों से दूर रहूँ। देखा आते ही रंग दिखा दिया ना उन लोगों ने?”

“शर्म आनी चाहिए मां। झगड़े आप करा रही थीं। जीतने के चक्कर में आपने अपना घर तोड़ दिया और फिर भी इल्जाम अपनी बहुओं को दे रही हो? मैंने आपकी और मौसी जी की सारी बातें सुन ली थी। शुक्र मनाओ कि मैंने अभी तक समीर से कुछ नहीं कहा इसलिए कम से कम एक बेटा तो के पास रहेगा। इसलिए अभी भी वक्त है मां, भले ही मैं आप से दूर रहूँ पर अपनी इज्जत बनाए रखिए।”

समर अपनी बात कह कर अपने कमरे में चला गया और पीछे सीमा जी पछताती रह गई कि क्यों किसी के कहने पर उन्होंने अपने ही घर को युद्ध का मैदान बना लिया और जीतने के चक्कर में अपने ही घर को तोड़ दिया।

मूल चित्र : Still from Meeraas/Six Sigma Films, YouTube

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

26 Posts | 430,365 Views
All Categories