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सास की मदद करना फ़र्ज़ तो बहु की मदद अहसान क्यों…

जब उन्हें मदद की जरूरत पड़ती है तब वह बच्चों को उनका फर्ज याद दिलातीं, लेकिन जब सुमन काम करती है तो उन्हें बच्चों का मदद कराना रास नहीं आता।

जब उन्हें मदद की जरूरत पड़ती है तब वह बच्चों को उनका फर्ज याद दिलातीं, लेकिन जब सुमन काम करती है तो उन्हें बच्चों का मदद कराना रास नहीं आता।

“मैं तो तंग आ गया हूँ इन रोज रोज के झमेलों से। घर में घुसा नहीं कि रोज रोज बस यही सुनने को मिलता है।”

“क्या हो गया? क्यों परेशान हो रहे हो? दुकान पर कोई बात हुई है क्या?”

“दुकान पर? यहां घर में घुसने का ही मन नहीं करता। बस एक ही बात हर रोज सुनने को मिलती है।”

“ऐसा क्या हो गया? कुछ बताओ!”

“सुमन तुमसे अकेले काम नहीं होता है क्या, जो बच्चों से मदद लेती हो?”

“मैं कुछ समझी नहीं…”

“बच्चे ही रोज साफ सफाई कर रहे हैं। तुमसे झाड़ू पोछा तक नहीं होता?”

“आप नहा लीजिए। तब तक मैं खाना लगा देती हूँ।”

सुमन ने बात को पलटा और चुपचाप रसोई में चली गई। उसे पता था कि बात क्या है क्योंकि घर में घुसते ही अनुपम के आगे उसकी माँ ने यह सब रोना शुरू कर दिया, जो वह सुन चुकी थी, “देख ले बेटा, सुबह के ग्यारह बज चुके हैं। मेरे बच्चे ही काम कर रहे हैं। आजकल तो झाड़ू पोछा रोज बच्चे ही लगाते हैं। खुद तो देर से कमरे से निकलती है और फिर पूरा समय रसोई में बर्बाद कर देती है। पता नहीं ऐसा क्या काम करती है?”

और उसके बाद ही अनुपम ने कमरे में आकर उसे यह सब सुनाया था। सुमन अनुपम की पत्नी और इस घर की बहू है। साथ में सास मंजरी जी, देवर नरेश और दो बच्चे आशु (14 साल) और तनु (12 साल) हैं। जब से लाक्डाउन लगा है, तब से यह हर रोज का किस्सा हो चुका है।

दरअसल, घर में पीरियड्स के दौरान रसोई में नहीं जाया जाता, इसलिये जब लॉक डाउन में सुमन पीरियड से हुई तो मंजरी जी ने अपने पोते पोती से मदद मांगी।

“बेटा आप लोग अब बड़े हो रहे हो, तो अब घर के कामों में मदद कराना आप लोगों का भी फर्ज होता है। पता है, आपके पापा और चाचा तो आपकी सी उम्र में मेरी बहुत मदद करते थे। आप ज्यादा नहीं तो छोटे-छोटे कामों में तो मदद कर ही सकते हो। वैसे भी आपका स्कूल तो चल नहीं रहा। इसलिये आज से आप थोड़ी बहुत मदद जरूर कराएंगे, जिससे आप लोग थोड़ा बहुत घर का काम भी सीख सको और हम लोगों को भी मदद हो जाए। ठीक है?”

दोनों बच्चे राजी खुशी दादी के साथ मदद कराने में लग गए और इससे फायदा भी हुआ कि बच्चे छोटे-मोटे काम सीख गए। जिससे सुमन भी बहुत खुश हुई कि बच्चे कुछ सीख रहे हैं। वाकई मम्मी जी ने मदद के नाम पर बच्चों को काफी कुछ सीखा दिया। उस दिन वह मंजरी जी की चतुराई पर बहुत खुश हुई। वाकई घर में अगर दादा-दादी होते हैं तो बच्चे बहुत कुछ सीखते हैं।

पर धीरे धीरे उसने यह भी नोटिस किया कि जब उन्हें मदद की जरूरत पड़ती है तब वह बच्चों को उनका फर्ज याद दिला देती है, लेकिन जब सुमन काम करती है तो उन्हें बच्चों का मदद कराना रास नहीं आता।

क्योंकि तीन दिन तो मंजरी जी बच्चों से किचन में आटा लगवाना, रोटी बनवाना, सब्जी साफ करवाना सब काम करवाती, लेकिन जब सुमन काम करती तो बच्चों को रसोई में भी न आने देती। जहां तक साफ सफाई में मदद की बात थी तो वह सिर्फ उनके कमरे तक सीमित होती, बाकी काम सुमन को ही करना पड़ता।

मामला वही एक होता कि बच्चों से काम करवाती है। काम करना तो बहू का फर्ज है। पर इन दिनों सुमन की तबीयत भी ठीक नहीं रहती। सुमन चालीस साल की हो चुकी है, तो उसे कई  तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए वह बच्चों से मदद मांग लेती है। इसी बात से मंजरी जी मुँह फूला लेती है।

सुमन से तो कुछ कहती नहीं अनुपम के आते ही उसके कान भरना शुरू कर देती है, “बच्चों से काम करवाती है, खुद तो कोई काम करती नहीं। अब बैठे-बैठे शरीर खराब नहीं होगा तो क्या होगा, इसीलिए तबीयत खराब रहती है।”

कई बार तो सुमन का जी करता कि बच्चों से कह दो की कोई जरूरत नहीं है इस घर में किसी की मदद कराने की, पर यह बच्चों पर नेगेटिव असर डालेगा इसलिए चुप रह जाती।

सुमन रात के खाने की तैयारी कर रही थी, तो उसने बच्चों को बुलाया, “बेटा मैं खाना बना रही हूँ तो आप लोग एक काम करो, दोनों भाई बहन मिलकर सलाद का काट लो। ताकि जब मैं गरमा-गरम चपाती उतारू तो तुम लोग खाना खा लेना।”

दोनों बच्चे खुशी-खुशी सब्जियां लेकर सलाद काटने बैठ गए। जब मंजरी जी रसोई की तरफ आई, तो बच्चों को सलाद काटते देखकर उन्होंने कहा, “क्या कर रहे हो तुम दोनों?”

“दादी हम सबके लिए सलाद काट रहे हैं।”

“हाँ, आजकल तुम्हारी मम्मी से तो काम होता नहीं है। तुम्हारी मम्मी को एहसान मानना चाहिए तुम दोनों का कि तुम इतनी मदद करा रहे हो। हम तो तुम्हारी मम्मी की उम्र में अकेले ही काम करते थे।”

“क्यों दादी, जब हम आपकी मदद करते हैं तो वह फर्ज होता है लेकिन जब वही मदद हम मम्मी की करते हैं तो वह एहसान कैसे हो गया?”

“और पापा और चाचू ही बताते हैं कि वह भी तो आपकी मदद करते थे। आपने खुद ने भी तो कहा था, तो आप अकेले कैसे काम करते थे।”

“दादी तो झूठ बोलती है!”

ऐसा कहकर दोनों बच्चे हंसने लगे। बच्चों की बातों को सुनकर मंजरी जी झेंप गई जबकि सुमन मंद मंद मुस्कुरा दी। मंजरी जी ने रसोई से बाहर जाने में ही अपनी भलाई समझी जबकि सुमन यह सोच कर खुश थी कि जो बात वह नहीं बोल पाई आज उसके बच्चों ने बोल दी।

मूल चित्र: Still from Short Film Methi ke Laddoo

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