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यह फैसला देश के एक अहम संस्थान यानी एनडीए के अंदर एक लैंगिक दीवार के टूटने जैसा है, महिलाओं के लिए "एनडीए" में नए अवसर तराशता फ़ैसला।
यह फैसला देश के एक अहम संस्थान यानी एनडीए के अंदर एक लैंगिक दीवार के टूटने जैसा है, महिलाओं के लिए “एनडीए” में नए अवसर तराशता फ़ैसला।
सर्वोच्च न्यायलय के दखल के बाद सेना में महिलाओं की भागीदारी का एक और रास्ता खुल गया। एनडीए ही नहीं सभी सैनिक स्कूलों में भी लड़कियों को प्रवेश मिल सकता है।
इससे महिलाओं को भारतीय लोकतंत्र के एक प्रमुख संस्था सेना यानी एनडीए में भी महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित हो सकेगी, जिससे महिलाओं के लिए कई नए अवसरों की शुरुआत होगी। इससे पहले भी कई महिलाओं ने भारतीय सेना के तीनों अंगों में बेमिसाल उपलब्धियां दर्ज की है। सर्वोच्च अदालत के फैसले के बाद महिलाओं की भागीदारी की संख्या में इज़ाफ़ा होगा, इसमें कोई दो राय नहीं है।
सर्वोच्च अदालत के फैसले के बाद, मुख्य सवाल यह है कि आधी आबादी को यह अधिकार मिलने में आजादी के 75 वसंत लग गए। महिला विकास, कल्याण और सशक्तिकरण का दावा करने वाली सरकारों ने अब तक इस दिशा में कोई ठोस पहल तक नहीं की। महिलाओं की झोली में यह अधिकार न्यायपालिका के पहल पर आ रही है।
न्यायपालिका के महिलाओं को “एनडीए” में शामिल करने के फैसले पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी 15 अगस्त 2021 के अपने भाषण में महिलाओं के लिए सैनिक स्कूल खोले जाने की बात कह कर अपनी सहमति दी है।
सनद रहे इससे पहले भी न्यायपालिका ने ही सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने की शुरूआत की थी। सर्वोच्च अदालत का हमेशा से मानना रहा है कि लैंगिक आधार पर महिलाओं को सेना में प्रवेश देने से वंचित रखना संविधान के अनुच्छेद 14.15.16 और 17 का उल्लंघन है। लड़को को अब तक सेना में बारहवी के बाद ही एनडीए में शामिल होने की अनुमति है। पर लड़कियों के लिए सेना में शामिल होने के लिए स्नातक होने के साथ-साथ आयु सीमा 21 वर्ष होना जरूरी था। इन कारणों से पुरुषों की तुलना में महिलाओं का सेना में बेहतर पदों तक पहुंचना संभव नहीं हो पाती है।
सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी और इंडियन मिलिटरी कांलेज जैसी संस्थाओं में महिलाओं को प्रवेश देने के फैसले को लिगभेद पर आधारित सोच बताया और अंतरिम उपाय के तौर पर परीक्षा में बैठने की अनुमति दे दी है। यह फैसला देश के एक अहम संस्थान यानी एनडीए के अंदर एक लैंगिक दीवार के टूटने जैसा है। यह महिलाओं के लिए “एनडीए” में नए अवसर तराशता फ़ैसला है। हालांकि है, सवोच्च अदालत का मौजूदा फैसला परीक्षाओं में लड़कियों के प्रदर्शन पर निर्भर होगा।
हालांकि असली मुश्किलें अब शुरू होने वाली है। इसकी मुख्य वज़ह यह है कि महिलाओं के विरुद्ध लैंगिक पूर्वाग्रह सामाजिक संस्थानों में संस्थानों को चलाने वाले लोगों के कारण प्रशासनिक व्यवहार में झलकता है।
व्यवहार में पूर्वग्रहित मानसिकता के कारण संस्थानो का चरित्र पुरुषवादी जैसा लगने लगता है। इसलिए यह अभी पूरी जंग फतह करके उत्सव मनाने जैसा नहीं है। हमको यह नहीं भूलना चाहिए कि भारतीय परिवार के संरचना में जरूर ही लड़कियां एक से एक बेमिसाल मिसाल रच रही हैं परंतु, सेना में उनके भागीदारी के सवाल पर परिवार को आगे आने में अभी लंबी दूरी तय करनी है।
महिलाओं के हक में फैसला, सेना में महिलाओं के साथ लैंगिक भेदभाव की दीवार में बड़ी ईट टूटने जैसा है जो भारतीय सेना में महिलाओं के अस्मिता को नया सम्मान तो जरूर देगी।
मूल चित्र: SSBCracksExams,YouTube
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