कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

जो माँ के साथ हुआ, वो तुम मत करना…

क्यूंकि सुभाषिनी को गोद नहीं लिया गया था, इससे उसे कोई कानूनी अधिकार नहीं मिले। बस रचना ने उस का एडमिशन एक बहुत नामी स्कूल में करा दिया।

क्यूंकि सुभाषिनी को गोद नहीं लिया गया था, इससे उसे कोई कानूनी अधिकार नहीं मिले। बस रचना ने उस का एडमिशन एक बहुत नामी स्कूल में करा दिया।

सुभाषिनी जी अपनी बेटी काव्या और दामाद के साथ अपने एक रिश्तेदार के घर पूजा में आई हुई थी। वहां एक छोटे बच्चे की शरारत देखकर काव्या मुग्ध हुई जा रही थी।

उस बच्चे के बारे में पूछने पर मालूम हुआ कि वह उनके एक गरीब रिश्तेदार का बच्चा है, जिनके तीन बच्चे हैं और सभी की उम्र में बहुत कम अंतर है। इस समय उनकी नौकरी भी छूट गई है, इसलिए परिवार बहुत संकटों का सामना कर रहा है। थोड़ी ही देर में बच्चा काव्या से बहुत घुल मिल गया। घर लौट कर भी काव्या उसके बारे में बात कर रही थी।

काव्या को ईश्वर ने सब कुछ दिया, योग्य पति, धनवान घर किंतु संतान का सुख नहीं दिया। उस बच्चे से मिलने के बाद काव्या ने मन ही मन कुछ सोचा और सुभाषिनी जी से कहा, “मां मैं उस बच्चे को गोद लेना चाहती हूं। उससे उनका बोझ भी कम हो जाएगा और मुझे भी संतान मिल जाएगी।”

यह सुनते ही सुभाषिनी जी के मुंह से इतनी कठोरता के साथ “नहीं” शब्द निकला कि काव्या चौक गई।

सुभाषिनी जी अपने बेडरूम में चली गई। पीछे पीछे काव्या भी आई और लेटी हुई मां का सिर सहलाने लगी। थोड़ी देर बाद सुभाषिनी जी अपने को संभालने के बाद काव्या से कहने लगी, “अब मैं तुम्हें बताना चाह रही हूं कि मैं उस बच्चे को गोद लेने के खिलाफ क्यों हूं। तुम कोई बच्चा गोद लेना चाहती हो तो अनाथालय से ले लो, लेकिन किसी रिश्तेदार का बच्चा ऐसे ही गोद मत लो।”

काव्या ने मां को प्रश्नवाचक निगाहों से देखा। वह कहने लगी, “मैं तुम्हें अपने मन का दु:ख बता रही हूं। इसे सुनकर ही तुम कोई निर्णय लेना।”

सुभाषिनी जी का जन्म गांव में हुआ था और उनके पिता खेती करते थे। वे लोग 6 भाई बहन थे। एक बार उनकी रिश्ते में लगने वाली बुआ कोई पूजा करने गांव आई। उस समय सुभाषिनी करीब चार साल की सुंदर और स्वस्थ बच्ची थी। उनकी बुआ रचना की कोई संतान नहीं थी तथा बहुत पैसे वाले घर में उनकी शादी हुई थी। सुभाषिनी को देखकर वे उस पर मोहित हो गई और उसके पिता से उसे गोद देने के लिए कहने लगी।

उनकी मां ने मना भी किया लेकिन पिता को लगा कि अमीर बहन को बेटी दे देना अच्छा है क्योंकि किस तरह से वह 6 बच्चों का पालन करते हुए सब बेटियों का विवाह कर पाएंगे। वह बच्ची देने के लिए तैयार हो गए। लौटते समय ही रचना सुभाषिनी को लेती आई।

जब उनके पति ने उस बच्ची को देखा तब उन्होंने मना किया कि वह उसे गोद नहीं लेंगे क्योंकि उन्हें अपनी संतान ही चाहिए। रचना नहीं मानी क्योंकि उनके जीवन में अंधेरा ही अंधेरा था उन्हें एक बच्चे की जरूरत थी जिसके सहारे वह खुशियां तलाश सके।

सुभाषिनी को गोद नहीं लिया गया, इससे उसे कोई कानूनी अधिकार नहीं मिले। बस रचना ने उस का एडमिशन एक बहुत नामी स्कूल में करा दिया। तरह-तरह के कपड़े और खिलौने दिलवा कर अपना शौक पूरा किया। सुभाषिनी भी अपनी नई जिंदगी में रम गई।

वह अपना गांव का जीवन भूल चुकी थी। अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ कर वह भी बड़े घरों के बच्चों की तरह से स्मार्ट और अंग्रेजी बोलने वाली हो गई। वह रचना को मम्मी कहती थी। रचना के पति को अंकल कहती थी क्योंकि उन्होंने पापा कहने से मना किया था।

इसी तरह से करीब 10 साल गुजर गए और सुभाषिनी ने हाई स्कूल पास कर लिया। तभी अचानक ईश्वर की कृपा रचना पर हुई और रचना गर्भवती हो गई। उनका बेटा हुआ और उसके बाद वह यह भूल गई कि सुभाषिनी को वह बेटी बना कर लाई थी। अब सुभाषिनी पढ़ाई छोड़ कर सारा दिन घर के काम करती और रचना के बेटे को संभालती थी। यह जीवन उसे पसंद नहीं आ रहा था अब तक जो नाज़ों में पली बेटी थी, वह अपने घर के नौकरों के साथ उन्हीं की तरह से काम कर रही थी।

उसने अपने असली माता पिता के पास जाने की अनुमति मांगी। रचना ने उसे भिजवा दिया। वहां जाकर जब सुभाषिनी ने अपने भाई बहनों को देखा तब उसे बहुत धक्का लगा। वह गरीब तो थे ही साथ साथ बहुत झगड़ालू तथा गंदी भाषा बोलने वाले थे। मां को वह लगातार चीखते चिल्लाते और बच्चों को कोई चीज फेंक कर मारते हुए देखती थी। उस वातावरण से वह एक दिन में ही घबरा गई। उन लोगों को सुभाषिनी से लगाव भी नहीं था क्योंकि वह इतने साल पहले चली गई थी और अब जब आई तो उनके जैसी नहीं थी, शहरी मेमसाब लग रही थी।

सुभाषिनी फिर से शहर आ गई। उसने केवल हाई स्कूल तक पढ़ाई की थी उसके बाद तो पढ़ाई छुड़वा दी गई थी इसलिए कोई अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी तो उसे मिल नहीं सकती थी। अब उसने एक छोटे से स्कूल में काम करना शुरू किया। बहुत कम पैसा मिलता था।

अब तक रचना की एक बेटी भी हो चुकी थी। रिश्तेदारों ने रचना पर दबाव डाला कि तुम इसे लाई थी इसलिए अब इसका विवाह करो। वैसे भी तुम्हारे पास पैसे की कमी तो है नहीं। रचना ने जब अपने पति से सुभाषिनी के विवाह के लिए कहा तो उन्होंने साफ मना कर दिया और कह दिया कि “मैंने तो पहले ही मना किया था कि इस लड़की को मत लाओ पर तुम नहीं मानीं। अब तुम अपनी समस्या से निबटो।” रचना के पास जो अपनी सेविंग थी उससे सुभाषिनी का विवाह किसी पैसे वाले घर में  तो नहीं हो सकता था इसलिए एक छोटी सी दुकान चलाने वाले लड़के से उसका विवाह कर दिया।

रचना ने भले ही सुभाषिनी को अपनी बेटी का दर्जा नहीं दिया लेकिन सुभाषिनी रहती तो उस बड़े घर में ही थी इसलिए उसे पति का घर बहुत छोटा और अपने स्तर से कम लगता था। वहां सुभाषिनी की सभ्यता और संस्कृति भी नहीं थी पर उसे वही गुजारा करना था।

शुरू से अंग्रेजी माध्यम के अच्छे स्कूल में पढ़ने के कारण सुभाषिनी की अंग्रेजी बहुत अच्छी थी। उसने अंग्रेजी बोलने की कोचिंग शुरु कर दी। उस मोहल्ले के बच्चे ऐसे परिवारों से थे, जिन्हें अंग्रेजी बोलने की इच्छा तो थी पर पैसे की कमी के कारण अंग्रेजी स्कूल में नहीं पढ़ पाए थे। सुभाषिनी की कोचिंग बहुत अच्छी चलने लगी। उसके पति ने भी अपनी दुकान का काम बढ़ा लिया।

धीरे-धीरे उनकी आर्थिक स्थिति काफी अच्छी हो गई लेकिन सुभाषिनी का मन हमेशा खाली और अकेला रहा क्योंकि इस जीवन का सपना उसने नहीं देखा था या यह कहें रचना ने उसे बहुत ऊंचे ख्वाब दिखा दिए थे जो पूरे भी नहीं किए। अपनी कमाई से उसने दोनों बच्चों को बहुत अच्छी तरह से पढ़ाया लिखाया और उनका विवाह किया।

जब वह अपनी पूरी कहानी सुना चुकी तब काव्या ने देखा कि मां की आंखों से आंसू बह रहे हैं। काव्या खुद भी रो रही थी। काव्या को यह तो पता था कि मां रचना जी के घर में रही थी और असली नाना नानी गांव में रहते हैं, पर क्या स्थितियां रही होंगी यह नहीं पता था। मां का दुख उसे समझ में आ गया।

वह बोली, “मां मैं समझ चुकी कि आप उस बच्चे को गोद लेने के लिए क्यों मना कर रही हैं।”

सुभाषिनी जी बोलीं, “बच्चा गोद लेना बहुत बड़ी जिम्मेदारी है इसलिए सोच समझ कर ही लेना चाहिए। यदि अनाथालय से बच्चा लोगी तो वह कानूनी कार्यवाही करके ही देंगे। कोई भी यहां तक कि तुम भी उस बच्चे का हक नहीं मार सकती। रिश्तेदार के बच्चे को पालने के लिए लाकर और फिर अपने बच्चे के होने पर उसे छोड़ देना क्रूरतापूर्ण तथा अमानवीय कार्य है। मैंने तो किसी तरह से अपनी वह जिंदगी बिता ली पर इस बार मैं ऐसा नहीं करने दूंगी।”

काव्या धीरे-धीरे उनका माथा सहलाते हुए बोली, “मां आपके जीवन के बारे में सुनने के बाद मैं कभी ऐसी गलती नहीं करूंगी आप निश्चिंत रहिए। मैं जो भी बच्चा गोद लूंगी, कानूनी कार्यवाही से लूंगी।”

काव्या ने अपने पति को बुलाकर मां के सामने उनसे पूछा, “क्या आप एक बच्चा गोद लेने के लिए तैयार हैं?”

वह बोले, “क्यों नहीं, अगर तुम तैयार हो तो मुझे क्या परेशानी है?”

अब सुभाषिनी जी के चेहरे पर मुस्कुराहट थी क्योंकि उनकी बेटी सही कार्य करने जा रही है।

मूल चित्र : Still from Short Film MAA, Ondraga Entertainment, YouTube

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

18 Posts | 450,760 Views
All Categories