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बेटा बुढ़ापे में खर्च करने की चीज़ नहीं है…

"देखो रमन मुझे तीसरा बच्चा लड़का ही चाहिए, इसके लिए मैंने सब कुछ पता कर लिया। इस बार चेक कराकर ही तीसरे बच्चें को जन्म दूँगी।"

“देखो रमन मुझे तीसरा बच्चा लड़का ही चाहिए, इसके लिए मैंने सब कुछ पता कर लिया। इस बार चेक कराकर ही तीसरे बच्चें को जन्म दूँगी।”

नीता के विवाह को पूरे ग्यारह साल हो चुके थे, परंतु बेटे की मां बनने का सुख उसको मिला ही नहीं था। दो बेटियां होने के वावजूद नीता ने मंदिर, देवी मनौती, व्रत उपवास जिसने जो कहा उसने सब किया पर बेटा नहीं मिला।

“ना जाने ये किस पाप का फल मुझे ईश्वर ने दिया…”, यही सोच कर हमेशा मन खराब किये रहती।

इस बात को लेकर नीता रोज ही तकिया गीला करते अपनी रात  काटती!

हालांकि पति रमन, सास या परिवार का कोई भी सदस्य उसे कुछ कहते नही थे। ऐसा भी नहीं था कि नीता अपने दोनो बेटियों को प्यार नहीं करती थी, लेकिन फिर भी उस के मन का एक कोना बहुत उदास रहता था।

एक दिन नीता फोन पर अपनी मां कुसुम जी से बात कर रही थी। बातों बातों में उसने कहा, “माँ तुमको तो बुढ़ापे में सहारा देने के लिए भईया है पर मेरा क्या? मुझे कौन देगा बुढ़ापे में सहारा और समाज में, परिवार में भी उन्हीं औरतों का ज्यादा मान सम्मान होता है जिन औरतों के बेटा होता है।”

“नीता! तुझे क्या हो गया है तू ऐसा क्यों सोचती है अब जमाना बदल गया है तू खुद को बदलने की कोशिश करने की बजाय आज भी पुराने ख्यालों, सोच और रूढ़िवादी बातों को मानती हैं। क्या कभी मैंने या तेरे पापा ने तुझमें और तेरे भाई में कोई फर्क किया, जो तू ऐसा सोच रही है?”

“रहने दो माँ तुम नही समझोगी, मैं रखती हूं फोन”, कहकर नीता ने फोन रख दिया।

लेकिन अनगिनत सवालों के बीच नीता अपनी अलग ही सोच बनाये हुए थी। वो तब से और ज्यादा उदास रहने लगी थी जब उसने सुना कि उसकी देवरानी को बच्चा होने वाला है। उसके मन मे बेटा हो जाने पर देवरानी का ज्यादा मान सम्मान होगा के शक का बीज अब पेड़ में परिवर्तित होने लगा था। अब नीता पूरा दिन उदास रहती।

एक दिन नीता ने अपने पति रमन से तीसरे बच्चें को जन्म देने की इच्छा जाहिर की तो रमन नीता को एकटक देखता रह गया। रमन ने नीता से कहा, “लेकिन तीसरा बच्चा क्यों नीता? किसलिए, क्या तुम दो बच्चों में खुश नही हो।”

नीता ने रुँधे गले से कहा, “देखो रमन मुझे तीसरा बच्चा लड़का ही चाहिए, इसके लिए मैंने सब कुछ पता कर लिया। इस बार चेक कराकर ही तीसरे बच्चें को जन्म दूँगी, जिससे हमें तीसरी सन्तान पुत्र ही हो।”

रमन ने अपने गुस्से को दबाते हुए कहा, “लेकिन तुम्हें बेटा क्यों चाहिए क्या मैं जान सकता, बेटा होने से ऐसा क्या बदल जायेगा जो मेरी बेटियों से नहीं बदला हमारे जीवन में, माँ बाप हम आज भी हैं और कल भी रहेंगे।”

“देखो! रमन मैं किसी भी तरह का बहस नही करना चाहती तुमसे समझे, ये मत भूलो कि बुढ़ापे का सहारा बेटा ही होता है बेटी नहीं, बेटों से ही वंश का नाम आगे बढ़ता है बेटियों से नहीं।”

रमन ने दोनो हांथो से ताली बजाते हुए कहा, “वाह! क्या बात कही तुमने। लेकिन तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूँ कि वंश का नाम बेटों से नहीं, समझदार और बुद्धिमान संतान से आगे बढ़ता है फिर चाहें वो लड़का हो या लड़की। और विवेकहीन और नालायक, दुःचरित्र की संतानें सिर्फ कुल का नाम डुबोती है, वो भी चाहें लड़का हो या लड़की।

रावण ने अपने चरित्र से कुल का नाम डुबाया, लेकिन सीता और झांसी की रानी जैसी तमाम बेटियों ने अपने माता-पिता के साथ-साथ एक नहीं दो कुलो का नाम रोशन किया। और सच-सच बताना क्या लिंग-परिक्षण कराकर तुमने बच्चे को जन्म दिया, बेटे की चाह में निर्दोष बेटियों का कत्ल किया तो क्या तुम सुकून से रह पाओगी? क्या तुम्हारी आत्मा तुम्हें नहीं धिक्कारेगी?

देखो नीता ईश्वर की बनाई रचना से हम नहीं खेल सकते। होगा वही जो भाग्य में लिखा है हमें तो सिर्फ अपना कर्म करना है और बच्चों को अच्छे संस्कार देकर अपना धर्म निभाना है।

कभी सोचा है जिनको बच्चें नहीं होते या जिनका इकलौता जवान बेटा उनकी आंखों के सामने से चला जाता है या बहुत सी ऐसी घटनाएं जो कभी मजबूरी में तक कभी नालायक बेटों के कारण बुजुर्ग माता-पिता को अपना जीवन कष्ट में बिताना होता है।

बेटा कोई बैंक में जमा फिक्स डिपॉजिट नहीं जो तुम बुढ़ापे में खर्च करोगी और लोग वाह-वाह करेंगे। इसलिए अपने दिल दिमाग से ये बात निकाल कर खुद को खुश रखने और रहने की कोशिश करो।

उम्मीद करता हूं कि तुम मेरी बात समझ गयी होगी। और दुनिया क्या कहती है क्या नहीं मुझे फर्क नहीं पड़ता। अच्छे कर्म से बेटे नहीं बल्कि होनहार और बुद्धिमान संतान जन्म लेती हैं। फिर चाहे वो बेटा हो या बेटी।”

नीता ने रमन की बात सुनकर नजरें झुका ली और कहा, “हाँ रमन तुम ठीक कह रहे हो! मैं ही गलत थी…”

प्रिय पाठकगण, उम्मीद करती हूँ कि मेरी ये रचना आप सबको पसन्द आएगी। कहानी का सार सिर्फ इतना है कि बच्चों के लिंग को लेकर अपने मन को कुंठित ना करें। बेटा बेटी में कोई भेदभाव ना करें बल्कि अपनी  संतान को अपनी परवरिश और संस्कार से बेहतर भविष्य दें। दोनों को समान रूप से शिक्षा और जीने का अधिकार दें।

मूल चित्र : Still from Short Film Khushi/Miniplex, YouTube 

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