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कन्या पूजन और ‘बेटी बचाओ’ वाले देश में खुले घूमते हैं बलात्कारी…

रविवार 01 अगस्त 2021 को दक्षिण-पश्चिमी दिल्ली में केंटोन्मेंट इलाके के पास एक शमशान के अंदर चार लोगों द्वारा एक नौ वर्षीय बच्ची का बलात्कार

रविवार 01 अगस्त 2021 को दक्षिण-पश्चिमी दिल्ली में केंटोन्मेंट इलाके के पास एक शमशान के अंदर चार लोगों द्वारा एक नौ वर्षीय बच्ची का बलात्कार

ट्रिगर : इस लेख में बाल यौन शोषण/बलात्कार का विवरण है जो आपको परेशान कर सकता है

द हिंदुस्तान टाइम्स (The Hindustan Times) से 03 अगस्त, 2021 को प्राप्त हुई ख़बर के अनुसार, दिल्ली में 9 वर्षीय दलित बच्ची की हत्या के मामले में शमशान के 55 वर्षीय पुजारी और अन्य आरोपियों पर बलात्कार, हत्या और धमकी के आरोपों के तहत POCSO एक्ट और एस सी/एस टी एक्ट अधिनियम से संबन्धित धाराओं के अंतर्गत मामला दर्ज किया गया है।

कठुआ और हाथरस की भयावह स्मृतियाँ हमारे मानसपटल से ओझल हो भी नहीं पाई थीं कि एक और हृदयविदारक घटना ने आत्मा को झिंझोर कर रख दिया।

रविवार 01 अगस्त 2021 को दक्षिण-पश्चिमी दिल्ली में केंटोन्मेंट इलाके के पास एक शमशान के अंदर चार लोगों द्वारा एक नौ वर्षीय बच्ची का बलात्कार व शोषण कर उसकी हत्या कर दी गई। बच्ची का परिवार और राजनीतिक आंदोलनकारी इंसाफ की गुहार लगाते हुए लगातार धरने पर बैठे हैं।

आरोपियों को जेल भेज दिया गया है पर उनका कहना है कि बच्ची की मृत्यु बिजली का झटका लगने से हुई है। हालांकि बच्ची के माँ-बाप का कहना है कि उसकी हत्या करके उसका जल्दबाज़ी में दाह-संस्कार कर दिया गया और उन्हें चुप रहने के लिए पैसे का लालच भी दिया गया।

भारत गिना जाता है महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक देशों में

थॉम्पसन रायटर्स फॉउंडेशन पोल (Thompson Reuters Foundation Poll) के अंतर्गत भारत को दुनिया में महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक देशों की सूची में गिना गया। पिछले कुछ समय में देखें तो भारत छोटी बच्चियों के लिए एक हत्यारा देश बन चुका है।

कठुआ, हमीरपुर, कुशीनगर, हाथरस, जालौन, अलीगढ़, जबलपुर, दिल्ली और भारत के अनगिनत हिस्से जहाँ बच्चियों के साथ दुष्कर्म हुआ। कड़वा है पर सच कहूँ तो हमें आदत हो गई है इस तरह की भयानक घटनाओं की ख़बर पढ़कर थोड़ी देर गुस्से में नाक के नथुने फुलाने की और फिर सब भूल जाने की।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो NCRB के आंकड़ों के अंतर्गत सन 2016 से उत्तर प्रदेश में बच्चों के साथ बलात्कार के मामलों में 400% की बढ़त हुई है। जिनमें से अधिकतर मामलों में बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई।

दलित और पिछड़ी जाति भी इंसान हैं

भारत के इतिहास में कुछ काले पन्ने भी हैं जहाँ वर्ण व्यवस्था के कारण समाज को जातियों में बाँट दिया गया और किसी को ऊँचा, किसी को नीचा बना दिया गया। इसी काले इतिहास के चलते तथाकथित ऊँची जातियों ने पिछड़ी और निचली जतियों पर अत्याचार करने शुरू कर दिये।

अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए धूर्तों ने हमेशा ही दलितों की बेटियों/महिलाओं को निशाना बनया। आज भी हमारा समाज इस बीमारी से जूझ रहा है। जहाँ दलितों पर अपना रौब बनाए रखने के लिए कुछ राक्षस उनकी बच्चियों को अपनी हवस का शिकार बना लेते हैं।  

बलात्कार को सांप्रदायिक रूप देना सही नहीं है

हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या है किसी भी मामले का जातिकरण या सांप्रदायिकरण। जब भी कहीं कोई अपराध घटता है तो उस अपराध की गंभीरता और अपराधियों पर चर्चा से पूर्व पीड़ित और अपराधी के धर्म/जाति या संप्रदाय की चर्चा होने लगती है।

बलात्कार पीड़िता किस धर्म की थी या अपराधी किस जाति का है आख़िर इस बात का पीड़िता और अपराधी से क्या संबंध। अपराध-अपराध ही है और अपराध ही रहेगा। अपराध का आंकलन और अपराधी का दंड उसकी गंभीरता के अनुसार ही होना चाहिए।

कब थमेगा अपराधों का ये सिलसिला

कौन हैं ये राक्षस? कहाँ से आते हैं ये? आख़िर क्या खाकर ज़िंदा रहते हैं ये? छोटी-छोटी बच्चियों पर अपनी कुंठाओं को निकालने वाले आख़िर ये कैसे लोग हैं?

ये उसी समाज के लोग हैं जो नव-दुर्गा के रूप में कन्याओं का पूजन करते हैं। उनके पैर धोकर घर में स्वागत करते हैं। पर फिर कैसे इन नन्ही देवियों पर लोग कुदृष्टि डालते हैं? प्यारी और मासूम बच्चियों के साथ ऐसा सलूक क्यों? आख़िर कब थमेगा इनके प्रति अपराधों का ये सिलसिला?

आवश्यकता है कि न्यायपालिका का डर अपराधियों के दिल में घर करे और इस प्रकार के अपराध को अंजाम देने से पूर्व ही उनका दिल दहल जाए। हमारी कानून व्यवस्था में भले ही सख़्त दंड विधान माजूद है पर उसका डर समाज में मौजूद नहीं है।

इसी कारण बच्चियों के प्रति यौन अपराध बंद होना तो दूर कम होने का नाम भी नहीं ले रहे।  

भारत में आख़िर क्या है बेटियों का भविष्य

अपराधों का ये सिलसिला नहीं रुका तो एक बार फिर लोग बेटी के जन्म पर खुश होना बंद कर देंगे। बेटी के पालन के प्रति डरे और सहमे रहने लगेंगे। बेटियों को फिर से घर की चार दीवारियों में क़ैद कर लिया जाएगा।  क्या हम अपनी बेटियों को एक बार फिर से सदियों पीछे धकेलना चाहते हैं?

बेटियाँ हर क्षेत्र में अपना नाम कर रही हैं। देश की आन-बान-शान बढ़ा रही हैं। न केवल अपना बल्कि अपने परिवार और समाज का उत्तरदायित्व भी अपने सिरपर उठाए जीवन में आगे बढ़ रही हैं। उनकी सुरक्षा इस समाज का ही उत्तरदायित्व है।

बेटी को घर के अंदर या पर्दे में रख लेना उसकी सुरक्षा नहीं करेगा न ही वह उचित उपाय है। जिन्हें असल में क़ैद करना चाहिए वे वो अपराधी हैं जिनसे बेटियाँ असुरक्षित हैं। ज़रूरी है कि आस-पास के लोगों से सतर्क रहा जाए। उनकी दृष्टि और मंशा के प्रति सजग रहा जाए।

अपराध घटने के बाद कानून की मदद लेने से बेहतर है कि अपराध और अपराधी की गंध लगते ही कानून के संरक्षण में जाना चाहिए और अपनी व हर बेटी की सुरक्षा के लिए सख़्त कदम उठाने चाहिए।

कानून और सरकार से पहले ये समाज की ज़िम्मेदारी है कि हर बेटी दुष्कर्मियों और हत्यारों के पंजों से बची रहे।

मूल चित्र: Amar Ujala/YouTube

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