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मल्लिका समग्र 19वीं सदी की लेखिका मल्लिका के होने का प्रमाण है 

मल्लिका समग्र इस बात की चर्चा ज़रूर करता है कि अगर भारतेंदु अपनी जीवनी पूरी कर पाते तो अवश्य मल्लिका के बारे में कोई जानकारी मिल जाती।

मल्लिका समग्र इस बात की चर्चा ज़रूर करता है कि अगर भारतेंदु अपनी जीवनी पूरी कर पाते तो अवश्य मल्लिका के बारे में कोई जानकारी मिल जाती।

भारतीय हिंदी साहित्य के इतिहास में उन्नीसवीं सदी में कुछ महिला रचनाकारों के साथ ऐसा हुआ कि उनकी रचनाएं स्वयं के नाम से नहीं छापी गई। जैसे 1982 में  छपी पुस्तक सीमान्त उपदेश की लेखिका “अज्ञात हिंदू महिला” और बीसवीं सदी के पहले छपी कहानी दुलाईवाली की लेखिका “बंगमहिला”।

इन रचनाओं को जब बाद में पुन: प्रकाशित भी किया गया तो उनके रचनाकारों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। इनके अतिरिक्त और भी कई महिला रचनाकार हो सकती हैं, जिनकी रचनाएं ज़रूर प्रकाशित हुई पर रचनाकार के रूप में उनका नामोल्लेख नहीं हुआ या फिर महिला रचनाकार सहयोगी के रूप में हो और उनका नामोल्लेख नहीं हुआ हो।

पेंट विश्वविद्यालय, बेल्जियम के डॉ राजकुमार ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय के डॉ संजय कुमार और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के डॉ अर्चना कुमार के साथ मिलकर “मल्लिका समग्र” को संकलित करने का काम किया है। जिसका पहला संस्करण कुछ दिन पहले राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है।

कौन थी मल्लिका

हिंदी साहित्य के इतिहास में मल्लिका भारतेन्दु हरिशचंद्र की बौद्धिक सहायक के रूप में उनके साथ खड़ी नज़र आती हैं।

भारतेन्दु की कई रचनाओं का मूल्यांकन करने पर कई बार यह प्रतीत होता है कि वह रचना मूल रूप से मल्लिका की ही रही होगी पर प्रकाशित भारतेन्दु के नाम से हुई। इस लिहाज़ से उन्नींसवी सदी के भारत में मल्लिका लेखन करने वाली हिंदी क्षेत्र में वह अकेली महिला हैं जो लेखन के साथ-साथ प्रकाशन भी कर रही थीं।

भारतेन्दु के वंशज गिरिशचंद्र चौधरी, राधाकृष्ण दास और वसुधा डालमिया ने भी इस तथ्य को माना है कि भारतेन्दु युग में उनकी कई रचनाओं की लेखिका मल्लिका थीं।

हरिचंद्र मैगज़ीन को हरिचंद्र चंद्रिका इसलिए किया गया क्योंकि चंद्रिका मल्लिका का ही दूसरा नाम था। वसुधा डालमिया यहां तक बताती हैं कि हिंदी भाषा में महिलाओं की पहली पत्रिका बाला बोधनी के प्रकाशन, संपादन में मल्लिका महत्वपूर्ण भूमिका में थीं।

क्यों पढ़नी चाहिए मल्लिका समग्र

भारतीय समाज में शायद ही कोई व्यक्ति हो,जिसको यह नहीं मालूम हो कि भारतीय समाज में महिलाओं के सामाजिक स्थिति में सुधार का पहला प्रयास राजा राम मोहन राय और ईश्वरचंद विद्यासागर जैसे समाजसुधारकों ने किया। पंरतु, उस दौर में या उसके बाद के दशक तक जब महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार तक नहीं था, उस समय एक चेतनाशील बौद्धिक महिला मल्लिका आधी आबादी के सवालों को किस तरह से देख समझ और परख रही थी और वह किस तरह महिलाओं के तमाम सवालों को पुर्नपरिभाषित कर रही थीं। इसकी जानकारी मल्लिका संमग्र में उनकी संकलित रचनाओं से समझा जा सकता है।

संकलित रचनाओं में कुमुदिनी की भूमिका हो या पारस्य/निरभिमानदानी की भूमिका, पूर्णप्रकाश चंद्रप्रभा हो या मल्किका के चार बांग्ला गीत जिनपर राधाकृष्ण दास की टिप्पणी भी शामिल है। पूरा का पूरा पाठ पृष्ठभूमि में इस आलोक को लेकर चलता है कि उस दौर के समाज में महिलाओं का शिक्षित होना, स्वयं उनके लिए ही कितनी बड़ी चुनौति रही होगी।

मल्लिका समग्र से मल्लिका के होने का प्रमाण मिलता है 

मल्लिका ने अपने समय में उपन्यास, गीत और लेख लिखे, पत्रिकाओं का संपादन-प्रकाशन भी किया। पर उनके बारे में कहीं कोई जानकारी नहीं है। वो कहां से थीं, बनारस कहां से आयीं और फिर कहां गायब हो गयीं, इतना समृद्ध विपुल साहित्य छोड़कर।

मल्लिका समग्र इस बात की चर्चा ज़रूर करता है कि अगर भारतेंदु अपनी जीवनी पूरी कर पाते जो वह अंतिम समय में अस्वस्था के कारण नहीं कर सके तो अवश्य मल्लिका के बारे में कोई जानकारी मिल जाती। बहरहाल, मल्लिका समग्र का संकलन अतीत में उनके होने का जीवंत सत्य है। 

मूल चित्र : Rajkamal Publication/ YouTube(from song Tera Mera Pyaar Amar, for representaional purpose only)

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