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माँ, अब आपकी बारी है…

अब जब आपकी बारी आई है तो आप अपनी ही दी हुई सीख से पीछे हट रही हो और आप तो ऐसे परेशान हो रही हो जैसे मैंने कोई पाप करने के लिए कह दिया हो।

अब जब आपकी बारी आई है तो आप अपनी ही दी हुई सीख से पीछे हट रही हो और आप तो ऐसे परेशान हो रही हो जैसे मैंने कोई पाप करने के लिए कह दिया हो।

“गुड़िया! तूने इंजीनियरिंग की परीक्षा अच्छे नंबर से पास कर ली। अब तो तू दिल्ली में जाकर पढ़ेगी। तूने हमारा नाम रोशन कर दिया। पता है तू हमारे घर की पहली लड़की है ,जो इतना पढ़ रही है। मैं, तेरी मौसी, तेरी बुआ कोई भी चाह कर भी ज्यादा ना पढ़ पाई और लड़कपन में ही लड़कियों को ब्याहकर, हमारे माँ-बाप बस गंगा नहा लिए। उनके लिए तो हम बस जिम्मेदारी ही थे। खैर, तू बता तुझे क्या तोहफा चाहिए?” अरुणा ने ठंडी साँस छोड़ते हुए अपनी बेटी राधिका से कहा।

“माँ! यह सब आप और पापा की वजह से ही तो हुआ। आपने तो हमेशा मेरा हौसला बढ़ाया। खुद आपने ज्यादा पढ़ाई नहीं की पर मुझे कभी नहीं रोका।” राधिका, अरुणा के गले में झूलते हुए बोली।

अरुणा और मोहन एक छोटे से कस्बे जालौन में रहते हैं। जहाँ मोहन की दवाइयों की दुकान है। घर में मोहन की माँ, पत्नी अरुणा, बड़ी बेटी राधिका और नवीं कक्षा में पढ़ने वाला बेटा राहुल हैं। यह एक मध्यमवर्गीय परिवार है।

मोहन ने स्नातक किया है जबकि अरुणा सिर्फ़ दसवीं तक ही पढ़ पाई क्योंकि उसके घर में लड़कियों को ज्यादा पढ़ाने का रिवाज़ नहीं था। पर अरुणा और मोहन दोनों ही अपने बच्चों की, बेहतर शिक्षा को लेकर बेहद सजग हैं। राधिका का इंजीनियरिंग के एंट्रेंस एग्जाम में बहुत अच्छी रैंक के साथ चयन हो गया है।

“अरे माँ बेटी में क्या खिचड़ी पक रही है? कोई इस बुढ़िया को भी बताएगा या नहीं? और गुड़िया अब आगे क्या करने का इरादा है तेरा?” तभी दादी माँ मंदिर से आ गईं और उन्होंने सवाल दागा।

“दादी मुझे दिल्ली का कॉलेज मिला है आगे पढ़ाई के लिए। पापा भी बहुत खुश है। अब बस वहीं जाने की तैयारी है।” राधिका ने खुश होते हुए कहा।

“हाय राम! अब तू इतनी दूर जाएगी क्या छोरी पढ़ने के लिए? कहाँ जालौन और कहाँ दिल्ली? माना जमाना बदल गया और हम भी नए जमाने के हैं भई। पर लड़की को इतना दूर क्यों भेजना? ज्यादा से ज्यादा झाँसी भेज देते हैं। पर आजकल के बच्चे कहाँ सुनते हैं?” दादी ज़रा क्रोध से बोलीं।

“अरे दादी! आप चिंता मत करो। अब समय बहुत बदल गया है और यह कॉलेज बहुत मुश्किलों से लोगों को मिलता है, आप की पोती को मिल रहा है तो आपको तो खुश होना चाहिए। आप बिल्कुल परेशान मत हो। आप सबने मुझे ऐसे संस्कार दिए कि मैं अपना अच्छा बुरा सोच सकती हूँ।” राधिका मुस्कुराई।

“अच्छा कलेक्टरनी जी अब ज्यादा भाषण न दो। तुम्हारे पापा हमें बता चुके हैं सब। चलो अब, इस बात पर चाय पी जाए।” मुस्कुराकर दादी बोली।

“अरे माँ, अपनी बात तो अधूरी ही रह गई।” रसोई में माँ के पीछे-पीछे आते हुए, राधिका ने कहा।

अरुणा ने पूछा, “कौन सी बात?”

“अरे,आप मुझसे तोहफे के लिए पूछ रहीं थीं न, वो बात”, राधिका ने उत्तर दिया।

“हाँ ,बता गुड़िया! क्या चाहिए तुझे?” चाय बनाते बनाते अरुणा ने पूछा।

“मुझे पहले आपसे वादा चाहिए कि जो माँगूगी वो मिलेगा।”

“पर क्या चाहिए?”

“माँ पहले वादा करो। मैं आपकी ही बेटी हूँ कुछ उल्टा-पुल्टा तो माँगूँगी नहीं इसलिए आप पहले वादा करो तभी बताऊँगी।”

“बड़ी ज़िद्दी होती जा रही है तू।अच्छा बाबा, वादा किया। अब बोल।” अरुणा नक़ली गुस्सा दिखाते हुए बोली।

“माँ मैंने देखा था, पापा मेरे लिए जो अंग्रेजी अखबार मँगाते हैं आप उन्हें पढ़ने की कोशिश करती हो। और मैंने देखा है आपको अंग्रेजी के शब्द बोलने की कोशिश करते हुए भी। तो मुझे आपसे यही तोहफा चाहिए कि आप इंग्लिश स्पीकिंग क्लास ज्वाइन कर लो।”

“अरे तू पागल हो गई है क्या गुड़िया? अब कोई क्लास ज्वाइन करने की उम्र है मेरी? हमारे यहाँ यह सब नहीं चलता। नाते-रिश्तेदार क्या कहेंगे ? सारे पड़ोसी भी हँसेंगे कि अरुणा तो पगला गई है। अंग्रेजी सीखने चली है। बड़ा विदेश में बसना है जैसे। बेटा हर चीज एक उम्र के हिसाब से ही अच्छी लगती है। नहीं भई, यह कभी नहीं हो सकता।” अरुणा कुछ क्रोध से बोली।

“माँ आप ही हमेशा कहती हो कि सीखने और सिखाने की कोई उम्र नहीं होती। अब जब आपकी बारी आई है तो आप अपनी ही दी हुई सीख से पीछे हट रही हो। और आप तो ऐसे परेशान हो रही हो जैसे मैंने कोई पाप करने के लिए कह दिया हो। आप तो ज्ञान ही प्राप्त करने जा रही होगी। उससे किसी को क्या लेना देना? लोगों का क्या है ? चार बात करेंगे बाद में यही सब लोग आप की ही मिसाल दूसरों को देंगे।”

“जब आपने मुझे कोचिंग भेजा था तब भी तो लोगों ने कितनी बातें बनाईं थीं। पापा को भी कितना सुनना पड़ा था। तब आपने मेरा मनोबल ऊँचा किया था, मुझे हिम्मत दी थी।और आज देखो जब मेरा सिलेक्शन हो गया तो यही लोग आपकी और मेरी तारीफों के पुल बाँधते घूम रहे हैं।आपको कब से लोगों और समाज की चिंता होने लगी। विद्या प्राप्त करना कोई पाप तो नहीं है चाहे जो भी उम्र हो।”

“हाँ गुड़िया! तू कह तो सही रही है।मन तो मेरा बहुत है अंग्रेजी सीखने का। पर तेरे पापा भी पता नहीं क्या सोचेंगे?”

“मेरी प्यारी माँ, मैने पापा से भी बात कर ली है। वे भी बहुत खुश है कि आप कुछ नया सीखना चाहती हो।अपना ज्ञान बढ़ाना चाहती हो और हमारी दादी तो हैं ही नए जमाने की।” चुटकी लेते हुई राधिका बोली।

उसकी इस बात पर अरुणा भी हँस पड़ी और अपना अंग्रेजी सीखने का सपना पूरा होने की खुशी, उसकी आँखों में चमक उठी।

आज उसकी बेटी ने उसे दो बातें सिखाईं। पहली, यदि आप सही हो तो किसी से डरने की जरूरत नहीं है। और दूसरा, बच्चों को दी हुई अच्छी सीख, बच्चों और उनके आसपास के लोगों की जिंदगी सँवार देती है और उन्हें आत्मविश्वास से भर देती हैं।

जब राधिका दिल्ली पढ़ने चली गई तो अरुणा ने भी इंग्लिश स्पीकिंग की कोचिंग ज्वाइन कर ली फिर उसने राधिका के कहने पर ही बारहवीं का प्राइवेट फॉर्म भरा। सास थोड़ी नाराज़ हुईं पर सभी ने उन्हें मना लिया। रिश्तेदार और पड़ोसियों ने कुछ समय तक खूब बातें बनाई। अरुणा की पति की भी खिल्ली उड़ाई।

लोग हँसते हुए कहते, “क्या भाई साहब! इस उमर में भाभी जी को अंग्रेजी की कोचिंग भेज रहे हो, कौन से इंटरव्यू की तैयारी करानी है? अब तो फ़िर वो स्कूल भी पढ़ने जाने लगेंगी।”

पर अरुणा की लगन और उसके चेहरे का आत्मविश्वास देखकर धीरे-धीरे लोगों ने बातें बनाना बंद कर दिया। अब अरुणा पड़ोस के बच्चों को अंग्रेजी का ट्यूशन देती है और मोहन की दुकान के कामों में भी थोड़ी सहायता कर देती है। पूरे मोहल्ले में उसकी बहुत सम्मानित छवि बन गई है।

राधिका ने सच कहा था अब सभी परिचित लोग आत्मविश्वास से परिपूर्ण अरुणा का उदाहरण देते हैं। अरुणा के जीवन को एक सार्थकता एवं दिशा देने वाली नायिका उसकी बेटी राधिका थी।

मूल चित्र: Still from Jos Allukas Ad via Youtube 

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