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आख़िर महिलाएँ पुलिस में भर्ती क्यों नहीं होना चाहतीं?

भारत में महिला थानों की इतनी कमी क्यों है? क्यों पुलिस विभागों में पुरुषों का ही वर्चस्व है? महिलाएँ पुलिस में भर्ती क्यों नहीं होना चाहती?

भारत में महिला थानों की इतनी कमी क्यों है? क्यों पुलिस विभागों में पुरुषों का ही वर्चस्व है? महिलाएँ पुलिस में भर्ती क्यों नहीं होना चाहती?

आखिर ऐसा क्या कारण या परिस्थितियाँ हैं जो महिलाएँ हर क्षेत्र में अपनी क्षमता का डंका बजाने के बाद भी अब तक पुलिस बलों में भर्ती होने से कतराती हैं? महिलाएँ पुलिस में भर्ती क्यों नहीं होना चाहती?

हमारे समाज में एक आम विचारधारा है कि जहाँ शारीरक क्षमता या द्वंद की बात आती है, वह एक पुरुष का ही क्षेत्र हो सकता है। पुलिस बल एक ऐसा कार्यस्थल है जहाँ केवल पुरुषों का वर्चस्व हो सकता है और यह स्थान महिलाओं की शारीरक बनावट और स्वभाव के हिसाब से उचित नहीं है।

इस तरह के विचार महिलाओं को यह सोचने और विश्वास करने पर मजबूर कर देते हैं कि वे वाकई शारीरिक और मानसिक रूप से पुलिस विभाग में कार्य करने हेतु उपयुक्त नहीं हैं।

इसमें कोई दो राय नहीं कि पुलिस की नौकरी एक बहुत ही मुश्किल और ज़िम्मेदारी वाला काम है। पर महिलाएँ न तो मुश्किलों से घबराती हैं न ही जिम्मेदारियों से। फिर भी पुलिस बलों में महिलाओं की भागीदारी इतनी कम क्यों है? संभवतः कुछ ऐसी समस्याएँ हैं जो पुरुषों के मुक़ाबले महिलाओं के लिए ज़्यादा कठिन हैं।

जैसे कि निजता और टॉइलेट जैसी मूलभूत सुविधा का अभाव। धूप में घंटों खड़े रहने के बाद भी महिला पुलिस कर्मचारी इसलिए पानी कम पीती हैं कि उन्हें बार-बार टॉइलेट न जाना पड़े। इसके अतिरिक्त महिला पुलिस कर्मचारियों को जो बुलेट प्रूफ़ जैकेट दिया जाता है वह केवल पुरुषों को ध्यान में रखकर बनाया गया है और महिलाओं के लिए वह बेहद असुविधाजनक होता है।

कार्यस्थल की चुनौतियाँ

यह एक सार्वभौमिक सत्य है कि महिलाओं की शारीरक बनावट और निजता की आवश्यकताएँ पुरुषों के मुक़ाबले भिन्न हैं। इसी कारण उन्हें कार्यस्थल पर कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

शौचालय का अभाव

निजता और शौचालय मूलभूत आवश्यकताएँ हैं। इनके अभाव में महिलाओं को काफ़ी दिक्कत का सामना करना पड़ता है। जब वे किसी सड़क या ऐसे इलाके में तैनात होती हैं जहाँ आस-पास कोई शौचालय न हो वहाँ धूप में घंटों खड़े रहने रहने के बाद भी वे शौचालय जाने के डर से पानी कम पीती हैं।

जिसके कारण वे अक्सर पानी की कमी या डीहाइड्रेशन (dehydration) की समस्या को झेलती हैं। इससे भी गंभीर परिस्थिति उनके लिए माहवारी (periods) के समय होती हैं। पूरा-पूरा दिन शौचालय का इस्तेमाल न कर पाना और पैड न बदल पाना उनके लिए कई गंभीर शारीरक रोग पैदा कर सकता है।

बार-बार स्थानांतरण

बार-बार जिले के अंदर स्थानांतरित किया जाना और गृह जिले में तैनाती न मिलना भी महिलाओं के लिए मुश्किल बढ़ाता है। इससे उनके पारिवारिक जीवन और बच्चों के प्रति उत्तरदायित्वों को निभाने में समस्या बढ़ती है। इस कारण उनके बच्चों की परवरिश और शिक्षा दोनों ही प्रभावित होती है।

लैंगिक भेदभाव (gender discrimination) भी है एक बड़ा कारण

शायद ही ऐसा कोई क्षेत्र हो जहाँ महिलाओं को जेंडर डिस्क्रिमिनेशन या हर रोज़ की सेक्सिस्म से गुज़रना न पड़ता हो। पुलिस बल भी इससे अछूता तो नहीं है। टॉइलेट, निजता और रात्रिकालीन ड्यूटी जैसी आम समस्या ही महिलाओं के लिए रोज़-मर्रा के मज़ाक का कारण बन जाते हैं।

महिलाओं की संख्या कम होने के चलते और पुरुष वर्ग का वर्चस्व होने के कारण पुलिस बलों में अक्सर महिलाओं को लैंगिक भेदभाव के तीखे बाणों से दो-चार होना ही पड़ता है।

वर्कप्लेस एनवायर्नमेंट

माना कि महिलाओं को अब हर क्षेत्र में अपनी जगह बनाने के लिए अवसर मिल रहे हैं पर ये प्रयास एकतरफा हैं। महिलाएँ पूरी शिद्दत और लगन से आगे बढ़ना चाहती हैं पर उनके अनुकूल कार्यस्थलों में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जा रहा।

बात चाहें किसी और विभाग की हो या पुलिस फ़ोर्स की, कार्यस्थल का माहौल अनुकूल न हो तो उत्तरदायित्व निभाने में मुश्किलें आती हैं। चाहे बात बुलेटप्रूफ़ जैकेट की हो, शौचालय के अभाव की, चाइल्ड केयर की समस्या की, निजता के अभाव की, रोज़-मर्रा की सेक्सिस्म या फिर पुरुष पुलिस अधिकारियों द्वारा किसी भी प्रकार शोषण की हो यह सब बातें महिलाओं के लिए पुलिस में काम करना बेहद मुश्किल बना देती हैं।

आरक्षण केवल कुछ राज्यों तक ही सीमित

The Hindu के एक लेख के अनुसार भारत सरकार के गृह मंत्रालय का यह प्रयास रहा है कि पुलिस बलों में अधिक से अधिक महिलाओं की भर्ती हो, इसी कारण पुलिस फ़ोर्स में महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई।

पर यह आरक्षण भारत के सभी राज्यों में लागू नहीं होता। केवल गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना, राजस्थान, झारखंड, तमिल नाडु, केरला और कर्नाटका में महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था है। पर पुलिस बलों में यह आरक्षण केवल कुछ ही पदों तक सीमित है।

जैसे केरला और कर्नाटका में कॉन्स्टेबल पद के लिए और आंध्र प्रदेश, झरखांड और तमिल नाडु में कॉन्स्टेबल और सब इंस्पेक्टर के पद के लिए आरक्षण की व्यवस्था है। इसमें भी हर रैंक के अंदर कुछ विशेष पद ही आरक्षित हैं।

क्यों ज़रूरी है महिलाओं का पुलिस बलों में होना

स्टेटस ऑफ इंडिया पुलिसिंग 2019 की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय पुलिस बलों में केवल 7.28% महिलाओं का योगदान है। जिसमें से 90% कॉन्स्टेबल हैं और केवल 1% उच्च पदों पर नियुक्त हैं।

पुलिस में महिलाओं की भर्ती एक लिंग संवेदनशील न्याय प्रणाली (gender responsive justice system) के लिए बेहद ज़रूरी है। अक्सर पीड़िताओं और शिकायत दर्ज कराने जाने वाली महिलाओं के लिए पुरुष पुलिस अफ़सरों या कर्मचारियों से अपनी बात कह पाना मुश्किल होता है। देखा गया है कि पुरुष/महिला शारीरक शोषण के मामले महिला पुलिस से ज़्यादा और आसानी से रिपोर्ट किए गए हैं।

मुश्किलें किस क्षेत्र में नहीं होतीं और भला महिलाएँ मुश्किलों से कहाँ घबराती हैं। ज़रूरी है कि महिलाएँ अब पुरुष और महिला पुलिस की संख्या के इस अंतर को जल्द से जल्द कम करते हुए समाज और मुश्किलों में पड़े लोगों की मदद के लिए आगे बढ़कर आएँ और पुलिस बलों में भर्ती हों।

मूल चित्र: Venus via Youtube

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