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इन्होंने रोटी पकाते हुए की अपनी पढ़ाई, लेकिन…

उनका किचन शॉर्ट नोट्स की पर्चियों से पटा रहता था और काम करने के दौरान वे रिवाइज करती रहती थीं, कहती हैं BPSC टॉपर मनोरमा। 

उनका किचन शॉर्ट नोट्स की पर्चियों से पटा रहता था और काम करने के दौरान वे रिवाइज करती रहती थीं, कहती हैं BPSC टॉपर मनोरमा। 

हाल में बिहार लोक सेवा आयोग के परिणाम घोषित हुए हैं। इसमें रेवेन्यू ऑफिसर के पद पर चयनित मनोरमा का इंटरव्यू देखा। उनका इंटरव्यू ख़ास था क्योंकि बिहार जैसे परिवेश में तीन बच्चों और परिवार की जिम्मेदारी संभालते हुए उन्होंने सफलता हासिल की।

इंटरव्यू लेने वाले पत्रकार ने टाइम मैनेजमेंट पर सवाल किए तो उन्होंने बताया कि कैसे उनका किचन शॉर्ट नोट्स की पर्चियों से पटा रहता था और काम करने के दौरान वे रिवाइज करती रहती थीं। कैसे रोटी बनाने जाने से पहले वे मेंस का कोई प्रश्न पढ़ कर जाती थीं और रोटी बनाते हुए उत्तर की फ्रेमिंग किया करती थीं। बीच में कुछ भूल जाए तो दौड़ कर कमरे में आकर नोट्स पलटती थीं फिर भागकर किचन में जाती थीं।

रोटी बनाते हुए उत्तर की फ्रेमिंग क्या कहती है?

वास्तव में इन परीक्षाओं में समर्पण-भाव के बिना सफलता मुश्किल ही है। ऐसे उदाहरण खास तौर पर प्रेरणदायी हैं। बातचीत के सिलसिले में पत्रकार महोदय ने कहा कि आप उन तमाम लड़कियों के लिए प्रेरण स्रोत हैं जिन्हें लगता है कि सुविधाएं और बहुत ज्यादा समय देकर ही सफलता हासिल की जा सकती है। इस समय आपका पूरा गांव आप पर गर्व कर रहा है।

जल्दी शादी कर के बेटियों का निपटारा

मुझे ऐसे संघर्षशील जीवन से निकाले गए इस प्रकार के निष्कर्ष से घोर आपत्ति है। ऐसे उदाहरणों पर समाज को गर्व से कहीं ज्यादा शर्म आनी चाहिए। खासतौर पर ऐसे माता-पिता को शेम किया जाना चाहिए जो शादी कर के बेटियों का निपटारा कर देते हैं।

मनोरमा अपने परिवार के साथ – YouTube

यदि इनको ‘सामान्य’ जीवन मिलता तो?

मैं तो ये सोचकर हैरान हूँ कि जिन महिलाओं ने इन परिस्थितियों में इतना कुछ कर दिखाया उन्हें सामान्य जीवन मिलता तो क्या कुछ नहीं कर जातीं! जो आज रेवेन्यू ऑफिसर बनी हैं शायद जिले की DM होतीं शायद रिटायर होते-होते PMO में सेक्रेटरी होतीं। जो टीचर है शायद प्रोफेसर होती या फिर लेखिका। उनकी जो संभावनाएं छीन ली गईं ,जो क्षमताएं मार डालीं गईं, उनका हिसाब अब जबकि उन्होंने खुद को साबित कर दिया है तब भी नहीं होगा तो कब होगा!

अतिरिक्त दबाव और संघर्ष क्यों आना चाहिए किसी के हिस्से?

यदि इन लड़कियों ने खुद को साबित नहीं किया होता तो लड़कियों को मूर्ख कहने को दुनिया तैयार ही रहती है। फिर अभी इन अन्यायों का विश्लेषण क्यों नहीं होना चाहिए? ऐसे उदाहरणों को बार-बार उद्धृत कर मूल समस्या से पल्ला झाड़ने से बचना चाहिए क्योंकि जरूरी नहीं है कि सबके पास इतनी मानसिक मजबूती और/या सपोर्ट सिस्टम हो ही और अगर हो भी तो अतिरिक्त दबाव और संघर्ष क्यों आना चाहिए किसी के हिस्से? ऐसे में जाने कितनी लड़कियाँ गुमनाम ही रह गईं होंगी ।

मैं ऐसी कुछ महिलाओं को व्यक्तिगत तौर पर जानती हूं और महसूस कर सकती हूँ कि उनके हक और क्षमता भर न उन्हें जमीन मिली, न ही आसमां। उन्होंने जो भी हासिल किया उसकी भारी कीमत भी चुकाई, और सफल होने के बाद भी चुका रहीं हैं। अक्सर ऐसी महिलाओं से जुड़े पुरुषों को स्वतः क्रेडिट दे दिया जाता है लेकिन ठहर कर सोचिए कि क्रेडिट तब बनता जब ये सब झेलने से उन्हें बचा लिया जाता।

शर्म की जानी चाहिए कि किसी वर्ग के लिए इस समाज ने हर छोटी चीज को किस प्रकार अनावश्यक रूप से मुश्किल बनाया है। समाज को स्वंय पर तब गर्व करना चाहिए जब ऐसे संघर्षपूर्ण उदाहरण आने बंद हो जाएं।

मूल चित्र : YouTube 

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About the Author

Pooja Prashasti

I live in a village called Mairwa in Siwan district of Bihar. I'm the mother of a daughter, and am working as a primary teacher for the Bihar govt. read more...

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