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ये तुम्हारा ही घर है, उस पर तुम्हारा पूरा हक है, पर क्या अगर इसी घर में रोज़ खाना है, तो रसोई में थोड़ा हाथ नहीं बँटाया जा सकता?
कहते है मायका सिर्फ माँ तक सीमित होता है। क्या इसके पीछे का किसे ने कारण जानने की इच्छा की?
कुछ केसेज़ में लड़किया अपनी इज्जत खुद ही कम करती हैं। माँ है, वह तो लाड लड़ाएगी, उसे अपनी बेटी में गलती नजर नहीं आयेगी। और मुझे शिकायत एक माँ के प्यार से नहीं है…
मेरे घर में मैं अपने सास-ससुर और पति के साथ रहती हूँ। जेठ जेठानी ऊपर अलग रहते हैं। लाजमी है कि सब का आना भी हमारे घर होगा।
घर पर रहने वाली औरत घर का काम करे न करे, पर नौकरी जाने वाली बहु को तो करना ही पड़ेगा। नहीं तो तानों से सारा घर गूंजेगा।
मेरी ननद लोकल है और जेठ जेठानी ऊपर वाले घर में। तो जो भी खाना बनता था पहले दोनों के घर जाना लाजमी है, तभी हमें मिलता। ननद या तो मायके में खाना खाती या फिर बाजार से आता। इस बात पर यकीन करना बहुत मुश्किल है, पर उनके घर पर एक टाइम का भी खाना नहीं बनता था।
मेरी सास काम में तेज थीं, तो घर का काम निपटा के बेटी के घर का भी निपटा कर आतीं। इसी तरह रोज चलता रहा। रोज शाम को मैं नौकरी से आकर ननद और उसके परिवार को खाना बना के खिलाती, दिन का मम्मी खिला देतीं।
मेरी शादी को डेढ़ साल हो गया और यही चल रहा है। सिर्फ इतना ही नहीं, खाना तो बहुत छोटा सा पहलू है, अगर तुम्हारा घर है, और उसपर पूरा हक़ है तुम्हारा, तो अगर हक़ से रोज खाना खा सकते हो, तो रसोई में थोड़ा हाथ नहीं बँटाया जा सकता?
क्या मम्मी को कहना नहीं चाहिए कि वो भी थक कर आती है, कुछ तो तुम कर सकती हो? क्या मैं सिर्फ इसी बात मैं खुश होती रहूँ कि मैं एक अच्छी भाभी हूँ? और अपनी हिम्मत से ज्यादा काम करती रहूँ?
क्या मैं सारी उम्र ऐसे अकेले बना कर खिला पाऊंगी? नहीं, बिल्कुल नहीं! आप घर का हिस्सा हैं तो हाथ बटाने में भी तो अपना हक़ और फ़र्ज़ जताएं। अगर मैं कल अपना फ़र्ज़ नहीं निभा पायी, तो यही कहा जायेगा, “माँ के बिना मायका नहीं रहता…”
मूल चित्र: Still from Eastern Condiments Ad, YouTube
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