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क्यों ज़रूरी है पीसनी सिलबट्टे की चटनी…

"औरतों ने किचेन के सुस्वाद भोजन के जायका बिगाड़ दिया है। अगर आप स्वस्थ्य रहने के इच्छुक हैं तो योगा या रस्सी कूदने की ज़रूरत नहीं है।"

“औरतों ने किचेन के सुस्वाद भोजन के जायका बिगाड़ दिया है। अगर आप स्वस्थ्य रहने के इच्छुक हैं तो योगा या रस्सी कूदने की ज़रूरत नहीं है।”

फिल्म द ग्रेट इंडियन किचन की कहानी का बिंब अभी धुँधला भी नहीं हुआ था और सोशल मीडिया फेसबुक पर एक वरिष्ठ पत्रकार के अनुसार, “औरतों ने किचेन के सुस्वाद भोजन के जायका बिगाड़ दिया है क्योंकि सिलबट्टे का इस्तेमल बंद कर दिया है। महिलाओं को स्वस्थ रहने के लिए योग या रस्सी नहीं कूदना चाहिए, सिलबट्टा पर चटनी पीसनी चाहिए।”

मतलब, “मर्द के दिल का रास्ता पेट से होकर जाता है।

यह सूत्र वाक्य सच है। इसके लिए कोई जीवन भर रसोई में खप जाए, उम्र के दहलीज पर आकर भी उनको सिलबट्टे पर चटनी पीसकर दे, फिर चाहे वह घुटने, कमर और कुहनी के दर्द से परेशान रहे, कोई फर्क नहीं पड़ता है।

आधुनिकता और पूंजीवाद की दुहाई देते हुए पुरुष लेटेस्ट मोबाईल और लैपटॉप का इस्तेमाल करें  कोई समस्या नहीं है। परंतु, महिलाएं आधुनिकता और वैज्ञानिक आविष्कार के उपयोग से अपना जीवन सुलभ और आरामदायक तक नहीं बनाए।

आधुनिकता सिर्फ पुरुषों के लिए ही तो है

द ग्रेट इंडियन किचन” के कहानी में, एक पढ़ी-लिखी महिला शादी के बाद अपना जीवन शुरू करती है, जिसके बाद नव-वधू का पूरा समय रसोई में खाना बनाते हुए गुज़र जाता है। उसके घर में मोबाईल-टीवी तमाम उपकरण का इस्तेमाल घर के लोग करते हैं, पर खाना उन्हें लड़की के चूल्हे पर बना, चटनी उनको सिलबट्टे पर पीसा हुआ और कपड़े हाथ से साफ किया हुआ चाहिए। हिंदी भाषी फिल्म नहीं होने के बाद भी, समीक्षकों और दर्शकों को यह कहानी बहुत पसंद आई। फिल्म को महिलाओं के घरेलू अवैतनिक श्रम और अस्तित्व से जोड़कर देखा गया।

महिलाओं के प्रेरणा से हुए हैं कई आविष्कार

दुनियाभर में कई आधुनिकता के दौर में कई इस तरह के आविष्कार हुए हैं जिन्होंने महिलाओं के दैनिक जीवन को सरल-सुलभ करने का काम किया है। कुछ तो इस तरह के भी हैं जिसकी प्रेरणा के पीछे भी महिलाओं से जुड़ी तकलीफ रही है।

इज़ाक मेरिट सिंगर जिन्होंने अमेरिका में सिलाई मशीन का पेंटेंट कराया, अपनी मां को कपड़े सीते वक्त सुई अंगुलियों में चुभने और खून निकलने के पीड़ा से परेशान थे। उन्होंने अपनी मां को कपड़े के सिलाई से निज़ात दिलाने के लिए सिलाई मशीन इज़ाद की।

भारत में कर्नाटक के बोम्मई एन वास्तु ने अपनी मां को रोज रोटी बनाने में परेशानी को देखकर, रोटी बेलने की मशीन इज़ाद कर ली, इस तरह के कई आविष्कर है जिसकी प्रेरणा में महिलाओं के तकलीफ से जुड़ी है।

पर ये क्या? औरतों ने किचेन के सुस्वाद भोजन के ज़ायका बिगाड़ दिया है?

परंतु. सोशल मीडिया पर सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ल के अनुसार, “औरतों ने किचेन के सुस्वाद भोजन के जायका बिगाड़ दिया है। अगर आप स्वस्थ्य रहने के इच्छुक हैं तो योगा या रस्सी कूदने की ज़रूरत नहीं है। स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए अच्छे पाक शास्त्री बनिये। घर में सिल-बट्टा और दरतिया जरूर रखिए। कैथा, मेथी दाना और नारियल की चटनी सिर्फ सिल-बट्टे से ही बन सकती है। मिक्सी के बजाय सिल-बट्टे पर पिसी चटनी का जायका ही अलग है। अगर दाल बाटनी हो तो सिलबट्टा जरूरी है।”

सिल-बट्टे और मिक्सी के चटनी में फर्क तो है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता है। सिल-बट्टे में पीसने वाली चीजों में दरदरापन होता है और मिक्सी काफी महीन पीस देता है। पाक कला के महारथ हासिल कर चुके कई शेफ भोजन बनाने में देशी ठसकपन देने के लिए सिल-बट्टे का उपयोग भी करते हैं, सलाह भी देते हैं। अगर स्वाद से आप समझौता नहीं करना चाहते हैं, तो सिल-बट्टे का इस्तेमाल जरूर करें।

यह बात अक्सर पुरुष शेफ ही करते हैं

मजेदार बात यह है कि यह बात अक्सर पुरुष शेफ ही करते हैं। महिला यूट्यूबर जो खाना बनाने का तरीका बताती हैं, वो भी अपवाद स्वरूप ही सिल-बट्टे का इस्तेमाल करती हुई नज़र आती हैं।

सिल-बट्टे और मिक्सी के साथ केवल महिलाओं का संबंध ही क्यों है? केवल महिलाओं को स्वस्थ्य रहने के लिए सिल-बट्टे का इस्तेमाल क्यों करना चाहिए? सिल-बट्टे के प्रयोग से वजन कैसे कम होता है? ऐसे तर्क अपने साथ पितृसत्तात्मक मानसिकता को सतह पर लाकर पटक देती है, जहां अक्सर यहीं समझा जाता है कि आधुनिकता और वैज्ञानिक खोजों ने महिलाओं के हाथ में मशीन पकड़वाकर, महिलाओं को काफी खाली समय दे दिया है।

अब तो महिलाओं के पास टाइम ही टाइम है

अब उनका श्रम को कुछ रह ही नहीं गया है। सवाल है जब आधुनिकता और वैज्ञानिक खोजों का फायदा पुरुषों के जीवन की दुश्वारियों को कम कर रही है, तो कोई समस्या नहीं है। परंतु, महिलाएं उन आधुनिक्ता और वैज्ञानिक खोजों के आविष्कार से अपना जीवन सुगम और सरल बना रही हैं, तो समस्या हो रही है! आखिर क्यों? क्या सिर्फ इसलिए क्योंकि हमारी सामाजिक और पारिवारिक संरचना में घर में भोजन बनाने का काम मुख्य रूप से महिलाओं के जिम्मे है? अगर वह पुरुष के जिम्मे होता तो भी यहीं तर्क दिया जाता? जाहिर है नहीं दिया जाता।

वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ल ने तौरफा विरोध को देखते हुए मूल पोस्ट को हटा लिया है। परंतु, संशोधित करते हुए फिर से पोस्ट डाला है उसमें भी इस तर्क को नथ्थी कर दिया है कि औरतों ने किचेन के सुस्वाद भोजन के जायका बिगाड़ दिया है…

मूल चित्र :  Still from MTR Breakfast Mix Ad, YouTube

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