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मीना कुमारी का कहना है कि हिंसाओं को रोकने के लिए लड़कियों के मोबाइल पर नज़र रखनी चाहिए

उत्तर प्रदेश महिला आयोग की मीना कुमारी के मुताबिक महिलाओं के हाथ में मोबाइल फ़ोन ही उनके खिलाफ हिंसा का ज़िम्मेदार है!

उत्तर प्रदेश महिला आयोग की मीना कुमारी के मुताबिक महिलाओं के हाथ में मोबाइल फ़ोन ही उनके खिलाफ हिंसा का ज़िम्मेदार है!

उत्तर प्रदेश महिला आयोग की एक सदस्य का चौकानें वाला बयान सामने आया। बलात्कार के बढ़ते मामलों और महिलाओं के खिलाफ अपराध को कम करने की राज्य की योजनाओं के बारे में एक सवाल के जवाब में, मीना कुमारी ने संवाददाताओं से कहा, लड़कियों को मोबाइल फोन नहीं दिया जाना चाहिए क्योंकि वे लड़कों के साथ बात करती हैं और बाद में उनके साथ भाग जाती हैं।

“मैं माता-पिता से अपील करती हूं कि बेटियों को मोबाइल फोन न दें… अगर वे ऐसा करती हैं तो फोन की नियमित जांच होनी चाहिए। यह सब (महिलाओं के खिलाफ अपराध) माताओं की लापरवाही के कारण है। हमें, माता-पिता और समाज के रूप में, अपनी बेटियों पर निगरानी रखनी होगी। हमेशा देखें कि वे कहाँ जा रही हैं, और वे किन लड़कों के साथ बैठी हैं। हमें उनके मोबाइल फोन की जाँच करनी होगी।” 

कुछ महीनों पहले ही राष्ट्रीय महिला आयोग की एक सदस्य चंद्रमुखी देवी ने कहा था कि उत्तर प्रदेश के बदायूं में एक 50 वर्षीय महिला के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या को टाला जा सकता था अगर वह शाम को बाहर नहीं जाती। 

और ठीक चंद्रमुखी देवी की तरह ही मीना कुमारी ने भी अपने बयान पर जस्टिफिकेशन जारी कर दिया है। “मेरे बयान की गलत व्याख्या की गई है। मैंने जो कहा वह यह था कि माता-पिता को यह जांचना चाहिए कि उनके बच्चे पढ़ाई या अन्य उद्देश्यों के लिए मोबाइल फोन का उपयोग कर रहे हैं। मैंने कभी नहीं कहा कि अगर लड़कियां फोन का इस्तेमाल करती हैं तो वे लड़कों के साथ भाग जाएंगी।” 

आयोग की सदस्य मीना कुमारी के बयान की सोशल मीडिया पर जमकर आलोचना हो रही है। दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने इस पर ट्वीट कर कहा, “नहीं मैडम, लड़की के हाथ में फोन बलात्कार का कारण नहीं है। बलात्कार का कारण है ऐसी घटिया मानसिकता जो अपराधियों के हौसले और बढ़ाती है। प्रधानमंत्री जी से निवेदन है सभी महिला आयोगों को ज़रा सेंसिटाइज करवाइए, एक दिन दिल्ली महिला आयोग की कार्यशैली देखने भेजिए, हम सिखाते हैं इन्हे!”

महिलाओं को लेकर इस तरह के बयान हर दूसरे तीसरे दिन खबर में रहते हैं। इन सब में एक बात जो कॉमन होती है, वो है, विक्टिम ब्लेमिंग। जब भी कोई महिला अपने खिलाफ हुई हिंसा की आवाज उठती है तो उसी पर सवालों की बाढ़ आ जाती है। 

जो भी शिक्षा देनी होती है, जहां भी सुधार की ज़रूरत है वो सिर्फ सर्वाइवर में हैं। ढंग के कपड़े पहनती, अकेले घर से बाहर नहीं जाती आदि सब कहकर लड़कियों पर सारा ब्लेम डाल दिया जाता है। और इन सभी से हिंसा करने वालों और इस तरह की मानसिकता रखने वालों की ताकत बढ़ जाती है। ऐसा लगता है समानता के लिए हम एक कदम आगे बढ़ाते हैं और इस तरह के लोग हमें फिर से 4 कदम पीछे धकेल देते हैं।

प्रिय मीना कुमारी, अगर ऐसा होता है तो हमारी नवजात बच्चियाँ, गाँवों में दूर बैठी वे महिलाएँ सुरक्षित होती। लेकिन अफ़सोस ऐसा नहीं है। टेक्नोलॉजी से दूर करना और लड़कियों पर निगरानी रखने से रेपिस्ट की सोच में कोई फर्क नहीं आएगा। बेहतर होगा आप इसी मोबाइल फ़ोन और टेक्नोलॉजी का उपयोग सबसे पहले अपने आप को शिक्षित करने में लें। 

About the Author

Shagun Mangal

A strong feminist who believes in the art of weaving words. When she finds the time, she argues with patriarchal people. Her day completes with her me-time journaling and is incomplete without writing 1000 read more...

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