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क्या है रज-पर्व? ओडिशा इकलौता राज्य है जहां ये उत्सव मनाया जाता है, हम क्यूँ नहीं पीरियड्स से जुड़ी रूढ़ियों को भुला कर इसे मना सकते?
कैसे हैं आप सब? उम्मीद हैं अच्छे होंगे और खुद को कोरोना से बचाकर रख रहे होंगे। अब तो मान्सून की शुरुआत हो चुकी है, बारिश बीच-बीच में अपने दर्शन देने लगी है। ऐसे में जैसे खाने वालों को खाने का बहाना चाहिए, वैसे ही मानसून भी कुछ त्योहार साथ लाता है। एक ऐसे ही त्योहार के बारे में मुझे हाल ही में पता चला।
मेरे पति ग्राफिक डिज़ाइनर हैं। कल वो अपने ऑफिस के काम के लिए एक पोस्ट बना रहे थे जिसकी तस्वीर मुझे बहुत अच्छी लगी। मैंने पूछा तो उन्होंने बताया कि यह ओडिशा में होने वाले रज पर्व के लिए है।
मैंने पूछा ये कौन सा त्योहार है तो उन्हें भी ज़्यादा कुछ मालूम नहीं था बस इतना ही पता था कि महिलाओं का कोई त्योहार होता है। फिर मैंने रज-पर्व के बारे में पढ़ा और उन्हें भी बताया। जब पढ़ा तो लगा कि अब तक क्यों नहीं पता था।
जिस महिला को पीरियड्स आए हों उसे हिंदी में रजस्वला भी कहते हैं जिसके नाम पर इस त्योहार का नाम रज-पर्व है।
ओडिशा का अनूठा रज-पर्व या राजा परबा त्योहार तीन दिन तक चलता है। इस साल 15-18 जून तक रज पर्ब मनाया जाएगा। मान्सून के इस त्योहार में धरती माँ की ख़ास पूजा की जाती है और यह माना जाता है कि इस दौरान धरती मासिक धर्म यानि पीरियड्स से गुज़रती है।
राजा पर्व के चार दिनों के नाम हैं– पहले दिन को पहिली राजा कहते हैं; दूसरे दिन को मिथुना संक्रांति कहा जाता है; तीसरे दिन को दाहा कहा जाता है; जबकि चौथे दिन को वसुमती स्नान कहते हैं जब धरती माँ को स्नान कराया जाता है।
आज इतने विकास और आधुनिक बातों के बावजूद भी जब पीरियड्स हमारे समाज में टैबू जैसा है, ऐसे में ओडिशा का ये त्योहार अपने आप में एक उदाहरण है।
ओडिशा के छोटे-छोटे गांवों में भी ये त्योहार धूम-धाम से मनाया जाता है। ओडिशा के लोगों की मान्यता है कि पृथ्वी माँ, भगवान विष्णु की पत्नी हैं और जब मानसून आता है तो उसे प्रतीकात्मक रूप से धरती माँ के पीरियड्स माने जाते है।
उनके अनुसार ये त्योहार किसानों और फसलों से भी जुड़ा हुआ है। जैसे पीरियड्स आने का मतलब होता है कि लड़की चाहे तो नई ज़िंदगी को जन्म दे सकती है वैसे ही मान्सून का मतलब है कि धरती माँ जब चाहे अपनी फर्टिलिटी से नई फसलें उगा सकती है।
क्योंकि इस त्योहार से पहले सारी फसलें काटी जा चुकी होती हैं इसलिए ओडिशा के लोगों के मुताबिक जैसे हर औरत को पीरियड्स में आराम की ज़रूरत होती है वैसे ही धरती माँ को भी 3 दिन आराम चाहिए होता है।
इसी मान्यता के कारण वहां के लोग तीन दिन तक फसलों की कटाई, बुवाई और जमीन से जुड़ा हर तरह का काम रोक कर धरती माँ को सम्मान प्रदान करते हैं। ओडिशा के इस त्योहार के ज़रिए महिलाओं के मासिक धर्म को त्योहार के रूप में मनाया जाता है।
इस त्योहार के लिए बच्चे, बड़े, बूढ़े अपने घरों की सफ़ाई करते हैं। कई महिलाएँ व्रत भी रखती हैं और तीज के त्योहार की इस दिन बाग-बगीचों में झूले लगाए जाते हैं और गीत-संगीत के कार्यक्रम किए जाते हैं। परंपराओं के अनुसार महिलाएँ इन त्योहार के समय हल्दी और सिंदुर से नहाती हैं। इस त्योहार में मिठाइयाँ भी बनती हैं लेकिन अधिकतर पौष्टिक आहार ही बनाया जाता है।
ख़ैर मान्यताएँ और परंपराएँ अपनी-अपनी हैं लेकिन इस त्योहार के पीछे का कारण सच में अच्छा है। आज भी जब दुकान वाला आपको अख़बार में लपेट कर पैड देता है और पैड बदलने पर आप छिप-छिप कर उसे डस्टबिन में फेंकने जाती है तो ऐसे में ओडिशा का ये त्योहार हमें पीरियड्स पर खुलकर बात करना सिखाता है।
ओडिशा इकलौता राज्य है जहां मासिक धर्म यानी पीरियड्स का उत्सव मनाया जाता है, तो हम क्यूँ नहीं मना सकते? कब हम पीरियड्स से जुड़ी इन सभी रूढ़ियों से पार पाएँगे? पीरियड्स पर खुलकर बात करना ज़रूरी है क्योंकि इसका संबंध महिलाओं के स्वास्थ्य से हैं।
महिलाएँ अपने जीवन में औसतन 3000 दिन पीरियड्स में जीती हैं। यानि कऱीब-क़रीब 6-7 साल। महिलाओं के जीवन का सबसे अहम, स्वस्थ और सामान्य सा हिस्सा होने के बावजूद भी लड़कियाँ इस बारे में जिक्र तक करने से झिझकती हैं क्यों? क्योंकि हमारे परिवारों में उनकी कंडिशनिंग ही ऐसी की जाती है कि उन्हें इस बारे में कुछ भी बात करने में झिझक होती है।
आपको इस बारे में बहुत ज्ञान नहीं दूंगी क्योंकि आप जानती ही हैं इसलिए अब कानों में ‘डेट आ गई है’ फुसफुसाने की बजाए थोड़ा खुलकर बात कीजिए ताकि घर में सबको पता हो कि आपको भी आराम की ज़रूरत है।
मूल चित्र: Via Youtube
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