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मम्मा, आप कब आओगे? गेट वेल सून मम्मा!

घर की बागडोर अमर ने ले ली बच्चों का ध्यान रखना हो या नेहा को गर्म पानी काढ़ा ताज़ा गर्म खाना सब कुछ अकेले अमर ही कर रहे थे।

घर की बागडोर अमर ने ले ली बच्चों का ध्यान रखना हो या नेहा को गर्म पानी काढ़ा ताज़ा गर्म खाना सब कुछ अकेले अमर ही कर रहे थे।

सारी सावधानी के बाद भी एक सुबह बदन दर्द और हल्के ख़राश से नेहा की नींद खुली। बुखार सा भी लग रहा था।

नेहा का जी घबराहट से भर उठा। नज़रें उठा कर देखा तो दोनों बच्चे और पति बेफिक्र सोये थे।

सारी सावधानी के बाद भी जिस तरह चारों तरफ महामारी तांडव कर रही थी ऐसे में संक्रमित होना आश्चर्य का विषय तो नहीं था। नेहा ने बिना देर किये अपने पति अमर को उठाया और सारी बात बताई।

“एक काम करो तुम इसी वक़्त दूसरे रूम में अलग हो जाओ नेहा।”

“लेकिन अमर कैसे होगा? सब बच्चे छोटे हैं और तुम्हारा ऑफिस भी है। मुझे बहुत डर लग रहा है, कहीं अस्पताल में भर्ती होना पड़ गया तो? और अगर बच्चे भी…?”

“शुभ शुभ बोलो नेहा, पहले ही क्यों नेगेटिव विचार लाएं? हम अपने मन में उचित समय पे टेस्ट और ईलाज शुरू करने से बहुत से लोग घर में ही ठीक हो रहे हैं, बिना देर किये तुम अलग हो जाओ।”

अमर ने बिना देर किये नेहा को अलग किया और ऑफिस से भी छुट्टी ले ली। दोनों बच्चे, दस साल की अनन्या और चार साल का आरव वैसे तो दोनों छोटे ही थे लेकिन बहुत समझदार बच्चे थे। अजय ने समझया और नेहा से वीडियो कॉल पे बात करवा दी तो दोनों समझ गए।

तुंरत टेस्ट हुआ और नेहा पॉजिटिव निकल गई। भगवान का शुक्र था बच्चे और अमर की रिपोर्ट नेगेटिव आयी थी।

घर की बागडोर अमर ने ले ली। बच्चों का ध्यान रखना हो या नेहा को गर्म पानी काढ़ा ताज़ा गर्म खाना सब कुछ अकेले अमर ही कर रहे थे।

नेहा को बुखार और ख़ासी लगतार बनी हुई थी। शुक्र था कि ऑक्सीजन लेवल सही था। बुखार ने शरीर तोड़ा था तो अपने बच्चों से दूरी नेहा के मनोबल को तोड़ रही थी। अपने बच्चों से नेहा पहली बार दूर हुई थी। एक ही घर में हो कर भी बच्चों को गले लगाने को तरस गई थी नेहा।

अनन्या तो फिर भी समझदार थी लेकिन आरव की नींद तो बिना अपनी मम्मा के गोद में झूला झूले कभी खुलती ही नहीं थी। दोनों बच्चे जो नेहा के हाथों से खाने की ज़िद करते अब खुद खाने लगे थे।

जब भी वीडियो कॉल करते बच्चे एक ही सवाल होता, “मम्मा, आप कब ठीक होगी? मिस यू मम्मा!”
तो कभी पापा को शिकायत होती, “मम्मा पापा ने आज भी दाल चावल ही बनाया था कभी स्पेशल बनाते ही नहीं पापा।”

नेहा कहती, “बेटा आपके पापा जो खिलाये वो प्यार से खा लो। मैं ठीक होते ही बढ़िया सा सूजी का हलवा खिलाऊंगी और बच्चे ख़ुश हो जाते।”

दिन काटे नहीं कटते। ऐसा लगता कभी अपने बच्चों से नहीं मिल पाऊँगी। ये सोच सोच नेहा के आंसू थमते नहीं। दोनों बच्चे कुछ ही दिनों में कितने समझदार हो गए थे।

आज आंठवा दिन आइसोलेसन का और बुखार अभी भी आ जा रहा था अब और अब निराशा निशा पे हावी होने लगी थी। नेगेटिव ख़याल ने निशा के मनोबल को तोड़ना शुरू कर दिया था तभी दरवाजे के नीचे से एक कागज का टुकड़ा अंदर आया।

देखा तो बच्चों की चिट्टी थी…

प्यारी मम्मा,

आप कैसी हो? जल्दी से ठीक हो जाओ हम दोनों और पापा आपका इंतजार कर रहे हैं। हम दोनों बिलकुल मस्ती नहीं करते। पापा की सारी बातें मानते हैं और आपको बहुत मिस करते हैं। गेट वेल सून मम्मा। 

अनन्या और आरव

आंसू भरे आँखों से सैकड़ो बार पढ़ लिया निशा ने उस ख़त को एक झटके में सारे नकारात्मक विचार चले गये मन से और निशा के नये ऊर्जा से भर उठी अब उसे ठीक होना ही था अपने बच्चों के लिये।

सकारात्मक होना किसी भी बीमारी में जादू सा असर करता है और वही हुआ निशा के साथ चौदह दिन आइसोलेशन में होने के बाद निशा की रेपोर्ट भी नेगेटिव आ गई। कमरे से निकल सबसे पहले दोनों बच्चों को जी भर के प्यार किया। चारों की ऑंखें नम थीं। परिवार की क़ीमत के साथ ही जिंदगी कितनी अनमोल है, ये सबक चारों ने सीख लिया था।

सकारात्मक हो निशा ने तो अपने कोविड 19 की जंग जीत ली। लेकिन जाने कितने ऐसे हैं जो न चाहते हुए भी अपनी हिम्मत हार बैठते हैं। कोशिश करें के अपना मनोबल न काम हो बाकि इतना ही हमारे हाथ में है तो हो सकता है ये बात कि “मन के जीते जीत है तो मन के हारे हार” साबित हो जाए। बस अभी सावधानी से बढ़ते रहिये।

मूल चित्र : Still from ad #TogetherOnline : First Day/Google India/YouTube

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