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एक कामकाजी महिला को अपने घर व बाहर किन परिस्थितियों से गुज़रना पड़ता है, विद्या ने इसका सटीक उदाहरण फ़िल्म शेरनी में प्रस्तुत किया है।
स्पॉइलर अलर्ट
अभी अभी रिलीज़ हुई फ़िल्म शेरनी देखी। वन्य जीवन व वन संरक्षण जैसे गम्भीर व संवेदनशील विषय पर हमारे भारत में कम ही फ़िल्में बनी हैं। फ़िल्म शेरनी इस दिशा में उठाया गया एक सार्थक प्रयास है।
“इंसान ही असली पशु है”, पंक्ति को चरित्रार्थ करती यह फ़िल्म जंगल के साथ जुड़े गाँवों की कहानी है। ऐसे गाँव जहाँ दो राजनीतिक दलों के बीच ग्रामीण व जंगली पशु दोनों ही पिस रहे हैं। गाँव वालों की गायों, भैंसों व बकरियों को चरने के लिए जंगल के भीतर जाना पड़ता है क्योंकि उनके चारागाहों की जगह कोयले व ताँबे की खदानों ने ले ली है।
इसमें विद्या बालन वन अधिकारी का रोल में हैं। एक योग्य व ईमानदार वन अधिकारी को जंगल में किन किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, इसे फ़िल्म में बख़ूबी दर्शाया गया है। यह फ़िल्म वन विभाग या यूँ कहूँ कि हमारे सरकारी महकमों की लचर कार्यप्रणाली पर क़रारा प्रहार करती है।
विद्या बालन अपने भावप्रवण अभिनय के लिए जानी जाती हैं और यह फ़िल्म इसकी अपवाद नहीं है। उन्होंने क़माल का अभिनय किया है।
एक कामकाजी महिला को अपने घर व बाहर किन परिस्थितियों से गुज़रना पड़ता है, विद्या ने इसका सटीक उदाहरण प्रस्तुत किया है। एक भारतीय कामकाजी महिला की पीड़ा विद्या की आँखों में देखी जा सकती है।
एक क़ाबिल और कर्मठ वन अधिकारी जिसे ऑफिस में कोई इज़्ज़त नहीं देता क्योंकि वह महिला है। ऑफ़िस के पुरुष अधिकारी उसे मीटिंग में बोलने नहीं देते। जब वह उन पुरुष अधिकारियों की हाँ में हाँ नहीं मिलाती और अपना काम पूरी ईमानदारी से करना चाहती है तो उसका तबादला करा दिया जाता है।
घर में भी उसका पति उसे यही सरकारी नौकरी करने के लिए बाध्य करता है, उसे इस बात से फ़र्क़ नहीं पड़ता कि उसकी पत्नी क्या चाहती है? उसे केवल अपनी पत्नी की बँधी बँधाई तनख़्वाह से मतलब है। उसकी सास भी उसे एक घरेलू बहू की तरह चूड़ियाँ और गहने पहनने के लिए उलाहना देती है। अर्थात् एक महिला का अपने ही जीवन पर कोई अधिकार नहीं? किसी को यह परवाह नहीं कि वह क्या चाहती है?
यह फ़िल्म एक सच्ची कहानी से प्रेरित है। यह फ़िल्म शेरनी T 1 ‘अवनि’ पर आधारित है जिसने 13 लोगों की जान ली थी। इस शेरनी को कुछ वन अधिकारियों द्वारा 2018 में मरवा दिया गया था।इसके पीछे उन्होंने यह दलील दी थी यह शेरनी आस पास के गाँव वालों के लिए घातक है। वन्य जीव प्रेमी व पर्यावरण विद् इसे “कोल्ड ब्लडेड मर्डर” की संज्ञा देते हैं और आज भी उन वन अधिकारियों के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में केस चल रहा है।
विद्या बालन के दमदार अभिनय के अतिरिक्त यदि कोई बात अत्यधिक प्रभावित करती है तो वो है इसका कर्णप्रिय संगीत व फ़िल्मांकन। ऐसा लगता है कि हम वास्तव में किसी जंगल में भ्रमण पर निकले हों।
फ़िल्म की कहानी व पटकथा कहीं कहीं निराश करती है, यह और बेहतर हो सकती थी। जिन्हें वन्य जीवन व विद्या बालन के बेहतरीन अभिनय को देखने में रुचि हो वे यह फ़िल्म अवश्य देखें।
मेरी ओर से इस फ़िल्म को दस में छ: सात नम्बर (7/10)
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