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सिर्फ भाभी ही नहीं, मैं भी कमाल की हूँ…

बच्चे अगर देर से सोकर उठते तो अनिला का यही कहना होता, "कावेरी भाभी ने अब तक सब को उठा कर नाश्ता भी करा दिया होगा।"

बच्चे अगर देर से सोकर उठते तो अनिला का यही कहना होता, “कावेरी भाभी ने अब तक सब को उठा कर नाश्ता भी करा दिया होगा।”

गाड़ी में बैठ कर बार-बार हॉर्न बजाते हुए रूद्र से परेशान होकर अनिला लगभग भागती हुई जैसे तैसे ताले बंद करती हुई बाहर आई।

गाड़ी में बैठने के बाद उसका ध्यान खुद पर गया और खुद ही अपना विश्लेषण करने लगी कि ठीक से तैयार हुई है या नहीं। मन में आया पर्स दूसरा लेना चाहिए था, इस साड़ी के साथ दूसरे सैंडल ज्यादा अच्छे लगते। मन ही मन रुद्र पर खीज उठी लेकिन कहा कुछ नहीं।

इतनी हड़बड़ी न मचाते तो वह ज्यादा अच्छी तरह तैयार हो सकती थी। विवाह स्थल पास ही था इसलिए जब तक वह व्यवस्थित होती गाड़ी से उतरने का समय आ गया। उतरने के बाद भी सबकी नजरें बचाती वह अपना पल्ला ठीक करने लगी।

अभी रूद्र पार्किंग करने वाले व्यक्ति को गाड़ी की चाबी देकर उसके साथ आए ही थे कि दूसरी गाड़ी आकर रुकी और उसमें से बड़े भैया और कावेरी भाभी उतरे।

बॉर्डर वाली सिल्क की साड़ी को सीधे पल्ले में पहने ढीली सी चोटी बनाए, माथे पर बड़ी सी बिंदी और गले और कानों में जड़ाऊ सेट पहने हुए कावेरी भाभी बहुत आत्मविश्वास के साथ कदम बढ़ाती मुस्कुराती हुई औपचारिकता के साथ अनिला से गले लग गई। अनिला तो वैसे ही अपनी सजावट को लेकर कुछ परेशान थी और अब कावेरी भाभी को देखते ही अपनी सजावट से असंतुष्ट रहा सहा आत्मविश्वास भी खत्म हो गया।

दोनों एक साथ ही अंदर गईं। स्वागत करने वाली महिलाओं ने आगे बढ़कर कावेरी भाभी का जोरदार स्वागत किया। अनिला तो जैसे उनके साथ थी। हमेशा की तरह से उसका मन बुझ गया। यही तो होता आया है शादी के पहले दिन से। जहां कावेरी भाभी है वहां अनिला को दूसरे नंबर पर ही रहना पड़ता है।

विवाह उत्सव में अनिला कावेरी भाभी के साथ ही रही और देखती रही कि किस तरह से वह चहकती हुई सब से बात करती घूम रही है। चेहरा जगमगा रहा है उनके सामने अनिला फीकी पड़ रही है।

विवाह के पहले दिन से लेकर अब तक वह यही देखती आ रही है। कावेरी भाभी सबकी चहेती बनी रही है। अनिला का संकोची स्वभाव कभी भी उसे सबके सामने खुलकर नहीं आने देता। यहां तक कि वह रुद्र से भी यह नहीं कह पाती कि उसे किसी कार्य को अपने तरीके से ही करना है। वहीं कावेरी भाभी अपने पति को लगातार बताती रहती हैं कि उन्हें क्या करना है।

शादी के बाद अनिला ने यही देखा कि घर में कावेरी भाभी की बहुत पूछ है। वैसे देखा जाए तो वह इस काबिल भी थी। घर की व्यवस्था को सुचारू रखना, तरह-तरह के स्वादिष्ट व्यंजन बनाना, मेहमानों की खातिरदारी करना और सदा हंसते बोलते रहना उनकी विशेषता थी।

समस्या अनिला के साथ थी। उसका संकोची स्वभाव कभी भी उसे आगे बढ़कर कोई काम करने की अनुमति नहीं देता था। देखा जाए तो वह भी किसी काम में कम नहीं थी केवल आत्मविश्वास की कमी थी।

अनिला सदा हर काम के लिए अपनी सास या कावेरी भाभी की अनुमति चाहती थी। कामों को पूछ पूछ कर करने के कारण लोगों को लगता था कि अनिला काम करने में होशियार नहीं है। इसके अलावा कभी भी किसी काम में खुलकर राय ना देने के कारण उसे कुछ कम अकलमंद भी समझा जाने लगा। वास्तव में कावेरी भाभी के व्यक्तित्व के सामने खुद को क्षुद्र जानकर वह राय देने की हिम्मत नहीं कर पाती थी।

अनिला को भी अपना स्वतंत्र व्यक्तित्व बनाने का अवसर मिला जब सास ससुर के ना रहने पर उनके द्वारा बनवाए गए पुराने ढंग के मकान को बेचकर दोनों भाइयों ने अपनी अपनी पसंद के फ्लैट अलग-अलग मोहल्लों में खरीद लिए। अनिला ने चैन की सांस ली कि कम से कम अब वह कावेरी भाभी के व्यक्तित्व की छाया से दूर रह सकेगी।

सोचा तो उसने यही था पर ऐसा हो नहीं पाया। हर काम को करते समय उसके दिमाग में यही रहता था कि कावेरी भाभी इसे कैसे करती। खुद भी उसी प्रकार से उसे करने का प्रयास करती। यहां तक कि लोगों से संबंध भी वैसे ही बनाने का प्रयास करती जैसे कावेरी भाभी के हैं।

खुद को तो वह जैसे भूल ही गई थी। बच्चों को भी डांटते समय यही कहती थी, “तुम्हारी ताई जी होती तो ऐसा काम करने पर यह कहती।”

बच्चे अगर देर से सोकर उठते तो अनिला का यही कहना होता, “कावेरी भाभी ने अब तक सब को उठा कर नाश्ता भी करा दिया होगा।”

रूद्र को तो इस बात से बहुत अंतर नहीं पड़ता था क्योंकि वह स्वयं भी जब तब अपनी भाभी की तारीफ ही करता रहता था। अनिला पर एक तरह से कावेरी भाभी का व्यक्तित्व छाता जा रहा था। खुद को वह उनसे हीन समझती थी और उनकी नकल करने के प्रयास में अपने गुणों को भी खोती जा रही थी।

ऊपर से रुद्र का स्वभाव कुछ जल्दबाजी का था। आत्मविश्वास की कमी के कारण अनिला कभी उनसे जल्दबाजी न करने के लिए नहीं कह पाती थी। इसका यही फल होता था कि वह हड़बड़ी में काम करती थी तथा कभी भी कावेरी भाभी की तरह आत्मविश्वास से पूर्ण नहीं दिखाई देती थी। दिखती भी कैसे क्योंकि किसी की नकल करने से आत्मविश्वास कैसे आ सकता है?

अकेले अपने घर में रहने के कारण उसे कई निर्णय खुद ही लेने होते थे और कई कामों को बहुत अच्छी तरह से कर लेती थी लेकिन जहां कहीं कावेरी भाभी उसे मिल जाती थी वहां वह अपने सारे गुण भूल जाती थी और फिर वही आत्मविश्वास हीन अनिला बन जाती थी।

रुद्र यदि चाहते तो उसकी प्रशंसा करके उसका आत्मविश्वास बढ़ा सकते थे किंतु उन्होंने कभी इस तरह से सोच कर नहीं देखा कि अनिला का व्यक्तित्व दबता जा रहा है। वैसे भी शायद पुरुष इतना सोच नहीं पाते।

दोनों भाई एक ही शहर में रहते थे इसलिए आपस में मिलना जुलना लगा रहता था तथा दोनों के बच्चे भी एक दूसरे को बहुत पसंद करते थे।

एक बार कावेरी भाभी के मायके में किसी की मृत्यु हो गई इसलिए उन्हें और भैया को वहां जाना था। ऐसे अवसर पर वे बच्चों को ले जाना नहीं चाहते थे इसलिए अनिला और रूद्र के घर में 2 दिन के लिए उन्हें छोड़ दिया।

अनिला को तो सबसे बड़ी परेशानी यही लग रही थी कि बच्चों को ऐसा ना लगे कि चाची मम्मी की तरह से होशियार नहीं है इसलिए वह लगातार कुछ ना कुछ बनाकर उन्हें खिलाती रहती थी। पूरी कोशिश करती थी कि बच्चों को ऐसा ना लगे कि यहां अव्यवस्था है। सभी बच्चों को टाइम से जगाती थी खिलाती थी और खेलने भेजती थी।

एक दिन दोपहर के 3:00 बजे घने बादल छा गए और अच्छी ठंडी हवा चलने लगी। बच्चे छत पर थे। उन्हें बुलाने गई तो देखा हल्की बूंदे पड़ने लगी बच्चे उन में भीगते हुए डांस कर रहे थे। अनिला ने कहा, “जल्दी नीचे चलो नहीं तो भीग जाओगे। कावेरी भाभी क्या कहेंगी कि बच्चे पानी में खेल रहे थे?”

बच्चे नहीं माने और अनिला को भी पकड़कर गोला बनाकर बारिश में वह खेलने लगे। खुद अनिला का मन भी पानी में भीगने का कर रहा था क्योंकि पहले भी कितनी बार पर इसी तरह से अपने बच्चों के साथ पानी में भीगकर खेल चुकी थी इसलिए वह भी हंसती हुई खेल में शामिल हो गई।

सभी हंसते गाते डांस कर रहे थे। एक जोरदार बारिश के बाद जब पानी रुका तब जैसे वह होश में आ गई  और  बच्चों को डांट ती हुई कहने लगी, “कावेरी भाभी होती तो कभी इस तरह से भीगने ना देती अब जल्दी से नीचे चलो।”

कावेरी भाभी के बच्चे बोले, “चाची आप कितनी अच्छी है और कितना अच्छा डांस करती हैं। आप की जगह मम्मी होती तो कभी हमें इतना मजा ना आता।”

अनिला के बच्चे भी बोले, “अभी नीचे चल कर देखो मम्मी कितनी अच्छी तरह से हम सब के साथ मिलकर नाश्ता बनाएंगी। सब थोड़ा थोड़ा काम करेंगे। बहुत मजा आएगा।”

कावेरी भाभी के बच्चे बोले, “अच्छा यह तो कभी हमें मम्मी करने ही नहीं देती। सच में यह तो बहुत अच्छा लगेगा।”

अनिला सभी बच्चों को नीचे लाई और सब ने मिलजुल कर काम बांटते हुए सैंडविच बनाएं। अनिला में बच्चों से घुल मिलकर काम कराने का विशेष गुण था। सभी बच्चे बहुत खुश थे।

दो दिन बीत गए और कावेरी भाभी तथा भैया बच्चों को लेने आ गए। बच्चे सबके सामने अनिला से लिपटकर कहने लगे, “चाची आप कितनी अच्छी हैं, कितना अच्छा होता अगर हम सब एक साथ रहते।”

इसके बाद वे अपनी मां अर्थात कावेरी भाभी से कहने लगे, “मम्मी आप चाची जैसी क्यों नहीं हो?”

एक छोटी सी प्रशंसा जिसने अनिला को उसका खोया हुआ आत्मविश्वास लौटा दिया। अनिला को तो लगा वह जैसे आकाश में उड़ रही है। उसने मन ही मन सोचा, “हां मुझ में भी है कुछ बात तभी तो बच्चे मेरी प्रशंसा कर रहे हैं।”

अपने आप ही उसके मन में यह बात आ गई कि दूसरों से मुकाबला करना व्यर्थ है। सब के गुण अलग-अलग होते हैं। माना कि कावेरी भाभी में बहुत ज्यादा आत्मविश्वास है और वह मिलनसार भी है पर मुझ में भी तो उनसे ज्यादा आत्मीयता है।दूसरों के गुणों से प्रभावित होकर अपना व्यक्तित्व हीन भावना से ग्रस्त कर लेना बहुत गलत है।

एक घटना का सहारा मिला और अनिला का व्यक्तित्व सुधरने लगा। अब उसे समझ आ गया था कि उसका कोमल और शांत स्वभाव उसकी विशेषता है। कावेरी भाभी के अपने गुण हैं और उसके अपने गुण हैं इसलिए उसे उन से प्रभावित होकर खुद को गुणहीन नहीं समझना चाहिए।

उसने अपने हर काम का मुकाबला कावेरी भाभी के काम से करना बंद कर दिया। धीरे-धीरे उसका खोया हुआ आत्मविश्वास लौट आया। अब उसे रुद्र की प्रशंसा की भी आवश्यकता नहीं थी परंतु रुद्र ने हर काम को भली प्रकार से करती अपनी पत्नी को देखकर अब उसकी प्रशंसा करनी आरंभ कर दी थी।

मूल चित्र : lakshmiprasad S from Getty Images via Canva Pro

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