कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

मेरे बाबा, अब तुम नहीं मिलते…

उस गली के नुक्कड़ पर खड़े अब तुम नहीं मिलते। मेरे लिए अलग से चीजें लाने वाले और मुझे आँखों से ही समझाने वाले,अब तुम नहीं दिखते।

उस गली के नुक्कड़ पर खड़े अब तुम नहीं मिलते। मेरे लिए अलग से चीजें लाने वाले और मुझे आँखों से ही समझाने वाले, अब तुम नहीं दिखते।

बाबा तुम मुझे बहुत याद आते हो,
तुम हम बच्चों को डराते थे पर फिर प्यार से गले भी लगाते थे।
तुम्हारा बात बात पर मुस्कुराना और फिर कहना,
“अरे लल्ली तू तो मेरे गले का हार है…”
अब ये कहने वाले तुम नहीं मिलते।

बात बात पर प्यार जताते, दौड़कर आते,
अपनी छोटी छोटी बातें बताते,
मेरी चीजों को देखकर इतराते मेरे बाबा,
अब तुम नहीं मिलते। 

मुझे याद है जब तुम अपने पेट का मस्सा दिखाते थे,
और मेरी  हालत देखकर तुम कितना मुस्कुराते थे।
पर अब हँसी आती है उन नादानी पर। 

अब मैं छोटी बच्ची नहीं,
अब मैं छोटी बच्ची नहीं पर बाबा,
मैं आपकी वही बच्ची बनना चाहती हूँ,
उन ग़लियों में फिर से खेलना चाहती हूँ,
वो गलियाँ तो वही हैं पर,
उस गली के नुक्कड़ पर खड़े अब तुम नहीं मिलते।
मेरे लिए अलग से चीजें लाने वाले और मुझे आँखों से ही समझाने वाले,
अब तुम नहीं दिखते।

मैं कब ये कहती हूँ कि तुम ग़ुस्से वाले नहीं थे,
हाँ तुम ग़ुस्से वाले भी थे, चार बात सुनाने वाले भी तुम थे।
पर बात सुनाने के बाद मुस्कुराने वाले भी तुम थे।
हाँ बाबा अब तुम उस ग़ुस्से के साथ भी नहीं मिलते,
मेरे बाबा अब तुम मुझे नहीं मिलते।

जो ये कहते थे बात-बात पर,
लो बिटिया तू तो विदेश चली जाएगी,
कहाँ हमारे गाँव तू आएगी।

वो बात बात पर बातें सुनाने वाले मेरे बाबा,
अब तुम नहीं मिलते।

अब अम्मा के पास जब जाती हूँ तुम्हारी खटिया ख़ाली दिखती है,
अपने हाथों को मलती मेरी अम्मा अब पहले सी नहीं लगती है।
सूने चेहरे से मुझे देखती मेरी अम्मा अब बदल सी गयी हैं।
घंटों बातें करने वाली 5 मिनट भी मुश्किल से बतियाती हैं।
अब बस सुनती हैं बात बात पर सब सही है यही बताती हैं।

शायद वो सोचती होंगी कि तुम कहाँ चले गए,
पर मैं उनसे कुछ नहीं कहती उनकी आँखें ही सब कह देती हैं।
पर बाबा के ख़ाली कोने को घूरती उनकी आँखें ही सब कह देती हैं,
मेरे बाबा अब कहीं नहीं मिलते।

तो ठीक है खतम करती हूँ ये कहानी मेरे अपने बाबा की,
पर ये हर बिटिया के मन में रह जाती है,
जब उसे उसके बाबा नहीं मिलते।
दरवाज़े पर खड़े हाथ हिलाकर विदा करते,
जब बाबा नहीं दिखते।
मुझे गले का हार बताने वाले बाबा नहीं मिलते।

पर दुआ करती हूँ हर बेटी को उसके बाबा मिलते रहें।
सर पर हाथ फेरते वो हमेशा दिखते रहें।
मन नहीं करता मेरा अब अपने ही घर जाने का,
क्यूँकि मेरे बाबा अब तुम नहीं दिखते।

एक आख़िरी बात, कभी तो बाबा तुम दिख जाओ।
हक़ीक़त में नहीं तो सपनों में दिख जाओ।

मूल चित्र: Still from Paisabazaar Via Youtube

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

SHALINI VERMA

I am Shalini Verma ,first of all My identity is that I am a strong woman ,by profession I am a teacher and by hobbies I am a fashion designer,blogger ,poetess and Writer . मैं सोचती बहुत हूँ , विचारों का एक बवंडर सा मेरे दिमाग में हर समय चलता है और जैसे बादल पूरे भर जाते हैं तो फिर बरस जाते हैं मेरे साथ भी बिलकुल वैसा ही होता है ।अपने विचारों को ,उस अंतर्द्वंद्व को अपनी लेखनी से काग़ज़ पर उकेरने लगती हूँ । समाज के हर दबे तबके के बारे में लिखना चाहती हूँ ,फिर वह चाहे सदियों से दबे कुचले कोई भी वर्ग हों मेरी लेखनी के माध्यम से विचारधारा में परिवर्तन लाना चाहती हूँ l दिखाई देते या अनदेखे भेदभाव हों ,महिलाओं के साथ होते अन्याय न कहीं मेरे मन में एक क्षुब्ध भाव भर देते हैं | read more...

49 Posts | 165,446 Views
All Categories