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बहु, अगर सम्मान नहीं तो अधिकार नहीं…

सेवा तो दूर सास का सम्मान भी नहीं कर सकती। तुम्हें पेंशन में हिस्सा चाहिये? मेरे पेंशन पे सिर्फ उसका ही अधिकार होगा जो मेरे सम्मान करेगा।

सास का सम्मान भी नहीं कर सकतीं और तुम्हें पेंशन में हिस्सा चाहिये? मेरे पेंशन पे सिर्फ उसका ही अधिकार होगा जो मेरे सम्मान करेगा।

लवकुश निवास आज फूलो की खुश्बू और रंगीन रौशनी से जगमगा रहा था। ख़ुशी से दोहरी होती रमा जी कभी मेहमानों को देखती तो कभी बारात के निकलने की तैयारी देखती।

सालों बाद ऐसा शुभ अवसर उनके जीवन में आया था, वर्ना उनके पति रमेश बाबू के जाने के बाद तो सिर्फ संघर्ष ही देखा था। दोनों बेटों को राजकुमार सा सजता देख ऑंखें ख़ुशी से बार बार झलक उठ रही थी।

मात्र बीस वर्ष में ही वह रमेश जी की दुल्हन बन ससुराल आ गई थी। भरा पूरा ससुराल मिला और रमेश जी जैसे नेक दिल पति। रमेश जी के संग जीवन सपनों सा सुन्दर लगता रमा को। कुछ ही महीनों में नन्हे मेहमान की आहट हुई और जब पता चला एक नहीं दो बच्चे है, पूरा घर ख़ुशी से झूम उठा।

नौ महीने का वक़्त पलक झपकते बीत गया और रमा जी की गोद में लव कुश आ गए।

लेकिन कहते है ना कभी कभी खुशियों को खुद की नज़र भी लग जाती है। ससुर जी ने जुड़वा पोते होने की ख़ुशी में बड़े से भोज का आयोजन किया था। रमेश जी और दोनों छोटे देवर बाहर हलवाई से अपने निगरानी में काम करवा रहे थे, तभी जाने कैसे सिलिंडर फट गया। तेज़ आवाज़ के साथ बरामदे की छत गिर पड़ी, चारों तरफ आग और चीख पुकार।

जब सब शांत हुआ अनर्थ हो चूका था। एक साथ चार अर्थी उठी घर से पिता और तीन जवान बेटों की। आँखों के आँसूँ अब दहकते अँगारे बन चुके थे।

पीछे बच गई सिर्फ रमा जी की सास और रमा जी दोनों बच्चों के साथ।रमा जी को कुछ महीनों बाद रमेश की जगह नौकरी मिल गई। कुछ समय बाद दुःख से बूढ़ी सास भी चल बसीं। ढेरों कष्ट झेल बच्चों को बड़ा किया रमा जी ने और आज वो शुभ दिन भी आ गया था जब दोनों बेटे बहु ले कर आ रहे थे।

बहुत धूमधाम से शादी संपन्न हो गई और दोनों बहुएँ घर आ गयी। बड़ी अदिति और छोटी राधिका आपस में चचरी बहनें लगती थी।

शुरुवात में तो सब ठीक था दोनों बहुएँ सासूमाँ का मान करती। समय के साथ रमा जी दादी भी बन गई थी। और अब रमा जी भी रिटायर हो चुकी थी और पेंशन की मोटी रकम हर महीने उठाती थीं।

बड़ी बहु अदिति कम बोलती लेकिन अपनी सास की जरूरतों का पूरा ख़याल रखती। वहीं छोटी बहु राधिका बातों की धनी थी लेकिन अपनी सासूमाँ को एक ग्लास पानी देने में भी उसे ज़ोर पड़ता था।

दोनों बेटे अच्छी नौकरी में थे। बड़े बेटे और बहु घर के खर्चो में भी हिस्सा देते और कभी रमा जी से उम्मीद ना करते कि वो कुछ ख़र्च करे लेकिन राधिका हर कोशिश करती अपने पति के पैसों को बचाने की।

रमा जी को राधिका की नियत समझ तो आ रही थी लेकिन घर की सुख शांति के लिये चुप्पी लगाये बैठी थीं। जब राधिका का लालच बढ़ने लगा और हर छोटे बड़े खर्च वो जेठ और सास से करवाने लगी तब अपनी छोटी बहु के असली व्यवहार को परखने की नियत से रमा जी ने अपने पैसे खर्च करने बंद कर दिये।

पहले वो दूध सब्ज़ी ले आती दोनों बच्चों पे भी खर्च करती साथ ही अपनी दवाई का खर्च भी निकाल लेती। अब जब वो पैसे खर्चने बंद कर दीं तो राधिका को अपनी सासूमाँ खटकने लगी। आये दिन रमा जी दोनों बेटों को कोई दवा या कोई काम बता देती थीं, राधिका को बहुत गुस्सा आता अपनी सासूमाँ पर।

पहले जब रमा जी पैसे खर्च करती तब राधिका सारा दिन माँजी की रट लगाई रहती, लेकिन पैसे आने बंद होते ही उसने नज़रे फेरने शुरू कर दी। वहीं बड़ी बहु अदिति के व्यवहार में कोई अंतर नहीं आया था जैसे वो पहले थी वैसे ही अब भी थी। अदिति बहु को देख रमा जी बहुत ख़ुश होती थी।

एक दिन रमा जी के मायके के रिश्तेदारी में किसी की शादी का निमंत्रण आया तो रमा जी ने राधिका को बुला कर कहा, “बहु तुम और कुश चले जाना और एक साड़ी और हजार रूपये शगुन दे देना।”

इतना कहना था की पहले से चिढ़ी राधिका नाराज़ हो उठी, “वाह माँजी रिश्तेदार आपके और रिश्तेदारी निभाये हम?”

“ऐसा क्यों बोल रही हो बहु? क्या वो लोग तुम दोनों के कुछ नहीं लगते?”

“मैं तो ठीक से जानती भी नहीं उन्हें माँजी। एक बार मिली हूँ बस और मेरे पति के मेहनत की कमाई उन पर खर्च कर दूँ? अब हमारा भी परिवार है, बच्चे है, ये फालतू के खर्च हमसे नहीं होंगे। और आपको तो पेंशन मिलता है, तो आप क्यों नहीं ख़र्च करती अपने पैसे? और जेठ जी भी हैं उन्हें क्यों नहीं भेजती आप शादी में। बहुत फ़र्क करती है आप माँजी।”

“बस करो बहु मैं कोई फ़र्क नहीं करती। शायद तुम्हें पता नहीं लेकिन लव को भी मैं दूसरे रिश्तेदारी में इतना ही शगुन ले भेज रही हूँ। लेकिन अदिति ने तो कोई सवाल नहीं किया मुझसे।” रमा जी को जिसका अनुमान था वो सच निकाला था। राधिका का असली रंग आज अच्छे से दिख गया था। क्रोध से रमा जी की आवाज़ भी तेज़ हो उठी।

राधिका और रमा जी की आवाज़े सुन पूरा परिवार इकठ्ठा हो गया।

“अच्छा हुआ तुम सब आ गए। तो अब जब छोटी बहु के मन में खोट आ ही गया है, तो आज इसी समय मैं तुम दोनों भाइयों के बीच बँटवारा भी कर रही हूँ। एक भाई मकान के ऊपर के हिस्से में और एक नीचे के हिस्से में रहेगा। मैं बड़े बेटे और बहु के साथ रहूँगी।”

“ठीक है माँजी। अब जब आप घर का बँटवारा कर ही रही है तो अपनी पेंशन का भी कर दें।” राधिका भी खुल कर अपनी सास से लड़ रही थी।

“बँटवारा इस घर का हुआ है, क्यूँकि इस घर पे मेरे बेटों के साथ तुम्हारा भी हक़ है। लेकिन मेरी पेंशन में किसी का कोई हक़ नहीं। और राधिका बहु तुम्हारा व्यवहार देख इसकी गुंजाईश तो बिलकुल भी नहीं की तुम्हारे मन में मेरे लिये रत्ती भर भी सम्मान है, तो तुम्हारे पास तो मैं बिलकुल भी नहीं रह सकती। जहाँ तक बात मेरे पेंशन की है तो वो मैं अपनी इच्छा से खर्च करुँगी। राधिका बहु एक तरफ तो तुम अपनी बुजुर्ग सास की सेवा तो दूर सम्मान भी नहीं कर सकती लेकिन तुम्हें सास के पेंशन में हिस्सा चाहिये?”

रमा जी ने अपना फैसला सुना दिया था और राधिका दंग खड़ी देखती रह गई। आज थोड़ी समझदारी से रमा जी ने अपनी हीरे जैसी बहु को पहचान अपना बुढ़ापा सुधार लिया था और वहीं लालच में अंधी राधिका सिर्फ पछताती रह गई।

मूल चित्र: Still from Short Film Phuljhadi/Blush, YouTube

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