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मराठी फिल्म फोटो प्रेम एक तस्वीर की नहीं अपनी पहचान ढूंढने की यात्रा है

मराठी फिल्म फोटो प्रेम में माई सोचती है कि मैं चली गई तो सब मुझे याद कैसे करेंगे, मेरी तो कोई हस्ती ही नहीं रहेगी। 

मराठी फिल्म फोटो प्रेम में माई सोचती है कि मैं चली गई तो सब मुझे याद कैसे करेंगे, मेरी तो कोई हस्ती ही नहीं रहेगी। 

कभी-कभी बिना किसी लंबी-चौड़ी कहानी और बेवजह के ड्रामे के बग़ैर भी साधारण सी फिल्में सीधे दिल में उतर जाती है।

अमेजॉन प्राइम पर पिछले हफ्ते रिलीज़ हुई मराठी फिल्म फोटो प्रेम ऐसी ही एक कहानी है। नाम से आपको इतना तो समझ आ ही गया होगा कि ये कहानी है एक तस्वीर से प्यार करने की, है लेकिन जब तक देखेंगे नहीं इसका मर्म नहीं समझ पाएंगे।

ये फिल्म भले ही मराठी में हो लेकिन अंग्रेज़ी सबटाइटल्स के साथ आपको आसानी से समझ में आ जाएगी और दूसरा ये कि मराठी बहुत मुश्किल भाषा नहीं है। थोड़ा ध्यान से सुनेंगे तो उसका भाव भी समझ में आ जाएगा।

“मला मराठी सुद्धा माहित नाही परंतु तरीही चित्रपटाविषयी सर्व काही समजले आहे”, माने मैं भी मराठी नहीं जानती लेकिन फिर भी फ़िल्म के बारे में मुझे सब कुछ समझ आया।

ये कहानी है एक ऐसी मिडल एज औरत (नीना कुलकर्णी) की जिसे कैमरा से बहुत डर लगता है। कैमरा सामने आते ही उसे अजीब सा अटपटा सा लगने लगता है।

ये औरत एक सिंपल सी हाउस वाइफ है, जो हर दिन पति के लिए लंच बॉक्स पैक करती है, जिसकी कोई बड़ी ख्वाहिशें नहीं है। एक बेटी है जिसकी शादी हो गई है और उसी शादी में आपको ये पता चलता है कि माई को कैमरा से हिचकिचाहट होती है। अपनी पूरी ज़िंदगी में माई ने कोई फोटो अच्छे से खिंचवाई ही नहीं है।

माई का फोटो प्रेम तब जगता है जब वो अपने पति के साथ एक औरत के निधन पर शोक सभा में जाती है। मरने वाली औरत की उम्र भी माई जितनी ही होती है। वहां माई देखती है कि उस औरत की कोई भी फोटो नहीं लगी है, क्योंकि परिवार के पास उसकी कोई फोटो है ही नहीं।

वहां से आने के बाद माई रोज़ अख़बार के पन्नों में शोक सभा की सूची में उस औरत की तस्वीर ढूंढती है लेकिन उसे नहीं मिलती। तब अचानक उसे लगता है कि क्या मरने के बाद उसके साथ भी ऐसा ही होगा? वो सोचती है कि मैं चली गई तो सब मुझे याद कैसे करेंगे, मेरी तो कोई हस्ती ही नहीं रहेगी।

इसी डर से वो अपनी पुरानी एल्बम और बेटी की शादी की एल्बम में अपनी तस्वीरें ढूंढने लगती है, लेकिन जो तस्वीर उसे मिलती है उसे देखकर वह और परेशान हो जाती है। उसके पति और रिश्तेदार भी उसका मज़ाक  उड़ाते हैं कि सेल्फी के ज़माने में माई फोटो खिंचवाने से डरती है।

माई घर के काम खत्म करके और पति के ऑफिस जाने के बाद अख़बार के पन्ने पलटती है और कई अनजान लोगों की शोक सभाओं में सिर्फ इसलिए जाती है ताकि वो देख सके कि जिन लोगों का निधन हो गया है उनकी कैसी-कैसी तस्वीरें लगाई गई हैं।

माई फोटो खिंचवाने की कोशिश करती तो है लेकिन स्टूडियो से भागकर आ जाती है। वो बार-बार शीशे के सामने खड़ी होकर स्माइल करने की कोशिश भी करती है लेकिन फिर घबरा जाती है।

माई अपनी फोटो और पहचान के लिए क्या करती है इसके लिए आप फिल्म ही देखिए, क्योंकि मैं नहीं चाहती आपको फिल्म देखने से पहले ही अंत के बारे में पता हो।

नीना कुलकर्णी कहती है कि ये फिल्म आज की जेनेरेशन को भी यह सिखाती है कि एक ज़माना ऐसा भी था जब लोगों के पास अपनी कोई एक तस्वीर नहीं होती थी। ये फिल्म बस एक तस्वीर की नहीं अपनी पहचान ढूंढने की यात्रा है।

नीना कुलकर्णी के अलावा इस फिल्म में अमिता खोपकर, विकास हांडे और समीर धर्माधिकारी समेत कई अन्य कलाकार भी हैं। इस फिल्म को बेस्ट मराठी फिल्म के लिए पुणे इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल कमेटी द्वारा नॉमिनेशन भी प्राप्त हुआ था।

कहते हैं जाने वाले चले जाते हैं, पीछे रह जाती हैं सिर्फ उनकी यादें। ये तस्वीरें, अपनों के साथ बिताया समय और बातें ही वो यादें हैं जो आपके जाने के बाद याद की जाएंगी। क्या पता आपकी किसी तस्वीर को देखकर कोई अपना मुस्कुरा पड़े, क्या पता आपकी कोई बात याद करके किसी को फिर से कुछ करने की चाह हो।

इसलिए, हंसते रहिए और अपनों के साथ अच्छा समय बिताइए।


मूल चित्र: Stills from Movie Photo Prem

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