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आज से ये कुत्ता ही मेरा पति है और मैं इसकी दुल्हन…

पर यह क्या! लड़की मांगलिक थी। अब तो शांति देवी और राजेश जी के अरमानों पर पानी फिर गया। आती हुई लक्ष्मी जाते हुए दिखाई देने लगी।

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पर यह क्या! लड़की मांगलिक थी। अब तो शांति देवी और राजेश जी के अरमानों पर पानी फिर गया। आती हुई लक्ष्मी जाते हुए दिखाई देने लगी।

कानपुर के छोटे से कस्बे में सुधीर अपनी पांच बेटियों के साथ सुखी थे। धन का उनके घर में कोई अभाव ना था क्यूँकि वह बहुत ही संपन्न परिवार से थे। अपनी चार बेटियों की शादी बहुत धूमधाम से सरकारी नौकरी वाले लड़कों से कर चुके थे। सुधीर को बस एक ही धुन थी उनका दामाद हो तो सरकारी नौकरी वाला।

बेटियों में सबसे लाडली थी सबसे छोटी बेटी कविता। कविता स्वभाव की तेज थी। उसकी पढ़ने में अधिक रुचि ना थी इसलिए उसने इंटर तक ही पढ़ाई की। पर वह दिमाग की बहुत तेज थी। उसके माँ-बाप को उसकी सांवली रंगत और काम पढाई के कारण बस हर वक़्त उसकी शादी की चिंता रहती थी। लड़की कम पढ़ी-लिखी थी लेकिन सुधीर बाबू को दामाद सरकारी चाहिए था।

जो भी कविता को देखने आता उसकी सांवली रंगत और कम पढ़े लिखे होने की वजह से उसे नापसंद कर देता।

एक दिन व्यापार के सिलसिले में सुधीर बाबू की मुलाकात राजेश जी से हुई। उनका एक ही बेटा था रोहन वह भी सरकारी मास्टर। सुधीर बाबू तो सुधीर बाबू, राजेश व उनकी पत्नी शांति भी कम न थे। दोनों ही लालची प्रवृत्ति के थे।

बातों ही बातों ने सुधीर ने राजेश से अपनी बेटी के शादी की बात कही। राजेश जी ने भी सुधीर के धन के किस्से सुने ही थे। बस फिर क्या था बिल्ली के भाग से छींका टूटा।

एक हफ्ते बाद राजेश बाबू अपने बेटे और शांति को लेकर सुधीर के घर पहुंचे। लड़की तो उन्हें कुछ खास पसंद ना थी फिर भी आई लक्ष्मी को वह हाथ से जाने नहीं देना चाहते थे।

“यह मेरी आखिरी बेटी है ब्याह करने को। मैं तो बस इसी पैसे से तोल दूंगा।” सुधीर बाबू ने बातों ही बातों में कहा।

बस फिर क्या था शादी तो पक्की होनी ही थी। रोहन का भी अपना कोई विचार ना था जो उसके माँ-बाप कहते, वह मान लेता। घर पहुंचते ही शांति देवी ने पंडित जी को मुहूर्त निकलवाने के लिए बुलाया। और कुंडली भी मिलवाई।

पर यह क्या! लड़की की कुंडली में तो दोष था। वह मांगलिक थी। अब तो शांति देवी और राजेश जी के अरमानों पर पानी फिर गया।आती हुई लक्ष्मी जाते हुए दिखाई देने लगी।

“पंडित जी कुछ तो उपाय होगा?” राजेश जी पंडित जी को दक्षिणा देते हुए पूछने लगे।

“हाँ, हाँ, क्यों नहीं अभी बताता हूँ।” पंडित जी ने दक्षिणा जेब में रखते  हुए जवाब दिया।

“अगर लड़की का विवाह लड़के से पहले किसी कुत्ते से करा दिया जाए तो सारा दोष खत्म हो जाएगा। जो भी आंच आएगी उस कुत्ते पर आएगी।”

बस फिर क्या था, शांति देवी ने उपाय सुनते ही सारा हाल कविता की माँ से कह दिया।

कुत्ते से शादी? कविता की माँ और कविता दोनों इस बात के लिए तैयार ना थे। कविता जिद पे अड़ी थी लेकिन इससे अच्छा रिश्ता कहीं नहीं मिलेगा। सुधीर बाबू के सरकारी दामाद के सपने के आगे कविता और उसकी माँ की एक ना चली। और वह दिन आ ही गया।

कविता को दुल्हन की तरह सजाया गया। कविता मन ही मन बहुत दुखी थी। राकेश बाबू और शांति देवी अपने घर से कुत्ते की बारात लेकर कविता के यहाँ पहुंचे। कविता राजेश बाबू के लालच को भाँप चुकी थी, उसने उन्हें सबक सिखाने की ठानी।

कुत्ते को कविता के बगल बिठाया गया और पंडित जी मंत्र उच्चारण करने लगे। शांति देवी कुत्ते का हाथ पकड़ के सारे कर्मकांड करवा रही थी।

“विवाह संपन्न हुआ खड़े होकर बड़ों का आशीर्वाद ले ले।” जैसे ही पंडित जी ने यह कहा कविता उठ खड़ी हुई।

तपाक से बोली, “अब मेरा पति यही कुत्ता है। अब मैं किसी और से विवाह नहीं कर सकती।”

शांति देवी और राजेश बाबु अवाक रह गये। सुधीर बाबू भी हैरान थे।

“मैं ऐसे घर में शादी नहीं कर सकती जो दहेज के लालच में कुछ भी कर सकते हैं।”

कविता की इस हालत के जिम्मेदार ना केवल राजेश बाबू और शांति देवी थे बल्कि उसके पिता भी उतने ही जिम्मेदार थे। अंधविश्वास और सरकारी दामाद की इच्छा आज भी हमारे समाज में व्याप्त है। जिसकी वजह से कविता जैसी न जाने कितनी बेटियों को अपमानित होना पड़ता है।


मूल चित्र: Truly Via Youtube

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Meenakshii Tripathi

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