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सिर्फ परिवार या रिश्तेदार ही नहीं, एक स्ट्रांग सिस्टरहुड भी है ज़रुरी

मीडिया में स्ट्रांग सिस्टरहुड की ज़रुरत का चित्रण बहुत कम देखने मिलता है, क्या हमारा समाज बहनचारे से डरता है जो इस पर बात नहीं करता?

मीडिया में स्ट्रांग सिस्टरहुड की ज़रुरत का चित्रण बहुत कम देखने मिलता है, क्या हमारा समाज बहनचारे से डरता है जो इस पर बात नहीं करता?

नोट : ये लेख पहले यहां अंग्रेजी में पब्लिश हुआ और इसका हिंदी अनुवाद मृगया राय ने किया है

पुरुष अक्सर काम के बाद या सप्ताहांत पर अपने दोस्तों के साथ समय बिताते हैं। अफसोस की बात है कि, महिलाएँ ऐसा नहीं करतीं। महिलाओं को अपना एक समुदाय बनाने की आवश्यकता है जहां वह अपनापन महसूस कर सकें। 

ओकिनावा सेंटेनरियन स्टडी, ओकिनावा के बुजुर्ग लोगों के बारे में एक अध्ययन है। वे जो भी दुनिया की सबसे लंबी जीवन प्रत्याशा हो सकती है उसका आनंद लेते हैं। मैं दूसरे दिन ही इस पर एक वीडियो देख रही थी। 

मेरे लिए जो बात अलग से निखार के सामने आयी, वह यह थी कि महिलाएं अपनी लंबी उम्र के लिए स्व-सहायता और आपसी मदद को चार कारकों में से दो के रूप में जिम्मेदार मानती हैं। वे पचास से अधिक वर्षों से सप्ताह में एक बार अपने क्लब में मिलते। वह एक साथ भोजन करते, एक साथ हंसते और एक साथ नृत्य और योग सीखते हैं। ध्यान दीजिए कि इसमें प्रमुख शब्द हैं ‘एक साथ’। 

महिलाओं के आपसी रिश्तों को ज्यादातर मीडिया में नकारात्मक रूप में दर्शाया जाता है

महिलाओं के आपसी रिश्तों में अक्सर रूढ़िवादिता शामिल कर मीडिया में नकारात्मक रूप में दर्शाया जाता है। बहने, सास-बहू, घर की बहुएँ या अच्छे दोस्त, सब अंत में आपस में एक आदमी के लिए लड़ पड़ते हैं। इन रिश्तों को तार-तार होते देखने में मानो एक सर्वव्यापी आनंद आता है। 

महिलाओं के बीच ऐसे सकारात्मक रिश्ते जिनके पीछे का कारण त्रासदी ना हो, बहुत कम दर्शाया जाता है, पर वह भी अपने ही रूढ़ियों के वजन के तहत ढहने लगते हैं। यहाँ संभव रूप से कई नारीवादी मुद्दों पर बात करने की आवश्यकता है। 

ऐसा लगता है कि हम सब लगातार एक अंतर्निहित प्रतियोगिता में हैं – (पुरुष प्रधान) समाज द्वारा अनुमोदन और संरक्षण की प्रतियोगिता।

परिवार या रिश्तेदारों से परे महिलाओं के लिए स्ट्रांग सिस्टरहुड ज़रूरी है

महिलाओं के लिए, समुदाय का अर्थ रिश्तेदारों तक सीमित रह जाता है।

सामाजिक नियमों द्वारा उनके लिए यही परिभाषित किया गया है। यहां तक ​​कि जो औरतें काम करती है उनके पास भी दोस्त बनाने या ऐसे अपने दोस्तों साथ वक्त बिताने का समय नहीं होता है, जिस तरह से पुरुष अपने दोस्तों के साथ वक्त बिताते है।

हमेशा एक अति-सामाजिक निर्माण होता है जो परिभाषित करता है कि कैसे महिलाएँ अपना समय व्यतीत करती हैं। माता-पिता अपनी बेटियों  को अंधेरे से पहले घर आने के लिए कहते है। विवाहित महिलाएँ अपने घर के काम करने के लिए घर भागती है। 

उनके जीवन में चल रही इन सभी चीजों के साथ, अपने लिए एक समुदाय को बनाने की शक्ति कहां रह जायेगी?

पूरानी दोस्ती अक्सर शादी के बाद भूला जाती है

हमारे पुराने दोस्त अपने स्वयं के ही रिश्तों और परिवारों में उलझ भुला जाते है। मेरी माँ ने 30 साल की उम्र के बाद अपना समुदाय पाया – जो की उनके लिए उनकी आधार और नींव हैं। पर, वे एक दूसरे से मिले भी तो केवल इसलिए क्योंकि उनके बच्चे स्कूल में एक ही कक्षा में थे।

महिलाओं को एक ऐसी जगह की ज़रूरत है जहाँ वे बेटी, माँ, बहन, पत्नी, बहू, कर्मचारी या कोई अन्य रिश्ता न हो जो उन्हें परिभाषित करता हो। एक ऐसा स्थान जहां उनकी पहचान वह खुद है। अपने स्वयं के कोचिंग अभ्यास में, मैं यह देखती हूं।

महिलाओं को अपने रिश्तों को ध्यान में रखते हुए अपने निर्णयों के बारे में सोचने की सलाह दी जाती है। अक्सर, कई सप्ताह लग जाते है उन्हें स्वीकार करने में कि वह क्या है जो वह वास्तव में चाहती हैं। एक महिला होने के नाते, मुझे लगता है कि यह एक उपहार है जो हमें एक दूसरे को देना चाहिए। 

हमें इस बहनचारे या सिस्टरहुड की ज़रुरत है। ख़ासकर जैसे जैसे हमारी उम्र बढ़ती है। हमारा अपना व्यक्तित्व है। यह कभी न भूलने के लिए और खुद को व्यक्त करने के लिए हमें एक सुरक्षित स्थान की आवश्यकता है। हमें अपने ‘ट्राइब’ की ज़रूरत है। 

जी हाँ, हमारे लिए स्ट्रांग सिस्टरहुड है ज़रुरी।

मूल चित्र: a still from short film Juice

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About the Author

Sirisha Ramanand

I am a life coach - I help empower women to step out of their 'should' and live their truest self. read more...

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