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शॉर्ट फिल्म ‘दहेज़ का स्कूटर’ बहुत ही प्यारे अंदाज़ में अपनी बात रखती है!

मानते हैं ना आप भी शार्ट फिल्म 'दहेज़ का स्कूटर' की इस बात को, 'प्रथाओं का क्या है कोई मान के चले तो इच्छा, न माने तो रीत।' 

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मानते हैं ना आप भी शार्ट फिल्म ‘दहेज़ का स्कूटर’ की इस बात को, ‘प्रथाओं का क्या है कोई मान के चले तो इच्छा, न माने तो रीत।’ 

नाटक पिक्चर्स और एफएनपी मीडिया ने मिलकर राहुल भटनागर के निर्देशन में कुछ हफ्ते पहले बीस मिनट की एक शॉर्ट फिल्म रिलीज़ की थी। इस फिल्म में एक मध्यवर्गीय परिवार की पुरानी परंपरा और उसकी जरूरत की कशमकश को मज़ाकिया अंदाज में पेश किया है।

इसी मज़ाकिया अंदाज में शॉर्ट फिल्म यह संदेश भी दे रही है कि प्रथाओं का क्या है कोई मान के चले तो इच्छा, न माने तो रीत।

बदलते वक्त में यह अनोखी प्रथाएं छोड़ जाती हैँ बस एक एहसास, जिसको निभाना नई आधुनिक महिलाओं को ही नहीं पुरुषों को भी मुश्किल लगता है। जिस हलके-फुल्के अंदाज में राहुल भटानागर ने इसको प्रस्तुत किया है, वो सभी को बहुत पसंद आ रही है। यूटूयूब पर रिलीज़ होने के हफ्ते भर बाद ही इस कहानी को अच्छी-खासी व्यू मिल चुके थे।

क्या है दहेज़ का स्कूटर की कहानी

राहुल भटनागर ने कहानी रामचरित्र मानस के चौपाई “रघु-कुल रीत सदा चली आई, प्राण जाई पर वचन न जाई” से शुरू की है, जिसमें शादी करने वाले युवा लड़के-लड़की के बीच एक परंपरा को निभाने के लिए मान-मनौवल को लेकर है।

छोटे शहर में, प्यार करने वाले युवा जो शादी करने वाले एक परंपरा को लेकर परेशान हैं, जिसमें लड़के के परिवार में एक पुराने स्कूटर पर ही लड़के-लड़की की विदाई होती है। लड़की को यह नहीं पसंद है और लड़का चाह कर भी अपने पिता को इसके लिए मना नहीं कर पा रहा है।

लड़के की मां भी मानती है कि इस परंपरा को निभाने में तकलीफ तो होती है पर लोगों का मन रखने के लिए वह भी इसको निभा चुकी है, इसलिए आने वाली बहू से भी कहती है, इसको निभा ले।

अब आगे लड़की स्कूटर को गायब करवाने की योजना बनाती है पर स्कूटर पहले ही घर से गायब हो जाता है। और अब आगे क्या होता है? स्कूटर की चोरी किसने करवाई? और स्कूटर फिर मिलता है कि नहीं?

यह सब जानने के लिए आपको अपना मात्र बीस मिनट खर्च करना होगा। विश्वास करें, अंत देखकर मुस्कान आपके होठों और चमक आपकी आंखों में जरूर आ जाएगी, ये मेरा भरोसा है।

बीस मिनट के कहानी में अभिनय लुभाता है…

मात्र बीस मिनट की कहानी में मुख्य पात्र वैसे तो पीले रंग का एक पुरान स्कूटर है, पर पीहू के चरित्र में तान्या सिन्हा का अभिनय प्रभावित करता है।

शादी किसी भी लड़की के जीवन का सबसे बड़ा दिन होता है, जिस दिन वह सब कुछ परफेक्ट देखना चाहती है। उसकी भावनाएं, उसकी इच्छाएं, डर सभी बातों को तान्या सिन्हा ने पीहू में चरित्र में डाल दिया है।

शेष कलाकारों के हिस्से अधिक कुछ है नहीं पर सभी काफी संतुलित हैं।

नकुल के चरित्र को केशव सदाना ने निभाया है और नकुल के माता-पिता का अभिनय सध्या सिन्हा और महेश गहलोत जैसे मजे हुए कलाकारों ने निभाया है।

फिल्म का मूल संदेश दहेज़ के खिलाफ ही है

कहानी में स्कूटर दहेज़ का एक प्रतीक मात्र है पर मूल संदेश दहेज़ के खिलाफ ही है। नई पीढ़ी परंपरा और बड़ों के मान रखने के नाम पर कुछ बोल नहीं पा रहे है आज के आधुनिक समाज में और दहेज़ की परंपरा चलती चली आ रही है।

‘आधुनिक समाज में लड़कियाँ स्कूटर के बैक सीट से अब आगे के सीट तक चली आई हैं’, वे खुद स्कूटर चलाने लगी हैं यानी वे आत्मनिर्भर भी हैं और अपने स्वाभिमान को लेकर जागरूक भी। पर दहेज़ समाज में जहां खड़ा था, आज भी वहीं खड़ा है। दहेज़ से लड़ने की ज़िम्मेदारी केवल शादी करने वाले लड़के-लड़कियों की नहीं है, लड़के-लड़कियों के अभिभावकों की भी है।

फिल्म देखें यहां –

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मूल चित्र : Still from film, YouTube

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