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अपनी इस प्रेम कहानी का अंत मुझे समझ नहीं आ रहा था…

निशा तो स्तब्ध रह गई, कुछ भी न कह पाई, उसकी धड़कनें तेज़ हो गईं और हाथों की पकड़ मजबूत हो गई... लेकिन उसके आगे क्या हुआ?

निशा तो स्तब्ध रह गई, कुछ भी न कह पाई, उसकी धड़कनें तेज़ हो गईं और हाथों की पकड़ मजबूत हो गई… लेकिन उसके आगे क्या हुआ?

निशा का कॉलेज में आज पहला दिन था। तो थोड़ा डरी हुई भी थी क्यूंकि इस कॉलेज में लड़के-लड़कियाँ एक साथ पढ़ते थे और रोज़ ही अखबारों में उल्टी सीधी खबरें जो पढ़ने को मिलती हैं।
निशा वैसे भी अपने ग्रुप की लड़कियों से थोड़ा अलग ही स्वभाव की थी। जहाँ उसका ग्रुप खूब हंसी-मजाक, हा-हुल्ला करता, वह बस शालीनता से मुस्कुरा भर देती। उसकी सहेलियाँ तो साथ पढ़ने वाले लड़कों से खूब बातें करती पर निशा हमेशा शान्त ही रहती।

कुछ दिनों से निशा नोटिस कर रही थी कि उसकी क्लास का एक लड़का उसे चुपचाप देखता रहता है। वह जब भी घबराई हुई कनखियों से देखती तो वह लड़का उसी की ओर देखता हुआ दिखाई देता।

फिर एक दिन वह लड़का कॉलेज नहीं आया। निशा ने राहत की साँस ली। पन्द्रह दिन तक जब वह कॉलेज नहीं आया तो निशा को बेचैनी सी होने लगी। निशा को अपनी खास सहेली मीतू से पता लगा कि उसकी माँ बीमार है ।

लगभग एक महीने बाद उस लड़के को कॉलेज आया देख निशा के दिल में कुछ अजीब सी झंकार हुई और जैसे ही लैक्चर खत्म हुआ, क्लास रुम खाली हुआ, तो हिम्मत करके उसने उस लड़के से पूछा, “कैसी हैं अब आपकी माँ? क्या हुआ था उन्हें? वो ठीक तो हैं ना?”

“अरे अरे… इतने सारे सवाल एक साथ। अब माँ ठीक हैं। उन्हें हार्ट-अटैक आया था”, उसने मुस्कुरा कर जवाब दिया।

“और हाँ मेरा नाम चन्द्र है, निशा”, उसके मुँह से अपना नाम सुनकर निशा के मन में गुदगुदाहट सी हुई। बिना कुछ बोले, निशा क्लास से बाहर चली गई।

अगले दिन क्लास में घुसते हुए निशा की निगाहें चन्द्र को ही ढूँढ रही थी और जैसे ही चन्द्र को देखा तो दोनों की निगाहों में मुस्कुराहट तैर गई। अब ये सिलसिला यूँ ही चलता रहा। एक दिन चन्द्र ने निशा से कैन्टीन में चल कर चाय पीने के लिए पूछा। न जाने क्यूँ निशा ने हाँ कर दी। चाय खत्म होने को आई, दोनों चुप थे।

चन्द्र ने चुप्पी तोड़ते हुए निशा के हाथ पर हाथ रखते हुए कहा, “निशा, तुम मुझे पसन्द हो। मुझसे दोस्ती करोगी?”

निशा तो स्तब्ध रह गई, कुछ भी न कह पाई, उसकी धड़कनें तेज़ हो गईं और हाथों की पकड़ मजबूत हो गई।

चन्द्र ने फिर पूछा, “मुझसे दोस्ती करोगी?” निशा ने हाँ में सिर हिला दिया। दोनों के मन में प्यार के अंकुर फूटने लगे।

समय बीतता गया। कॉलेज समाप्त होने पर चन्द्र को एक प्रतिष्ठित कम्पनी में नौकरी मिल गई और निशा को भी स्कूल में अध्यापिका की नौकरी मिल गई।

दोनों ने अपने घर पर एक दूसरे के बारे में बताया तो घर वालों को भी इस से कोई आपत्ति न हुई। निशा के माता-पिता ने चन्द्र की माँ से बात करके आने वाली बसन्त पंचमी को दोनों के विवाह की तारीख भी पक्की कर ली।

अगले दिन चन्द्र ने एक लॉकेट निशा को भेंट किया और कहा कि तुम मेरे जीवन में बहार बन कर आई हो निशा।

“और तुम बसन्त बन कर, पिया बसन्ती रे…”, निशा ने मुस्कुरा कर कहा।

कई दिन बीत गए, चन्द्र निशा से नहीं मिला। मन में घबराहट, डर के भाव लेकर जब निशा चन्द्र के घर पहुँची तो ताला देखकर चिन्तित हो गई। पड़ोस से पता लगा, चन्द्र ने अपना घर बेच दिया था और माँ को लेकर कहीं चला गया।

“कहाँ गए? बता कर क्यों नहीं गए? चन्द्र ने इतना बड़ा धोखा क्यों दिया?” ऐसे हजारों सवालों का तूफान निशा के पैरों तले से जमीन खींच रहा था। महीनों बीत गए, चन्द्र की कोई खबर न थी। कई बसन्त आए और चले गए लेकिन निशा के जीवन में न तो बसन्त लौटा और न ही उसका पिया बसन्ती।

निशा के माँ-बाप भी अब दुनिया छोड़ चुके थे। निशा बिल्कुल अकेली हो गयी थी। चन्द्र के बारे में सोचना छोड़ दिया था उसने।

तभी दरवाजे पर घंटी बजी। दरवाजा खोला तो सामने चन्द्र खड़ा था। फिर एक बार निशा के पैरों तले जमीन न थी। मुंह से कोई शब्द न निकला।

“अन्दर आने को नहीं कहोगी?” निशा ने चुपचाप स्वीकृति दी।

“कुछ पूछोगी नहीं?” निशा ने अनगिनत प्रश्नों भरी निगाहों से चन्द्र की तरफ देखा।

बिना इन्तज़ार किए चन्द्र ने बोलना शुरु किया, “अचानक पता चला कि माँ को कैंसर है, वो भी लास्ट स्टेज पर। मैं सदमे में था और तुम्हें कुछ बता न पाया। मुझे लगा कि तुम्हें इंतज़ार कराने से अच्छा होगा कि तुम मेरे को भूल जाओ और ज़िन्दगी में आगे बढ़ो। मेरे एक दूर के रिश्तेदार के कहने पर मैं माँ को अमेरिका ले गया। तीन साल के इलाज के बाद भी मैं माँ को बचा न पाया।

अनाथ होकर तुम्हारे पास लौट रहा था कि मेरा एक्सीडेंट हो गया और उसमें मैंने अपनी एक टाँग खो दी और अपनी हिम्मत भी। तुम्हारा अपराधी हूँ मैं। माफी माँगने की भी हिम्मत नहीं मुझमें। ये अपराध बोध लेकर जीना नहीं चाहता। मैं जानता हूँ, मेरा अपराध, मेरा यूँ इतने वर्षों तक बिना बताए तुमसे दूर चले जाना, माफी के लायक भी नहीं है। तुम मुझे जो सज़ा दोगी मुझे मंज़ूर है।”

निशा ने बस इतना कहा, “अब कुछ न कहो चन्द्र।”

दोस्तों, इस कहानी को मैं यहीं पर छोड़ती हूँ और आप लोगों से पूछती हूँ, अगर आप निशा की जगह होते तो आप क्या करते? क्या आप वापस चन्द्र को अपनाते? क्या करते आप?

मूल चित्र : Still from the HDFC Bank Advertisement, YouTube

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Samidha Naveen Varma

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