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दीदी, आज से मेरी बेटी भी घी वाली रोटी खायेगी!

“अगर जिंदगी मुझे दोबारा मौका दे रही है तो मैं क्यों घर में बैठूँ। मेरी बच्ची को भी घी वाली रोटी खाने का हक है और उसके लिए ऐसी रोटी मैं कमाऊंगी।”

“अगर जिंदगी मुझे दोबारा मौका दे रही है तो मैं क्यों घर में बैठूँ। मेरी बच्ची को भी घी वाली रोटी खाने का हक है और उसके लिए ऐसी रोटी मैं कमाऊंगी।”

आज अपनी बच्ची की आंखों में आंसू देख कर दिल तार-तार हो गया। सुमन का जी कर रहा था कि वह जोर-जोर से रोए, पर अगर वह रोती तो उसकी दस वर्षीय बेटी सीमा भी रोती। अंदर दोनों मां बेटी एक दूसरे के आंसू पोंछ रही थी, वही बाहर उसकी जेठानी का चिल्लाना जारी था।

गलती सिर्फ इतनी सी थी कि सीमा ने अपनी ताई जी से घी लगी रोटी मांग ली थी। इसमें ताई जी ने ना सिर्फ सीमा के गाल पर चांटा खींच के मारा, बल्कि उसकी मां को भी बहुत भला बुरा कहा।

सुमन इस परिवार की छोटी बहू है। सुमन ने जब अपनी बारहवीं की पढ़ाई पूरी की ही थी, तो उसके पिताजी का एक्सीडेंट हो गया और आनन-फानन में उसकी शादी गजेंद्र से कर दी गई, क्योंकि उसके पिताजी मरने से पहले अपनी बेटी की शादी होते हुए देख लेना चाहते थे। उसकी शादी इस वादे के साथ की गई कि आगे की पढ़ाई वो ससुराल में पूरी कर लेगी, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।

बल्कि यहां आकर तो उसकी किस्मत ही फूट गई। ससुर तो थे नहीं, बड़े भाई-भाभी थे, जिनके लिए सुमन सिर्फ एक नौकरानी ही थी। और गजेंद्र एक नंबर का आवारा और कामचोर इंसान था। उसे भी सुमन के दर्द से कोई लेना-देना नहीं होता। इतनी आनन-फानन में शादी हुई कि उसके बारे में किसी ने पता करने की कोशिश भी नहीं की।

हालांकि बाद में सुमन ने बताने की कोशिश भी की, तो उसकी मां ने यह कहकर उसका मुंह बंद कर दिया, “मैं तो खुद तेरे भाई पर निर्भर हूं, तेरी जिम्मेदारी कौन उठाएगा। चुपचाप अपने ससुराल में निभा।”

खैर, कुछ साल बाद सीमा हो गई। पर गजेंद्र की आदत ना गई। अभी भी निठल्ले यूं ही घूमता फिरता। परिवार से कोई लेना-देना नहीं। कुछ साल पहले अपने दोस्त के साथ घूमने गया तो लौट के ही ना आया। भाई को भी उससे कोई लेना देना नहीं। पर सुमन और सीमा को इसलिए नहीं निकालते की फ्री की नौकरानी मिली हुई थी।

हालांकि, सास ने एक दो बार कहा भी था कि यहां पास ही में आंगनवाड़ी में तुझे लगवा देती हूं, कम से कम अपना और अपनी बेटी का खर्चा तो कर लेगी। लेकिन जेठ जेठानी हमेशा मना कर देते कि लोग क्या कहेंगे। लोक लाज का कुछ तो ख्याल रखो।

अब तो सीमा भी थोड़ा बहुत घर का काम करने लगी थी। लोक लाज के कारण उसे सरकारी स्कूल में दाखिला दिलवा दिया था। एक दो बार उसकी स्कूल की शिक्षिका ने भी सुमन को स्कूल में आकर काम करने को कहा, पर जेठ जेठानी की बात याद आते ही उसने मना कर दिया।

दिन भर कोल्हू के बैल की तरह लगी रहती थी, लेकिन फिर भी रुखा सुखा जो था वही खाने को मिलता। पर सीमा तो बच्ची ठहरी। जब देखती कि ताई जी अपने बच्चों को रोटी में घी चोपड़ कर दे रही है तो उसका भी मन करता है कि वह भी ऐसी रोटी खाए।

एक दो बार उसने सुमन से कहा भी, पर जो खुद ही दूसरों की मोहताज हो वह भला क्या अपनी बेटी को घी लगी रोटी खिलाएगी। दादी ज्यादा कुछ कह नहीं पाती क्योंकि बड़ी बहू उनको भी सुना देती आखिर उसी का पति था जो घर में कमाऊ पूत है।

आज फिर सीमा ने ताई जी को अपने बच्चों की रोटी पर घी लगाते देखा तो उससे रहा नहीं गया, इसीलिए आज उसने कह भी दिया, “ताई जी, हमें भी ऐसी रोटी दो ना।”

“चुपचाप जा यहां से। नजर लगाएगी मेरे बच्चों की रोटी को।”

“भैया और दीदी को भी तो रोटी में घी लगाकर देती हो, मुझे भी घी वाली रोटी खानी है, एक ही दे दो ना।”

इतना सुनना था कि ताई जी ने खींचकर एक चांटा उसके गाल पर रसीद किया, “तेरा बाप रखकर गया था घी यहां पर तेरे लिए? फ्री की रोटी दे रहे हैं, वही काफी है। वरना तुम लोगों की औकात नहीं है यहां पर रहने की।”

आवाज सुनकर सुमन दौड़ी चली आई। अपनी बेटी की आंखों में आंसू देख कर कलेजा मुंह को आ गया। चुपचाप उसे अपने साथ कमरे में लिवा लाई।

“क्यों गई थी वहां? तुझे पता है ना तेरी ताई जी का स्वभाव कैसा हैं। जो रुखा सुखा मिल रहा है चुपचाप खा लेती।”

“मुझे भी घी वाली रोटी खानी है मां। मैं क्यों घी लगी रोटी नहीं खा सकती?” सीमा ने रोते हुए कहा।

अपनी बेटी को रोता देख कर आज सुमन के अंदर बहुत कुछ टूट चुका था। पूरी रात सोचती रही। सुबह उठी और जो घर के कामकाज हुए, वह किए, बाकी जेठानी जी के लिए छोड़ कर बैग उठाकर अपनी बेटी के साथ निकलने को तैयार हुई। तो जेठानी जी ने रोक दिया, “कहाँ जा रही है सुबह-सुबह?”

“मेरी पूरी जिंदगी रोते हुए बीती है, पर अब मेरी बेटी नहीं रोएगी। पिछली बार भी मुझे अम्मा ने आंगनवाड़ी में लगाने के लिए कहा था, लेकिन लोक लाज के कारण आप लोगों ने मुझे चुप करा दिया। अगर जिंदगी मुझे दोबारा मौका दे रही है तो मैं लोक लाज के कारण क्यों घर में बैठूँ। मेरी बच्ची को भी घी वाली रोटी खाने का हक है और उसके लिए ऐसी रोटी मैं कमाऊंगी।”

“ओहो बड़ी जुबान चल रही है और यह बाकी का काम कौन तेरा बाप आकर करेगा?”

“जैसे मैं घर की बहू हूं, वैसे ही आप इस घर की बहू हैं। और यह मकान आपका नहीं है, हमारे ससुर का है। इसमें उतना ही हक मेरा भी है जितना आप लोगों का है। तो आज के बाद आधे काम आप करेंगे और आधे मैं करूंगी। और आपसे ना हो सके तो मुझे अलग कर सकते हो, मुझे कोई परेशानी नहीं।”

सुमन के मुंह से यह सब सुनकर के उसके जेठ जेठानी के मुंह से शब्द ना निकला। दोनों चुपचाप सुमन को जाते देखते रहे।

मूल चित्र: Still from Short Film Trial Before Monsoon, YouTube 

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