कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

हम अपने बेटे की शादी धूमधाम से करेंगे लेकिन अपने पैसों से…

मम्मी कह रही थी कि अनन्या उनकी इकलौती बेटी है तो वह कार भी तो देंगे ही अपनी बेटी को। इसी बात को लेकर मेरी और पापा की मम्मी से बहस हो गई।

मम्मी कह रही थी कि अनन्या उनकी इकलौती बेटी है तो वह कार भी तो देंगे ही अपनी बेटी को। इसी बात को लेकर मेरी और पापा की मम्मी से बहस हो गई।

आज सुबह से ही घर का माहौल थोड़ा अजीब सा था। समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या हुआ है। पर अभय पूछे किससे? मां(मीरा जी) तो सुबह से मुंह फुलाए बैठी है और पिताजी(केशव जी) ज्यादा कुछ कह नहीं रहे।

आयुष भैया भी चुपचाप अपने ऑफिस चले गए। आखिर मेरे पीठ पीछे क्या हुआ होगा। अभय के दिल और दिमाग में बस यही सब चल रहा था। आखिर हिम्मत करके भाई को ही फोन लगाया।

“हेलो भैया, अगर आप बिजी ना हो तो क्या मैं आपसे बात कर सकता हूं?”

“क्या बात है भाई, बोलो।”

“भैया, क्या घर में कुछ हुआ है? जब मैं यहां से गया था तब तो घर का माहौल बहुत अच्छा था। अब दो दिन बाद लौटा हूं तो घर का माहौल बड़ा अजीब हो चुका है। क्या बात है?”

“तू यह सब क्यों सोच रहा है? अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे।”

“कैसे ध्यान दूँ? ऐसे माहौल में भला कोई पढ़ सकता है? सच बताओ ना भाई, क्या हुआ?”

“शाम को घर आऊंगा तब बात करेंगे।”

“ठीक है।”

ऐसा कहकर अभय ने फोन रख दिया। शाम को जब आयुष घर आया तो अभय उसका इंतजार कर रहा था। आयुष ने उसे इशारे से चुप रहने के लिए कहा। दोनों भाइयों ने खाना खाया और उसके बाद कुछ देर टहलने के नाम पर घर के बाहर निकल गए। पर अभय से बर्दाश्त नहीं हुआ तो उसने रास्ते में ही पूछ लिया, “आखिर बात क्या है? मुझे बताओ तो सही।”

“मम्मी-पापा ने कुछ नहीं बताया तुम्हें?”

“मैंने उनसे पूछा ही नहीं। मुझे तो आपसे सुनना है।”

“चलो ग्राउंड की बेंच पर बैठकर फिर बात करते हैं।”

दोनों भाई ग्राउंड में चले गए और बेंच पर बैठ गए। काफी देर चुप बैठने के बाद आयुष ने बोलना शुरू किया, “अभय क्या बताऊं तुम्हें? मम्मी अपने सपनों की दुनिया से बाहर ही नहीं आना चाहतीं।”

“खुल कर बताओ भैया, समझ में नहीं आ रहा।”

“तुम्हें पता है ना मम्मी अक्सर कहती थीं कि मेरे तो दो बेटे हैं, मैं तो उनकी शादी धूमधाम से करूंगी।”

“हां, तो इसमें गलत क्या है?”

“सही कहा, हर माता-पिता अपने बच्चों की शादी धूमधाम से करना चाहते हैं। इसमें कुछ गलत नहीं है। लेकिन धूमधाम से करना चाहते हैं तो अपने पैसों से करो ना, सामने वाले से क्यों उम्मीद करते हो?”

“मतलब?”

“मतलब मम्मी अनन्या के परिवार से उम्मीद कर के बैठी है कि सब चीज उनसे पूछ कर की जाए। कल शाम को जब अनन्या के पापा का फोन आया था कि वो लोग शादी की तैयारियों के लिए हम से मिलना चाहते हैं, उसके बाद मम्मी इस तरह की बातें कर रही थी कि यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह मेरी मां है।

मम्मी पापा को कह रही थी कि अनन्या उनकी इकलौती बेटी है तो वह कार भी तो देंगे ही अपनी बेटी को। इसी बात को लेकर मेरी और पापा की मम्मी से बहस हो गई।

और तो और तुझे पता है वह तो यहां तक कह रही थी जो गिफ्ट हमें देंगे, वो गिफ्ट हमारे साथ चलकर खरीदो। यह भी कोई बात होती है? सामने वाले का भी अपना बजट होता है यार। हर कोई अपने हिसाब से खरीदना चाहता है। आखिर उन्हें क्यों शर्मिंदा करो?

ज्यादा कुछ बोलते हैं तो कहती है कि मेरे भी कुछ सपने हैं तुम लोगों की शादी को लेकर। अरे तो आपके सपने है तो अपने दम पर पूरा करो ना। किसी और से उम्मीद क्यों करते हो? बस किसी बात को समझने को तैयार नहीं है और कल से मुंह फुलाए बैठी है। आखिर करे तो क्या करें?”

कुछ सोच कर के अभय ने कहा, “भैया चलो घर चलते हैं। क्या करना है कल देखा जाएगा।”

दूसरे दिन सुबह सुबह आयुष के पास फोन आया। उसके बाद आयुष सीधे अपने पापा के पास पहुंचा, “पापा, अनन्या के पापा का फोन आया था। पूछ रहे थे कि आप लोग दुल्हन की ज्वेलरी खरीदने कब जाओगे? आखिर पहनना अनन्या को है तो अनन्या भी साथ ही चले जाए तो अच्छा है। अपनी पसंद की ज्वेलरी भी खरीद लेगी।”

इससे पहले कि केशव जी कुछ कह पाते, मीरा जी चिल्ला पड़ीं, “यह क्या बदतमीजी है? भला ज्वेलरी खरीदने के लिए अनन्या को क्यों साथ लेकर जाएंगे? लहंगा खरीदने के लिए तो साथ लेकर जा ही रहे है, क्या यह काफी नहीं है?”

“पर मम्मी इसमें गलत क्या है? आखिर पहनना अनन्या को है तो अपनी मर्जी की ज्वेलरी खरीद लेगी ना।”

“हां, और हमारे बजट का क्या? हमारा अपना बजट है। हम अपने हिसाब से ज्वेलरी खरीदेंगे।  ज्यादा की ज्वेलरी पसंद कर ली तो बेवजह हमें शर्मिंदा होना पड़ेगा। इतनी सी बात क्या उन लोगों की समझ में नहीं आती?”

“यही बात तो दो दिन से हम तुम्हें समझाने में लगे हुए हैं पर तुम तो समझना नहीं चाहतीं”, अचानक से केशव जी ने जवाब दिया, जिसे सुनकर मीरा जी झेंप गईं।

“अभी जो बातें तुमने कही, वह तुम्हारे लिए सही और उन लोगों के लिए गलत क्यों? सपने तुमने देखे हैं कि तुम्हारे बेटे की शादी में कार आए, तो वह तुम खरीद लो। इतना दम तुम्हारे बेटे और पति दोनों में है। लड़की वालों पर बोझ क्यों? और रही बात शादी धूमधाम से करने की तो हर मां बाप का सपना होता है अपने बच्चों की शादी धूमधाम से करना। पर सबका अपनी हैसियत के हिसाब से बजट होता है। तो बेवजह सामने वाले पर बोझ डालना, यह तो गलत है”

” ठीक है, मैं तो समझ गई। लेकिन आप समधी जी को क्या जवाब दोगे जो ज्वेलरी खरीदने के लिए साथ चलने के लिए कह रहे हैं?”

“मम्मा, फिकर मत करो। फोन अभय का था, अनन्या के पापा का नहीं।”

“अच्छा, तो सुबह-सुबह तुम लोग मुझे बेवकूफ बना रहे हो?”

“अरे, मेरी प्यारी मां! बेवकूफ नहीं बना रहे, समझा रहा है तुम्हें।”

अभय ने कहा और सब की हंसी छूट गई।

मूल चित्र : Still from Desi Parents & Generation Gap, YouTube

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

26 Posts | 430,429 Views
All Categories