कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

जस्टिस बोबडे पूछते हैं भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश अभी क्यों नहीं?

जस्टिस बोबडे पूछते हैं कि भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश अभी क्यों नहीं? क्या  कारण हैं कि भारत में महिला न्यायाधीश कम हैं?

जस्टिस बोबडे पूछते हैं कि भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश अभी क्यों नहीं? क्या  कारण हैं कि भारत में महिला न्यायाधीश कम हैं?

उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति पर सुनवाई के लिए तीन न्यायाधीशों की पीठ का गठन करते हुए, सीजेआई बोबडे ने कहा कि कॉलेजियम के मन में महिलाओं के हित हैं और उन्होंने दावा किया कि वे इसे सर्वश्रेष्ठ तरीके से लागू कर रहे हैं।

“हमारे मन में महिलाओं के प्रति रुचि है और हम इसे बेहतरीन तरीके से लागू कर रहे हैं। हमारे अंदर कोई बदलाव नहीं आया है। केवल एक चीज है कि हमें अच्छे उम्मीदवार मिलें।” जस्टिस बोबडे ने कम महिला न्यायाधीश के बारे में कहा। वे 23 अप्रैल 2021 को सेवानिवृत्त होंगे।

सुनवाई के दौरान, वकील शोबा गुप्ता और स्नेहा कलिता ने महिला वकील एसोसिएशन का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने तर्क दिया कि न्यायपालिका में महिला प्रतिनिधित्व का अभाव है।

भारत में केवल 11 प्रतिशत न्यायाधीश महिलाएं हैं। उन्होंने न्यायाधीश के रूप में महिलाओं की अधिक नियुक्तियों के लिए पीठ से गुहार लगाई है। अब तक सुप्रीम कोर्ट में केवल 8 महिला जजों की नियुक्ति की गई है।

भारत की महिला प्रधान न्यायाधीश कभी नहीं बनी है। देश के 25 उच्च न्यायालयों में से केवल एक महिला मुख्य न्यायाधीश (तेलंगाना हाईकोर्ट में सीजे हेमा कोहली) हैं।

हाईकोर्ट के 661 जजों में से केवल 73 (लगभग 11.04 प्रतिशत) महिलाएं हैं। मणिपुर, मेघालय, पटना, त्रिपुरा और उत्तराखंड जैसे पाँच हाईकोर्ट में एक भी महिला न्यायाधीश नहीं है।

संविधान के आर्टिकल 14 और 15 (3) का हवाला देते हुए, एसोसिएशन ने कहा कि महिलाओं की योग्यता को उचित महत्व देते हुए उच्च न्यायपालिका में महिलाओं का पर्याप्त प्रतिनिधित्व होना चाहिए।

यहां तक ​​कि जब अधिवक्ता स्नेहा कलिता ने तर्क दिया कि महिलाओं को उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के रूप में उचित प्रतिनिधित्व होना चाहिए, सीजेआई बोबडे ने कहा: “केवल उच्च न्यायालयों में ही क्यों? भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश क्यों नहीं? अभी क्यों नहीं? कॉलेजियम हमेशा प्रतिनिधित्व के मुद्दे पर चर्चा करता है।”

कई महिला वकीलों ने दिया घरेलू जिम्मेदारियों का हवाला

इस पर जस्टिस सीजेआई बोबडे ने कम महिला न्यायाधीश के बारे में कहा, “उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों ने मुझे बताया है कि एक समस्या यह है कि जब महिला वकीलों को न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए कहा जाता है, तो वे अक्सर यह कहते हुए इनकार करती हैं कि उनके पास घरेलू ज़िम्मेदारी है या उन्हें अपने बच्चों की पढ़ाई का ध्यान रखना है।

हालांकि, पीठ ने आवेदन पर नोटिस जारी करने से इनकार कर दिया। सीजेआई ने कहा, “हम अभी कोई नोटिस जारी नहीं करना चाहते हैं। हम चीजों को जटिल नहीं करना चाहते हैं।

एक ऐसे मामले में हस्तक्षेप करने के लिए आवेदन दायर किया गया है, जहां कोर्ट हाईकोर्ट के न्यायाधीशों के रिक्त पदों को भरने के मुद्दे पर विचार कर रहा है। हमारे मन में महिलाओं के हित हैं। इसमें कोई एटिट्यूडनल चेंज नहीं है। उम्मीद है, उन्हें (महिलाओं को) नियुक्त किया जाएगा।”

आखिर क्यों न्यायालय में महिलाओं की संख्या कम है?

ऐसे देश में जहां की जनसंख्या का 48% महिलाएं हैं, वहाँ के सर्वोच्च न्यायालय में 3.3% से कम महिलाएँ हैं (2019 के आंकड़ों के मुताबिक) और किसी भी महिला ने भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्य नहीं किया है।

अगर हम देखें तो कानूनी पेशे में प्रवेश करने वाली महिलाओं की भी कमी नहीं है। नेशनल लॉ यूनिवर्सिटीज के लिए 2019 कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट में क्वालीफाई करने वाली 44% महिला उम्मीदवार थीं।

तो ये महिलाएँ आखिर कहाँ गयी?

न्यायपालिका के निम्नतम स्तर पर अधिक महिला प्रतिनिधित्व है

विधी केंद्र की 2018 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि आंकड़ों के मुताबिक तो निचली न्यायपालिका में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बेहतर है। लेकिन ये अनुपात जैसे जैसे ऊपरी अदालतों में जाए तो कम हो जाता है। अगर माना जाए कि भेदभाव नहीं है, तो इन महिला न्यायाधीशों की संख्या ऊपरी अदालत में भी समान रहनी चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं है।

तो फिर ये उच्च स्तर तक क्यों नहीं पहुंचती हैं?

अगर देखें तो निचली न्यायपालिका में प्रवेश करने के लिए एंट्रेंस एग्जाम क्लियर करना होता है और वहीं दूसरी और उच्च न्यायपालिका में एक कॉलेजियम सिस्टम है जो अपारदर्शी है, जिसके कारण इस असामनता की संभावना रहती है।

कॉलेजियम सिस्टम आने के बाद से उम्मीद थी कि सुप्रीम कोर्ट में अधिक से अधिक महिला न्यायाधीशों को जोड़ा जाएगा लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि कोई सार्थक बदलाव नहीं हुआ है।

जस्टिस बोबडे के कम महिला न्यायाधीश होने के कारण के अलावा अन्य कारण क्या हो सकते हैं?

कई राज्यों में निचली न्यायपालिका में महिलाओं के लिए आरक्षण नीति भी है, जो उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय में नहीं है। अदालत में सेक्सिस्ट भाषा का उपयोग और टिप्पणियाँ भी एक कारण है। कई बार मेल डोमिनिटेड फील्ड में महिलाओं को वर्बल हेरासमेंट का सामना भी करना पड़ता है खासकर कोर्ट रूम में।

साथ ही जैसा जस्टिस सीजेआई बोबडे ने कहा, पारिवारिक ज़िम्मेदारियाँ भी इसमें अहम भूमिका निभाती हैं। अगर महिलाओं ने खुद इस बात को स्वीकारा है तो इस पर काम करने की ज़रूरत है। या यूं कहें, कि इतनी संख्या में पुरुषों के आगे होने का कारण है उनके घर पर रह रही महिलाएँ।

तो जब पितृसत्ता के चलते महिलाओं पर ही बच्चों की ज़िम्मेदारियाँ थोपी जायेगी वे कैसे आगे आएँगी?

महिला न्यायाधीश/जजों के आंकड़ों में बढ़ोतरी क्यों होनी चाहिए?

इंटरनेशनल कमीशन ऑफ ज्यूरिस्ट्स की 2014 की एक रिपोर्ट में कहा गया है, “महिला जजों की उच्च संख्या और अधिक दृश्यता, महिलाओं को न्याय दिलाने और उनके अधिकारों को लागू करने की प्रवति को बढ़ा सकती है।” अगर अधिक संख्या में महिलाएँ होंगी तो न्याय में एक समावेशी दृष्टिकोण आएगा। हालांकि इसका मतलब ये नहीं है कि पुरुष जज महिलाओं के लिए न्याय नहीं करते हैं।

वास्तव में इंक्लूसिव होने के लिए, भारतीय न्यायपालिका को न केवल महिला न्यायाधीश के प्रतिनिधित्व की आवश्यकता है बल्कि इसमें ट्रांस, विभिन्न जाति, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और क्षेत्रीय पृष्ठभूमि के लोग भी शामिल करने चाहिए।

मूल चित्र : indialegallive.com

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

Shagun Mangal

A strong feminist who believes in the art of weaving words. When she finds the time, she argues with patriarchal people. Her day completes with her me-time journaling and is incomplete without writing 1000 read more...

136 Posts | 556,869 Views
All Categories