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पापा, मेरी इस हालत के ज़िम्मेदार आप भी हैं…

10 लाख नकद, कार, घर गृहस्थी का सारा सामान, महंगे से महंगे ब्रांडेड कपड़े, सोने-चांदी के जेवर, कुल मिलाकर कम से कम 30 लाख से ज्यादा... 

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10 लाख नकद, कार, घर गृहस्थी का सारा सामान, महंगे से महंगे ब्रांडेड कपड़े, सोने-चांदी के जेवर, कुल मिलाकर कम से कम 30 लाख से ज्यादा… 

ट्रिगर वार्निंग : इस कहानी में दहेज़ उत्पीड़न/मौत का विवरण है जो कइयों के लिए उपयुक्त नहीं है 

“मैडम! हमें उम्मीद था जल्द ही सब ठीक हो जाएगा? वैसे भी नयी नयी शादी को समझने और गृहस्थी बसने में थोड़ा समय तो लगता ही है इसीलिए हम सब बार बार अपनी बेटी को यही समझाते रहे कि बिटिया रूपा सही समय आने पर सब ठीक हो जाएगा, थोड़ा बर्दाश्त करना पड़ता है ससुराल में। हमें क्या पता था ये सब हो जाएगा?”

कंधे पर रखे गमछे को मुँह में दबाकर रोते बिलखते, कभी अपना आंसू पोछते, रमेश जी पुलिस अधिकारी को ये बात बता रहे थे।

तभी पुलिस अधिकारी ने अगला सवाल किया, “आप किस किस के नाम शिकायत दर्ज करना चाहते हैं? और आपने अपनी बेटी को क्या क्या दिया था सभी समानों की लिस्ट भी लिखा दीजिये, जिससे उन दहेज लालचियों को सजा दिलायी जा सके। आप बिलकुल चिंता मत कीजिये असली गुनहगारों को सजा अवश्य होगी, आप मुझ पर भरोसा रखिये।”

तभी अस्पताल की दीवार से टेक लगाए आसमान की तरफ देखता कभी अपने खुले हांथो की मुठी बनाकर दीवार को मारता तो कभी नीचे जमीन को देखता और दाहिने पर के अंगूठे के नाखूनों से जमीन को कुरेदता, गुस्से को अपने अंदर ही अंदर पीता रूपा का छोटा भाई नमन बोल पड़ा, “मैडम! हम लोगों ने अपनी बहन को कुछ भी नहीं दिया।”

सब मुड़कर नमन की तरफ देखने लगे। तभी रमेश जी ने कहा, “क्या कुछ भी बदहवासी में बोले जा रहा है। मैडम बहन के दुःख ने इसको पागल बना दिया है। ये अपने होश में नहीं इसलिए ऐसा बोल रहा है।”

“नहीं पापा, मैं अपने पूरे होशो हवस में ये बोल रहा हूं।”

इधर आज किसी का भी दुःख रूपा की दुःख से ज्यादा नहीं था अस्पताल इमरजेंसी रूम में भर्ती रूपा के शरीर और मन के घाव इतने गहरे थे कि वो अपनी आंखों से गिरते आंसू भी नहीं पोंछ सकती थी।

उसका सूखता गला पानी की एक एक बूंद के लिए तरस रहा था। भूख के मारे पेट की अतड़िया भी आपस मे चिपक कर जैसे  एक दूसरे से इस दुःख और भूख प्यास को बर्दाश्त करने के लिए कह रही थी।

पूरा शरीर मार पीट कर आग में जला दिया गया था, कुछ बचा था तो वो थी उसकी सांसे और लड़खड़ाती आवाज जो बार-बार चीख चीख कर सिर्फ एक ही सवाल कर रहे थे कि आखिर मेरा गुनाह क्या था? किस बात की मुझे इतनी बड़ी सजा दी गयी। क्या एक बेटी होना मेरा जुर्म था या बेटी से बहु बनना मेरा जुर्म था, या चुपचाप माता-पिता की इज्ज़त समाज मे बचाने के लिए ससुराल वालों का अत्याचार बर्दाश्त करने मेरा जुर्म था?

कौन देगा मेरे सवालों के जवाब किससे पूछूं मैं ये सारे सवाल? कौन देगा जवाब?

तभी अपनी बात को आगे बढ़कर नमन ने कहा, “मैडम 10 लाख नकद, कार, घर गृहस्थी का सारा सामान सुई से लेकर गैस और पलंग तक, महंगे से महंगे ब्रांडेड कपड़े, सोने-चांदी के जेवर, कुल मिलाकर कम से कम मेरे पिताजी ने 30 लाख से ज्यादा का खर्च किया शादी के समारोह और स्वागत में। लेकिन ये सब मेरी दीदी के लिए नही खुद की इज्ज़त ,समाज में दिखावे और उन अनजान लोगों के लिए किया।

क्योंकि दीदी के लिए तो इनके पास कभी पैसे होते ही नहीं थे। दीदी ने जब जब इनसे कुछ मांगा चाहे वो पढ़ाई हो या खुलकर जीने का अधिकार और खुद के फैसले लेने का अधिकार इनके पास उन्हें देने के लिए कुछ भी नहीं था। हर बार ये अपना और कभी समाज के नाम का दुखड़ा ही सुना देते उनके और वो चुपचाप एक अच्छी बेटी की तरह पिता की आज्ञा का पालन करने में लग जाती।

दीदी की ये हालत भी इनकी ही आज्ञा और समाज में इज्जत की वजह से ही है। दीदी ने जब इनको बताया कि उनको ससुराल वाले मारते हैं गालियां देते हैं, जीजा जी हर वक्त नशे में मारते पीटते हैं, तो इन्होंने उनको वापिस नहीं बुलाया।

पता है क्या कहा?

‘बिटिया नए घर मे थोड़ा समय लगता है थोड़ा बहुत तो बर्दाश्त करना होता है, अब तुम्हारी किस्मत में यही लिखा था तो हम क्या कर  सकते हैं? लेकिन अगर तुम ससुराल छोड़कर वापिस आ गयी तो समाज में बहुत बेइज्जती होगी। लोग तुम्हें ही दोषी कहेंगे। चिंता मत करो अभी सब नया नया है लेकिन जल्द ही सब ठीक हो जाएगा।’

इनको तो हमेशा समाज का डर और उन अनजान लोगों पर भरोसा था जिन्होंने दीदी की आज ये हालत कर दी कि आज वो जिंदगी और मौत के बीच जूझ रही है। इसीलिए तो उनके मुँह खोलने से पहले उनकी मुराद  इन्होंने हमेशा पूरी की और दीदी के बार बार मुँह खोलने पर उनको चुप करा दिया गया और वो खाली हाथ ही रह गयी।

वो तो उड़ना चाहती थी पढ़ना चाहती थी एयर-होस्टेस बनना चाहती थी, लेकिन इनका समाज इनकी एक बेटी को ये सब करने की इजाजत नहीं देता था इसलिए इन्होंने भी नहीं दिया। और बिना उनकी इच्छाओं को जाने ,पूछे एक अनजान घर मे उनका रिश्ता एक कप चाय पर बात करके तय कर दिया।

मैं भी आज बहुत हिम्मत जुटा कर ये बोल रहा हूँ लेकिन कभी उनके हक के लिए नहीं बोल पाया। भाई होने के नाते मैंने भी अपना कर्तव्य नहीं निभाया।

तो अब रो कर क्या फायदा अगर आज दीदी  बच भी जाये तो भी वो इन लोगों पर बोझ और खराब किस्मत की ही कही जाएगी। लोगों के ताने-बातें उन्हें हर रोज थोड़ा-थोड़ा मारेगा।

मैडम आप एक महिला है तो दूसरी महिला का दर्द भी अच्छे से समझ रही होंगी। तो अब बात अपने दिल से पूछिए कि असली गुनहगार कौन है? किस किस के खिलाफ किस किस जुर्म में एफ आई आर दर्ज की जानी चाहिए और क्या सजा मिलनी चाहिए?

अस्पताल में नमन की बातें सुनकर एक सन्नाटा सा पसर गया। तभी सामने से दौड़ती भागती नर्स आयी और रमेश जी को आकर कहा, “चलिये आपकी बेटी आपसे मिलना चाहती है समय बहुत कम है।”

रमेश जी तेज कदमों से अस्पताल के कमरे की तरफ भागते हुए गए, “आज वो बेटी का हाथ भी पकड़ नहीं सकते थे क्योंकि आग ने उस हाथ को अपने आगोश में लेकर जला डाला था।”

रूपा ने अपनी लड़खड़ाती  आवाज में कहा, “पिताजी मेरी कोई गलती नहीं थी। मैंने आपकी कही हर बात मानी, आपने और उन लोगों ने जैसा कहा मैंने वैसा ही किया। फिर भी पता नहीं किस बात से नाराज हो गए?

भूलकर सिर्फ चाय में चीनी ही कम डाली थी मैंने। उस बात की माफी भी मांगी। मैं आपकी अच्छी बेटी हूँ ना पापा? लेकिन एक बात कहूँ? अगले जन्म में मुझे अपनी बेटी नही बेटे के रूप में जन्म देना”, कहते हुए रूपा की सांसें उखड़ गयी।

रमेश जी बेटी की ऐसी हालत देखकर बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़े।

प्रिय पाठकगण, उम्मीद करती हूं कि मेरी ये रचना आप सब को पसंद आएगी। कहानी पूर्णतया काल्पनिक है।

कहानी के माध्यम से मैं सिर्फ इतना कहना चाहती हूं कि बेटियों को किसी पर आश्रित नहीं आत्मनिर्भर बनाइये। दहेज के लिए पैसे मत जोड़िए शिक्षा के लिए पैसे बचाइए और बेटियों को पढ़ाइये क्योंकि शिक्षा ही समाज मे किसी अपराध को खत्म करने का सशक्त माध्यम है। इसलिए बेटा बेटी के परवरिश और शिक्षा में समानता  लाकर ही समाज में बदलाव सम्भव है।

मूल चित्र : Still from short film Love After Death, YouTube

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