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वह संस्कारी नहीं है…

देवी स्वरुपा बताकर उसको, सदियों से हरता आया मानव, नारी तेरी यही नियति, तुझसे जन्म पाकर तेरा ही शोषण करता, वह संस्कारी नहीं है...

देवी स्वरुपा बताकर उसको, सदियों से हरता आया मानव, नारी तेरी यही नियति, तुझसे जन्म पाकर तेरा ही शोषण करता, वह संस्कारी नहीं है…

वह आधुनिक कपड़े पहनती है,
सर पर दुपट्टा नहीं ओढती,
वह संस्कारी नहीं है।

वह घर के मर्दों के साथ,
कंधे से कंधा मिलाकर पैसा कमाती है,
वह संस्कारी नहीं है।

अन्याय को सहती नहीं,
आवाज उठाती है अत्याचार के खिलाफ,
वह संस्कारी नहीं है।

वह बच्चों को जन्म देती है,
सही गलत की पहचान कराती,
वह संस्कारी नहीं है।

वह घर बाहर सब सम्भालती,
कभी नहीं थकती है,
वह संस्कारी नहीं है।

अपने कर्तव्य को निष्ठा से निभाती,
कभी हार नहीं मानती है,
वह संस्कारी नहीं है।

भूल खुद के दुख,
दूसरों के दुख-सुख में साथ निभाती,
वह संस्कारी नहीं है।

जिंदगी के पथ निरंतर आगे बढती रहती,
बिना रुके बिना थके,
वह संस्कारी नहीं है।

आये अपनों पर मुश्किल भी तो,
काली बन जाती है,
वह संस्कारी नहीं है।

दुर्गा सी सुंदर बन,
वात्सल्य की छांव में भर लेती सबको,
वह संस्कारी नहीं है।

कलम की लेखनी पकड़कर,
सरस्वती सा ज्ञान बाँटती,
वह संस्कारी नहीं है।

देवी स्वरुपा बताकर उसको,
सदियों से हरता आया मानव,
वह संस्कारी नहीं है।

नारी तेरी यही नियति,
तुझसे जन्म पाकर तेरा ही शोषण करता,
वह संस्कारी नहीं है।

मूल चित्र : Arif Khan Via Pexels

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