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द मैरिड वुमन: खुद की तलाश में एक शादीशुदा महिला की कोशिश

समलैंगिकता का अपराध श्रेणी से निकलने के बाद दो महिलाओं के आकर्षण और सामाजिक बंधनों को “द मैरिड वुमन” दिखाने में कामयाब होती है।

समलैंगिकता का अपराध श्रेणी से निकलने के बाद दो महिलाओं के आकर्षण और सामाजिक बंधनों को “द मैरिड वुमन” दिखाने में कामयाब होती है।

आठ मार्च, अंतराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर, जी5 और आंल्ट बालाजी ने मंजू कपूर की पहले से कई लोगों की पढ़ी ए मैरिड वुमन की कहानी को साढ़े पांच घंटे में कुछ एपिसोड में दिखाने की कोशिश की, जिसके अंदाज़े-बयां को प्रस्तुत करने का काम निर्देशक साहिर रजा के साथ रिधि डोगरा, राहुल वोहरा, नादिरा बब्बर, सुहास सहित कुछ कलाकारों ने किया।

कहानी की हल्की सी झलक शूरुआत में होने वाले गज़लनुमा कविता से मिलती है जो कहती है…

“घर खाली-बार खाली, ये गली बुलाने वाली।

दिन के सवालों के, रातों के जवाब।

जो बचाकर रख चुके हो, देखो वो भी बन चुने है।

कल के इमारतों पर, आज का हिसाब। 

खामखां ही गिन रहे हो, यूंही दाने चुन रहे हो। 

हम वो सदी जो बीत जाएगे, बेमतलब, बेमतलब, बेमतलब!”

क्या कहती है द मैरिड वुमन

90 के दशक के समय दिल्ली में मौजूद सांप्रदायिक महौल में आस्था (रिधि डोगरा) जो मध्यवर्गीय परिवार की बहू और पेशे से कॉलेज में टीचर है, अपने जीवन में सब कुछ होने के बाद अपने स्वयं के तलाश में है।

वह घर-परिवार, समाज में एक महिला के लिए खीच दी गई लकीरों के दायरे में बंधी हुई है। एक हद तक वह खुश भी है पर तब भी अपने जीवन का रंग भी तलाश कर रही है। फिर उसकी मुलाकात पीप्लिका खान (मोनिका डोगरा) से होती है जो आस्था के स्वभाव से बिल्कुल विपरीत है।  वह एक पेंटर है।

आस्था, पीप्लिका से मिलती है और उसके जीवन के कैनवास पर जिस रंग की तलाश है, वह एक-दूसरे के साथ से भरने लगते हैं। यही कहानी का केंद्र बन जाता है। आस्था अपने भर-पूरे परिवार के साथ है तो पीप्लिका खान बैचलर्स की तरह बिंदास रहती है।

इन दोनों के रिश्ते की शुरुआत होती है और देश-समाज में राजनीतिक उथल-पुथल अपने उफान पर है। इस पूरे सामाजिक और पारिवारिक महौल में आस्था और पीप्लिका खान का रिश्ता किन-किन उतार-चढ़ाव के मानवीय संवेदना से गुजरता है, एक-दूसरे से भागता है या एक-दूसरे को अपनाने के लिए संघर्ष करता है। ये जानने के लिए आपको द मैरिड वुमन देखनी होगी।

यकीन माने रिश्ते के बेहतरीन शेड्स आपको निराश नहीं करेंगे।

अभिनय के दम पर मनोरंजन करती है द मैरिड वुमन

समान्य समाज के मानदंडों को तोड़कर, अपने स्वयं के तलाश के सफर में निकलना किसी भी आम गृहस्थ महिला के आसान नहीं होता है। दूसरी तरफ, एक कन्वेंशनल महिला है जो आत्म खोज के रास्ते तलाश में मदद करती है।

इस थीम लाइन पर “द मैरिड वुमन” की कही कहानी में अपने अभिनय से रिधि डोंगरा और मोनिका डोगरा अपने अभिनय में दंव्द्द और बिदांसपन के शेड्स को कमाल तरीके से जीने का काम किया है, जो पूरे सीरिज में बांध कर रखता है, खासकर रिधि डोगरा जब बीच-बीच में दर्शकों से संवाद स्थापित करती है।

रिधी डोगरा अपने अभिनय में जहां गृहस्थ के साथ-साथ कामकाजी महिलाओं के सूक्ष्म चीजों को अपने अभिनय में निखार कर लाती है वह कमाल का है। इसी तरह मोनिका डोगरा अपने अभिनय में विधुर होने के अकेलेपन और बिदासपन को अपने अभिनय में लाने में कामयाब दिखती है जो अपने साथ अपने अतीत का भी लेकर चलती है पर उसे कभी जाहिर नहीं होने देती।

समलैंगिकता का अपराध श्रेणी से निकलने के बाद दो महिलाओं के आकर्षण और सामाजिक बंधनों को “द मैरिड वुमन” दिखाने में कामयाब होती है। दीपा मेहता की  “फायर” के बाद दो महिलाओं के बीच आकर्षण की यह दूसरी कहानी है जो कुछ समय तक दर्शकों के जेहन में अपनी जगह जरूर बनायेगी।

बेव सीरिज मंजू कपूर के उपन्यास “ए मैरिड वुमन” के सटीक विजवल एडाप्टेशन में रिसर्च में कहीं-कहीं कमजोर जरूर दिखती है, मसलन 90 के दशक में विक्रम जैसे ऑटो दिल्ली के सड़कों पर नहीं चला करते थे, न ही उस दशक में दिल्ली में प्रदूषण के कारण दिल्ली हाट में लोग चेहरे पर मास्क नहीं लगाते थे।

मूल चित्र : Screenshot, The Married Woman

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