कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

‘क्यूंकि मैं जो थी, अब मैं वो लड़की नहीं हूँ…’ कहती है द गर्ल ऑन द ट्रेन

सस्पेंस थ्रिलर के साथ द गर्ल ऑन द ट्रेन की कहानी अंत में एक महत्वपूर्ण बात करती  है वह यह बीकाज आई एम नांट द गर्ल आई यूज्ड टू बी...

सस्पेंस थ्रिलर के साथ द गर्ल ऑन द ट्रेन की कहानी अंत में एक महत्वपूर्ण बात करती  है वह यह बीकाज आई एम नांट द गर्ल आई यूज्ड टू बी…

नेटफिलिक्स पर इस हफ्ते द गर्ल ऑन द ट्रेन रिलीज हुई, जो इसी नाम से  पौला हॉकिन्स के  लिखे उपन्यास  और अंग्रेजी में बनी फिल्म का हिंदी रीमेक है, बस तमाम पात्र बदल दिए गए हैं। जिन्होंने इस उपन्यास को पढ़ा है और फिल्म देखी है, उन्हें इस कहानी के सस्पेंस-थ्रिलर का पता होगा।

डायरेक्टर  रिभु दासगुप्ता ने कहानी अगर देसी पृष्ठभूमि में कहने की कोशिश करते, तब दर्शकों को पसंद आती। कहने का मतलब यह है कि एक पसंद की गई कहानी का रिमेक एक बड़ी जिम्मेदारी है, जिसमें वह कभी कामयाब दिखते हैं तो कभी ना कामयाब।

परिणीति और कीर्ति का अभिनय प्रभावित करता है तो अन्य कलाकार साधारण रह जाते हैं। कहानी बांधने की कोशिश तो करती है लेकिन सुस्त पटकथा निराश कर देती है। कहानी अंत में रूपहले पर्दे पर एक बात लिखती है, “बीकॉज आई एम नांट द गर्ल आई यूज्ड टू बी” जो कमोबेश दो घंटे सुनाई गई कभी-धीमी कभी तेज हो गई कहानी का सुखद अंत दे देती है।

क्या है कहानीद गर्ल ऑन द ट्रेन की

डायरेक्टर रिभु दासगुप्ता ने द गर्ल ऑन द ट्रेन कहानी कहने में किसी नयेपन का सहारा नहीं लिया है। मीरा(परिणीति चोपड़ा) जो एक बड़ी वकील है, अपने पति और बच्चे को खोने के साथ एमनीसिया नाम की बीमारी से जूझ रही है जिसमें उसे खुद के साथ होने वाली घटनाएं याद नहीं रहती हैं। इन सारे ट्रेजड़ी ने उसे शराबी बना दिया है।

वह रोज ट्रेन से अपने घर के रास्ते से सफर करती है और अपने पुराने घर में  एक महिला, नुसरत जांन(अदिति राव हैदरी) को देखकर खुश होती है। लेकिन नुसरत की हत्या हो जाती है और सारे सबूत मीरा को गुनाहगार साबित करते हैं जबकि मीरा इसपर विश्वास नहीं करती है। आगे की कहानी में अनसुलझी गुत्थी ही रोमांच और थ्रिलर पैदा करती है।

अभिनय चौंकाता है परिणीति का

अंग्रेजी में इस कहानी को ऐमली ब्लंट ने निभाया था जिसको काफी तारीफ हुई। डारेक्टर रिभु दासगुप्ता जानते थे कहानी का मुख्य किरदार को कहानी कहने में प्रभावी बनना होगा। डारेक्टर रिभु दासगुप्ता और परिणीति चोपड़ा इसमें कामयाब भी हुए है। परिणीति मीरा के चरित्र के तमाम परतों को अपने अभिनय में ढ़ालने में कामयाब हुई है। कहानी के फिल्म का सबसे मजबूत पक्ष परिणीति का अभिनय ही है।

नुसरत का चरित्र कम समय में जिस अभिनय की मांग करता है उसमें अदिती राव हैदरी कामयाब नहीं हो पाती हैं। तीसरा मुख्य किरदार कीर्ति कुल्हारी का है जिसका अभिनय परिणीति चोपड़ा के किरदार के सामने कभी खुलकर नहीं आता है। वह हमेशा दबा-दबा सा लगता है।

यदि दर्शक ने किताब और अंग्रेजी वाली फिल्म नहीं देखी है तो उनका मनोरंजन इन कहानी से हो सकता है। हालांकि संगीत फिल्म में ठूंसा हुआ लगता है उसको बेहतर किया जा सकता था। सनी इंद्र और विपिन पाटवा बेहतर संगीतकार है पर प्रभावित करने से चूक जाते हैं। फिल्म की पटकथा थोड़ी चुस्त होती तो वह खासा प्रभावित करती।

एक और जरूरी बात कहती है कहानी

संस्पेस, क्राइम और थ्रिलर के साथ-साथ कहानी अंत आते-आते एक महत्वपूर्ण बात करता है वह यह कि है “बीकांज आई एम नांट द गर्ल आई यूज्ड टू बी”। जो मुझे लगता है दुनिया के हर लड़की और महिलाओं के लिए है। वह यह है कि प्रेम जरूरी नहीं है हर लड़की के जीवन में वसंत के तरह ही आए। अपने जीवन में कामयाब और आत्मनिर्भर महिलाओं को अपने प्रेम के चयन को लेकर सर्तक और सचेत रहने की जरूरत है। प्रेम जीवन में एक साजिश के साथ भी आ सकता है जो आपके जीवन को भावनाओं के दायरे में बांधकर आपको तबाह कर दे।

मूल चित्र : Screenshot of film trailer from YouTube 

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

240 Posts | 719,238 Views
All Categories