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लगता है इन ‘मर्दों’ को अभी और वक्त चाहिए

जनाब, सदियों से असमानता की जो खाई खोद कर स्वयं मलाई खाई है, उसको कम करने के लिए विशेषाधिकार तो मात्र एक पेन-किलर है, समस्या का समाधान नहीं।

जनाब, सदियों से असमानता की जो खाई खोद कर स्वयं मलाई खाई है, उसको कम करने के लिए विशेषाधिकार तो मात्र एक पेन-किलर है, समस्या का समाधान नहीं।

उत्तराखंड के नये निर्वाचित मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के हलिया महिलाओं के जींस पहनने के बयान पर बहुत कुछ कहा जा रहा है। मैं उनके बयान पर कोई टीका-टिप्पणी नहीं करूंगा क्योंकि मुझे लगता है कि महिलाओं के परिधान  पर हमारी सोच पर अभी तक तमाम बदलाव की बयार के बाद भी, अभी और बेहतर होने की उम्मीद रखती है। जिसको देखने के लिए अब ऐसा लगता है कि इक उम्र गुज़र जाए वो भी शायद कम हो। तब तक इस तरह के बयान आते रहेंगे-जाते रहेंगे।

बहरहाल, अगर मैं खुद अपनी ही बात करूं तो वह भी अचानक से तो नहीं ही बदली थी। किशोर उम्र में तो मैं अपनी बहन के हेयर कट में बदलाव कर लेने से भी खफा हुआ करता था। उसकी और कई इच्छाएं इसलिए पूरी नहीं होती थीं क्योंकि मर्यादा के नाम पर लक्ष्मण रेखा के दूसरी तरफ लड़कपन के हथियार थाली, ग्लास, बालों को पकड़कर छीना-झपटी के साथ मैं तैयार रहता था।

कितनी ही बार, उसके पक्ष में अपनी बकवास तर्कों के तीर इसलिए नहीं छोड़ता था क्योंकि शिकायत रूपी गुप्त हथियार जो वह माँ-पिताजी के आगे छोड़ देती थी, उससे बहुत डर लगता था। पर सच यही है कि उस वक्त के जो मूल्यबोध मेरे अंदर थे, वो लड़कियों की आजादी को संस्कृति के विरुद्ध मानते थे।

कई बार पिटता भी बहन के  कारण था और बचता भी उसके कारण से था। इसलिए उसके पक्ष में खड़ा भी हो जाता था, मसलन उसको सिनेमा दिखाने ले जाना हो या बाजार से शापिग करवाना हो या बजार में अपने शहर का कुछ चटपटा खाना हो या मेला घूमने जाना हो।

महिलाओं के प्रति मेरी समझदारी में कमी

सच्चाई यही है, उस वक्त तक विपरीत जेंडर के प्रति मेरी कोई लोकतांत्रिक समझदारी नहीं थी। लेडिज फर्स्ट,  बसों में महिलाओं के लिए आरक्षित सीट, विशेष अवसरों पर महिलाओं को मिलने वाली सुविधाएं जैसी चीजों पर मेरा लैंगिक वर्चस्ववाद इस कदर हावी होता था कि मैं इन समय के लिए कोई तयशुदा जुमला खोज चुका था। मसलन- लेडिज फर्स्ट पर, ‘इंदिरा गांधी चली गई लेडिज फर्स्ट भी चला गया’, जैसा कुछ।

कुछ बातें समझने में मुझे लंबा समय लगा

महिलाओं के मौलिक जन सुविधाएं, उनके वस्त्रों को लेकर मौजूद विविधता, तमाम लैंगिक पूर्वाग्रहों से मुक्ति, सहपाठी और सहकर्मी के रूप में सशक्त और स्वतंत्र महिलाओं का अस्तित्व, उनके हकूक और उनकी आजादी जैसे सवालों के प्रति संवेदनशील और जागरूक होने में मुझे लंबा समय लगा।

यह लंबा समय थोड़ा छोटा हो सकता था अगर इस लोकतांत्रिक अवधारणा के बारे में मेरा समाजिककरण घर-परिवार-समाज और समाजिक संस्थाओं जैसे स्कूल-कालेजों ने मेरे अंदर “जेंडर” को लेकर बेहतर समझ विकसित की होती।

जी नहीं, ये असमानता नहीं है

समझ पाने में बहुत लंबा वक्त गया कि देह में अंतर तो नैसर्गिक है लेकिन उसकी वजह से क्षमताओं, संबंधो और अवसरों में अंतर नहीं होना चाहिए, न ही अवसर को पाने के संघर्षों में। जो यह तर्क आज देते हैं कि जब स्त्री-पुरुष समान है तो समानता पाने के लिए उनके लिए विशेषाधिकार क्यों? क्या यह असमानता नहीं है?

जनाब, सदियों से असमानता की जो खाई खोद कर स्वयं मलाई खाई है, उसको कम करने के लिए विशेषाधिकार तो मात्र एक पेन-किलर है समस्या का समाधान नहीं। उनकी पसंद, सम्मान और उनको वरीयता देना बीमारी को पूरी तरह से ठीक करने के लिए विटामिन की गोली की तरह ही है।

कितनी पीढ़ियां खप गईं, पुरुषों को संवेदनशील बनाने में

भाई हम उस जमाने में पले-बढ़े हैं जब हम रोते थे तो कहा जाता था क्या लड़कियों की तरह रोता है? आज जब सोशल मीडिया पर आधी-आबादी के सवालों पर पुरुषों को हमकदम बनते देखता हूं तो लगता है, भाई साहब आजादी के बाद कितनी पीढ़ियां खप गईं, पुरुषों को संवेदनशील बनाने में, पर जब राजनेताओं के आधी आबादी के बयानों को देखता हूं तो लगता है सफर अभी और भी लंबा है।

आधी-आबादी का मोर्चा संभालने वाली लड़कियों-महिलाओं और साथियों बस तुम डटे रहना, अपने हाथ में थामा हुआ स्वतंत्रता-समानता-बंधुत्व का झंडा अगली पीढ़ी के हाथ में सौंपते रहना। यकीन रखना, ये सूरत भी बदलेगी, वह सुबह भी आएगी जब हम मिलकर अपने-अपने हिस्से का समानता-स्वतंत्रता और बंधुत्व समाज और राजनीतिक के ठेकेदारों से छीन कर लेगे।

जो जमीन आजाद खूदमुख्तार मूल्क में अपने खून-पसीने और संघर्ष से बनाई है उसका बचा रहना ही अभी सबसे अधिक जरूरी है। मौजूदा दौर में सबसे अधिक खतरा उस जमीन के ही खोने का तो है। आज भले ही आधी आबादी ने शायद ही कोई क्षेत्र हो जहां अपने कामयाबी का परचम नहीं लहराया हो। अब समय है उस सभी क्षेत्रों में अपने आने वाली नस्लों के लिए वह बेहतर महौल बनाने का जो तुम्हारे आने के समय नहीं था।

जरूरत इस बात की भी है जिस तरह तुम्हें विपरित जेंडर का होने के कारण इस काम को करने के लिए उपयुक्त नहीं माना जा रहा था और नश्तर की तरह चुभने वाली बातें सुनाई जा रही थीं, आने वाली नस्ल यह नहीं सुने कि तुम तो लड़की हो तुमसे न हो पाएगा? वैसे भी मैने पहले ही कहा है कि बदलाव की बयार अभी और बेहतर हो इसके लिए अभी और वक्त लगेगा…

मूल चित्र : Screenshot from Short Film Her, YouTube

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