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गर्भपात की सीमा 20 सप्ताह से 24 सप्ताह बढ़ाने का प्रावधान पारित

राज्यसभा में गर्भपात की वर्तमान सीमा 20 सप्ताह से 24 सप्ताह बढ़ाने का प्रावधान पारित हो गया है। पढ़िए सम्पूर्ण जानकारी जो आपके लिए ज़रूरी है।

राज्यसभा में गर्भपात की वर्तमान सीमा 20 सप्ताह से 24 सप्ताह बढ़ाने का प्रावधान पारित हो गया है। पढ़िए सम्पूर्ण जानकारी जो आपके लिए ज़रूरी है।

राज्यसभा में मंगलवार को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी विधेयक 2020 पारित हो गया है। इसमें गर्भपात की वर्तमान सीमा 20 सप्ताह से 24 सप्ताह बढ़ाने का प्रावधान किया गया है और यह भी सुनिश्चित करता है कि महिलाओं को मानवीय आधार पर सुरक्षित और कानूनी गर्भपात कराने के लिए चिकित्सीय सेवाएं प्राप्त हों। 

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री हर्षवर्धन ने सदन में विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि इसे व्यापक विचार विमर्श कर तैयार किया गया है। इस संबंध में चर्चा के लिए सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी के नेतृत्व में मंत्रियों का एक समूह भी गठित किया गया था। स्त्रीरोग विशेषज्ञ एसोसिएशन, संबंधित एनजीओ, विभिन्न पक्षों, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन आदि से चर्चा के बाद ही इस बिल को तैयार किया गया था। लोक सभा में ये बिल पिछले साल पारित किया जा चुका है। 

बिल पारित होने के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने ट्वीट करते हुए कहा कि, ‘यह बिल महिलाओं की गरिमा और उनके अधिकारों की रक्षा करेगा।’

इस बिल में क्या प्रावधान हैं?

यह विधेयक मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 में संशोधन करना चाहता है। इसमें महिलाओं को विशेष परिस्थिति में 24 सप्ताह तक गर्भपात कराने का प्रावधान है, लेकिन यह किसी वर्ग विशेष का वर्णन नहीं करता है। विधेयक में एमटीपी नियमों में संशोधन में राज्यों द्वारा परिभाषित की जाने वाली श्रेणियां शामिल हैं और इसमें रेप सर्वाइवर और अन्य पीड़ित महिलाओं, किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित महिला और नाबालिगों को शामिल किया गया है।

गर्भपात कानून में बदलाव से क्या बदलेगा?

वर्तमान में, गर्भपात के लिए एक डॉक्टर की राय की आवश्यकता होती है, यदि यह गर्भाधान के 12 सप्ताह के भीतर किया जाता है और अगर यह गर्भाधान के 12 से 20 सप्ताह के बीच किया जाता है तो दो डॉक्टरों से राय लेनी होती है। हालांकि अब इस बिल में 20 सप्ताह तक के लिए एक डॉक्टर की सलाह पर और 20 से 24 सप्ताह की महिलाओं की कुछ श्रेणियों के मामले में दो डॉक्टरों की सलाह की जरूरत होगी।

इस बिल में भ्रूण की असामान्यताओं के मामलों में 24 सप्ताह के बाद गर्भपात का निर्णय लेने के लिए राज्य स्तर पर मेडिकल बोर्ड स्थापित करने का भी प्रावधान है।

गर्भपात में 24 सप्ताह का प्रावधान क्यों ज़रूरी है?

इस प्रावधान पर विशेषज्ञों का कहना है कि गर्भपात कानून में बदलाव बहुत जरूरी थे। कई बार आपको गंभीर जन्मजात असामान्यता के साथ गर्भधारण हो जाता है, लेकिन गर्भधारण की अवधि 20 सप्ताह से अधिक है, इसलिए हम गर्भपात नहीं कर सकते थे, भले ही पता हो कि बच्चा स्वस्थ नहीं होगा। इसके अलावा, क्योंकि कभी-कभी स्कैन करने का स्तर केवल 20 सप्ताह में होता है और जब तक असामान्यता का पता चलता है, तब तक गर्भपात की अनुमति की सीमा पहले ही पार हो जाती है। 

यह बिल कानून बनने के बाद महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण साबित होगा। हालांकि अभी भी एबॉर्शन को एक गलत नज़रिये से देखा जाता है चाहें उसमें माँ बच्चे दोनों को खतरा क्यों न हो। साथ ही एबॉर्शन के बाद महिलाओं के मानसिक तनाव की तो कहीं बात ही नहीं होती है। लेकिन बदलाव हो रहे हैं और सभी को बदलाव का हिस्सा बनना होगा।

मूल चित्र : Pixabay via Pexels

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Shagun Mangal

A strong feminist who believes in the art of weaving words. When she finds the time, she argues with patriarchal people. Her day completes with her me-time journaling and is incomplete without writing 1000 read more...

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