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जो रह गयी थी ज़िम्मेदारियों के बीच अधूरी, अब उसको पाने के नए रास्ते निकालते हैं, चलो फिर एक नए रास्ते पर अपने कदमों के निशाँ बनाते हैं...
जो रह गयी थी ज़िम्मेदारियों के बीच अधूरी, अब उसको पाने के नए रास्ते निकालते हैं, चलो फिर एक नए रास्ते पर अपने कदमों के निशाँ बनाते हैं…
चलो आज फिर एक नयी मंज़िल तलाशते हैं, निकल पड़े है ज़िंदगी के सफ़र में, इस सफ़र में पड़ाव कई हैं, हर पड़ाव ने अपनी मंज़िल चुनी है, हर मंज़िल ने अपने रास्ते तय किए हैं।
कुछ मंज़िलें मिली तो है, पर कुछ अभी भी बाकी है, उम्र के इस पड़ाव पर ख्वाहिशें ज़रा बाकी सी है, माना कि पहले कि तरह दौड़ नहीं सकते, पर आज भी चलने का हुनर तो बाकी है।
मंज़िल की ओर बढ़ने की ताक़त, बाजुओं में अभी भी बाँकी है, क्योंकि ज़िंदगी का सफ़र अभी बाँकी है। तो फिर एक नयी मंज़िल की, चाहत भी अभी बाकी है।
निकल पड़े हैं ज़िंदगी के सफ़र में, पड़ावों का सिलसिला जारी है, कुछ पड़ाव मीठे होंगे तो कुछ कड़वे होने का दस्तूर भी राज़ी है
ये सब तो सफ़र का दस्तूर ही है, कभी बारिश तो कभी सूखा भी है, कभी धूप तो कभी छाँव, कुछ पड़ाव निकल चुके है, तो कुछ पड़ाव अभी बाकी है।
कुछ में हम किसी और की ज़िम्मेदारी थे, कुछ ने हमें ज़िम्मेदार बना दिया, धूप, छाँव, आँधी, तूफ़ान, इन सबसे टकराकर, आज भी इस सफ़र को ज़ारी रखने की ख्वाहिश बाकी है।
हो गए जीवन के सारे काम पूरे तो क्या, चलो आज फिर एक नयी मंज़िल तलाशते हैं, ज़िंदगी के सफ़र को और मज़ेदार और चुनौती पूर्ण बनाने को, चलो आज फिर ख़्वाहिशों के मेले से, एक नयी ख्वाहिश फिर निकालते हैं।
जो रह गयी थी ज़िम्मेदारियों के बीच अधूरी, अब उसको पाने के नए रास्ते निकालते हैं, चलो फिर एक नयी मंज़िल की ओर नए रास्ते पर अपने कदमों के निशाँ बनाते हैं, इस सफ़र को और रंगीन और ख़ुशनुमा बनाने के लिए, चलो आज फिर एक नयी मंज़िल तलाशते हैं।
मूल चित्र : Still from the Short Film, Meeraas, YouTube
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